8 अप्रैल 2022//चैत्र शुक्ल सप्तमी /चैनल महालक्ष्मीऔर सांध्य महालक्ष्मी/
आज की भाव वन्दना ऐसे तीर्थक्षेत्र की है, जहां की अदृश्य शक्तिओ ने उपद्रवियों को बाँध कर रख दिया था, फलस्वरूप जगह का नाम ही बंधाजी पड़ गया, जिसे आज हम अतिशयक्षेत्र बंधाजी के नाम से जानते हैं ।
श्री 1008 अजितनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र बंधाजी, जिला टीकमगढ़ (मध्य प्रदेश)
श्री बंधाजी अतिशय क्षेत्र के एक तहखाने में 900 वर्ष प्राचीन काले रंग की चमत्कारी मूलनायक भगवान अजितनाथ की प्रतिमा स्थापित है । पुरातात्विक साक्ष्यों के अनुसार इस क्षेