॰ कुंभ हादसे पर मुआवजे की 12 घंटे में घोषणा, पर बड़ौत के लिये 8 दिन बाद भी नहीं
॰ अगर अभी नहीं जागे, तो कभी नहीं जाग पाओगे
॰ अनेक की उठी आवाज, पर सरकार के से रुई नहीं हटी
04 फरवरी 2025/ माघ शुक्ल पंचमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी / शरद जैन /
28 जनवरी की वह सुबह जब बड़ौत में वह दर्दनाक हदासा हुआ। 26वें वर्ष में मानस्तंभ परिसर में शुरू हुआ मानस्तम्भ प्रतिमा पर मस्तकाभिषेक महज 30-40 मिनट बाद शांतिधारा के दौरान मचान टूटने से बेहद दुखद घड़ियों में बदल गया। सात की घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई, 70 से ज्यादा घायल होकर विभिन्न अस्पतालों में बड़ौत ही के नहीं, दिल्ली, मेरठ, मुजफ्फरनगर तक पहुंचाये गये। कई अभी भी गंभीर हालत में अस्पतालों में इलाज करा रहे हैं।
अस्पताल में प्रवेश पर ही डिपाजिट राशियां ले ली गई, तब दूसरे दिन डीएम द्वारा आश्वासन दिया गया कि इलाज का खर्चा सरकार वहन करेगी, पर मृतकों के परिवारों के लिये और जो इस हादसे में अपने अंग खो बैठे, महीनों बिस्तर पर रहेंगे, उनके लिये कोई सहायता (?), इंतजार आज तक है।
अगले ही दिन प्रयागराज के कुंभ में मौनी अमावस्या को भगदड़ में भी दर्दनाक हादसा हुआ। उप्र सरकार ने पूरी सहानुभूति दिखाते हुए 12 घंटे में ही मुख्यमंत्री राहत कोष से 25-25 लाख रुपये की सहायता की घोषणा की गई, प्रधानमंत्री से लेकर सभी मंत्रियों और सभी बड़े नेताओं ने दुख प्रकट किया।
पर बड़ौत के लिए सत्ता की ओर से केवल मुख्यमंत्री ही ट्वीट कर पाये, बाकी दिल्ली के चुनाव पर टीका टिप्पणी में व्यस्त रहे। न ही सहीनुभूति के चंद शब्द बोले और न ही आर्थिक रूप से सहयोग। क्या यही है सरकार का (अ)न्याय? क्या यह मान लिया गया है कि केवल सोने का अंडा देने वाली मुर्गी ही है जैन? इसे दाना फेंकने के अलावा जरूरत पर भी कुछ देने की जरूरत नहीं? क्या ऐसी हकीकत देखने के बाद भी जैन समाज कमल की डंडी बना रहेगा?
भारतवर्षीय दि. जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जम्बू प्रसाद जैन जी, उ.प्र. – उत्तराखंड के अध्यक्ष जवाहर लाल जैन जी तथा अन्य समाज श्रेष्ठियों राजेश जी, सुदीप जी आदि के साथ चैनल महालक्ष्मी भी कुछ सांसदों- चंद्रशेखर, धर्मेन्द्र यादव आदि से भी मिले। प्रियंका वढेरा, अखिलेश यादव, पूर्व सांसद प्रदीप जैन आदित्य आदि यानि विपक्षी नेताओं ने जैनों को सहयोग की आशा की आवाज भी उठाई। सत्ता पक्ष से सांसद नवीन जैन भी बोले। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जी को कई ने ज्ञापन भी सौंपे, पर क्या सरकार के पास, मुख्यमंत्री राहत कोष में सहयोग के नाम ‘जैन को वर्जित’ मान रखा है। दि. जैन महासभा ने 21 लाख तथा अन्य द्वारा भी सहयोग राशि दी गई है।
अनेक संतों ने भी धर्मसभाओं में सरकार से अपील की। कुछ सत्ता भक्त लोगों की टिप्पणी भी आई कि कुंभ सरकारी कार्यक्रम था और बड़ौत का निजी, इसलिए सरकार ने आर्थिक सहायता नहीं दी। कुंभ सरकारी कार्यक्रम? और बड़ौत का निजी कार्यक्रम? यह कौन से तराजू पर तौला गया? कौन सी दूरबीन से देखा गया। हकीकत तो दोनों ही धार्मिक कार्यक्रम थे।
जैन समाज को इस बात को, चाहे धार्मिक हो या सामाजिक या राजनैतिक हर मंच से, हर रूप में आवाज उठानी होगी। सबसे ज्यादा – टैक्स देने वाले, रोजगार देने वाले ‘निजी’ समाज को विकल्पों की तलाश करनी होगी। ऐसा सरकारी (अ)न्याय कभी स्वीकार्य नहीं हो सकता। इस बारे में चैनल महालक्ष्मी के एपिसोड नं. 3129 और 3132 में देख सकते हैं।
चैनल महालक्ष्मी चिंतन
जहां जैन समाज की कई कमेटियों ने आर्थिक सहयोग दिया है, वहीं सरकार की आंखें बंद हैं। क्या ऐसे दर्दनाक हादसों में भी वोटों की खोपड़ी गिनकर फैसला होता है। हार्दिक संवेदना तक के चंद शब्द नहीं निकलते। अगर अब भी जैनों की हर मंच से आवाज नहीं उठी, तो आने वाले भविष्य में तय है कि सरकार सहयोग के दरवाजे सदा बंद रखेगी।