30 सितम्बर 2022/ अश्विन शुक्ल पंचमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी
आज देश के लगभग हर अखबार में, उस खोज के बारे में छपा है, जिसको भारतीय पुरातत्व विभाग ने पिछले गत दिनों में किया। जी हां , मध्यप्रदेश के उमरिया जिले में बांधवगढ़ फॉरेस्ट रिजर्व जो लगभग 170 वर्ग किलोमीटर में फैला है। इसे चीतों का नगर भी कहा जाता है और अब यहां पर भारतीय पुरातत्व विभाग की टीम ने लगभग 2000 वर्ष पुराने भारतीय इतिहास को दुनिया के सामने ला कर रखा है और जिसमें कहा गया है कि बांधवगढ़ फॉरेस्ट रिज़र्व में बौद्ध इतिहास और विरासतें मिली है और साथ ही कुछ हिंदू धर्म की मूर्तियां भी मिली। इस समाचारों को पढ़कर एक बात मन में फिर कोंध गई, जो हाईकोर्ट के आदेश पर कई बरस पहले अयोध्या में खुदाई हो रही थी, श्री राम जी के इतिहास को खंगालने के लिए। पर तभी वहां पर जैन मूर्तियां निकली और कुछ बौद्ध भी। तब उन्होंने आकर अपने दावे प्रस्तुत कर दिए , पर जैन तब भी चुप रहे और अब तक चुप हैं ।
सभी ऐतिहासिक धरोहर (Historic Monuments) के अवशेष करीब दो हजार साल पुराने हैं. ASI ने 26 मंदिर, 26 गुफाएं, 2 मठ, 2 स्तूप, 24 अभिलेख, 46 कलाकृतियां और 19 जल संरचनाएं खोजी हैं. गुफाओं में हिंदू और बौद्ध धर्म से जुड़े कई ऐतिहासिक और रोचक जानकारियां सामने आई हैं.
6 मंदिर कलचुरी समय यानी 9वीं से 11वीं शताब्दी तक के बौद्ध कालीन मंदिर हैं. इसमें दो बौद्ध मठ, दो स्तूप, 24 ब्राह्मी लिपियां , 46 मूर्तियां और दूसरी से लेकर 15वीं शताब्दी की 19 पानी की संरचना मिली हैं. मध्य प्रदेश के उमरिया जिले के बांधवगढ़ के जंगलों में 2 से 5वीं शताब्दी की 26 गुफाओं के साथ 26 प्राचीन मंदिरों की शृंखला को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने खोज निकाला है. पुरातत्व विभाग की खुदाई में 26 मंदिरों की शृंखला मिली है, जिनमें भगवान विष्णु की शयन मुद्रा की प्रतिमा के साथ बड़ी-बड़ी वराह की प्रतिमा भी मिली हैं. एएसआई की इस खोज को काफी अहम माना जा रहा है. खोज के लिए बांधवगढ़ के करीब 170 स्क्वायर किमी इलाके की पहचान की गई है. इसे सबसे पहले 1938 में पहचाना गया था.
आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) की टीम को मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ के फॉरेस्ट रिजर्व में करीब 2000 साल पुराने बौद्ध मठ मिले हैं. ये मठ करीब 175 वर्ग किलोमीटर के इलाके में फैले हैं. इन गुफाओं के जरिए बुद्ध धर्म से जुड़ी कई रोचक जानकारियां सामने आई हैं. इन गुफाओं में ब्राम्ही लिपि के कई लेख भी मिले हैं.
पुरातत्व विभाग की खुदाई में 26 मंदिरों की शृंखला मिली है, जिनमें भगवान विष्णु की शयन मुद्रा की प्रतिमा के साथ बड़ी-बड़ी वराह की प्रतिमा भी मिली हैं. एएसआई की इस खोज को काफी अहम माना जा रहा है. खोज के लिए बांधवगढ़ के करीब 170 स्क्वायर किमी इलाके की पहचान की गई है. इसे सबसे पहले 1938 में पहचाना गया था.
एएसआई के सुप्रीटेंडेंट शिवाकांत वाजपेई ने बताया कि बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व 170 वर्ग किलोमीटर में फैला है. अभी एक जोन तलागर में सर्च अभियान चला है. यहां मिलीं पत्थर की प्राचीन गुफाएं मानव द्वारा बनाई गई हैं. इनमें बौद्ध धर्म से जुड़े कई अहम तथ्य मिले हैं. यहां काम करना आसान नहीं होता क्योंकि टाइगर रिजर्व है. फॉरेस्ट विभाग की परमिशन लेकर अभियान चलाया गया है. बताया जा रहा है कि ये 26 मंदिर कलचुरी समय यानी 9वीं से 11वीं शताब्दी तक के बौद्ध कालीन मंदिर हैं. इसमें दो बौद्ध मठ, दो स्तूप, 24 ब्राह्मी लिपी , 46 मूर्तियां और दूसरी शताब्दी से लेकर 15वीं शताब्दी की 19 पानी की संरचना मिली हैं. 46 मूर्तियां जो मिली हैं, उसमें सबसे बड़ी मूर्ति वराह की है. इन गुफाओं में बौद्ध धर्म से जुड़े कई रोचक तथ्य सामने आए हैं.
गुफाओं में पत्थर से बने बेड -क्या जैन विरासतें
इन गुफाओं में कई गुफाएं इतनी बड़ी है जिनमें 30 से 40 लोग एक साथ रह सकते है. बोर्ड गेम जिसमें लोग गोटियों का खेल खेलते थे वो अवशेष भी मिले हैं. लेटे हुए विष्णु और वराह की मूर्तियां भी मिलीं है. इस गुफाओं में पत्थर से बने बेड से लेकर तकिए, कुछ गुफाओं के फर्श पर बोर्ड गेम के पैटर्न भी मिले हैं. वहीं, इस दौरान 24 अभिलेख ब्राह्मी और अन्य भाषाओं में मिले हैं. इनमें मथुरा (Mathura) और कौशाम्बी (Kaushambi) के नाम का भी जिक्र मिलता है. शिलालेखों पर महत्वपूर्ण राजाओं में भीमसेना, महाराजा पोथासिरी और भट्टदेव के नाम लिखे हैं. ये गुफाएं दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व और 5 वीं शताब्दी ईसा पूर्व के बीच की बताई जा रही हैं.
बांधवगढ़ का भगवान राम से संबंध
बांधवगढ़ का ऐतिहासिक उल्लेख (Bandhavgarh historical mention) नारद पंचरात्र और शिव पुराण में भी मिलता है. मान्यता है कि भगवान श्री राम ने अयोध्या लौटते समय अपने छोटे भाई लक्ष्मण को यह क्षेत्र उपहार स्वरूप दिया था. इस इलाके से मिले प्राचीन अभिलेखों से पता चलता है कि यह बहुत लंबे समय तक मघ राजवंश (Magha Dynasty) के अधीन था. ASI ने बांधवगढ़ फॉरेस्ट रिजर्व में 1938 में भी गुफाओं की खोज की थी.
वहां से निकली अपने इतिहास की सामग्री , वह कभी संग्रहित नहीं कर पाया और यह हमारे जैन समाज का सबसे बड़ा कमजोर पक्ष दिखाता है कि हम अपने इतिहास को संजोएना ही नहीं चाहते । अब जैसा दावा किया गया है कि यहां पर मंदिर , गुफा , अभिलेख आदि बहुत कुछ मिला है । शयन गुफाएं जो पाषाण की है और संतों के आराम करने के लिए प्रयोग की जाती होंगी। इस से सीधा संकेत मिलता है भद्रबाहु काल के समय जब उत्तर में दुर्भिक्ष पड़ने के बाद , साधु संतो के संग उस ओर बड़े थे ।
तब जगह-जगह ऐसी गुफाओं का निर्माण किया गया था। साथ ही ब्राह्मी लिपि में जो शिलालेख मिल रहे हैं, वह भी इस बात को कहीं ना कहीं जैन इतिहास से जोड़ते हैं ,क्योंकि वैष्णव धर्म में ब्राह्मी लिपि का उल्लेख ही नहीं माना जाता और वह संस्कृत को सबसे पुरानी लिपि आज भी कहते हैं। यह जरूर है कि यहां पर विष्णु जी की शयन मुद्रा में एक बड़ी प्रतिमा मिली है । पर कई ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि इन 170 वर्ग किलोमीटर में फैली विरासत में कहीं ना कहीं जैन पहचान भी इतिहास में छिपी पड़ी है, जिसको बिल्कुल नकारा जा रहा है। या फिर जैनों पर इस समय इतनी सुध भी नहीं कि अपने इतिहास को ऐसे मौके पर संजो सके। यह कमी यहां नहीं , जगह जगह दिखती है । इस पर चैनल महालक्ष्मी एक विशेष एपिसोड-
क्या मिला और क्या हो सकता है उसमें जैन पुरातत्व ?
इस पर रविवार 2 अक्टूबर को रात्रि 8:00 बजे विशेष एपिसोड जारी करेगा। देखिएगा जरूर क्योंकि जब अपनी प्राचीन विरासत की बात होती है , तो हम सब का परम कर्तव्य बन जाता है कि उसको संजो कर रख सके, उसकी पहचान कर सकें।
पर अभी तक बांधवगढ़ क्षेत्र में कोई भी जैन रिसर्च करने के लिए नहीं गया। और यह पुरातत्व विभाग ने तो आज खोज की है, जो भी हां पर पर्यटन के लिए आते हैं , वह इन सब को बरसों से देखते आ रहे हैं , बस अब सरकारी नजरों में चल गए हैं । क्या इसमें कहीं जैन विरासतें भी छिपी है, सवाल इसी बात का है।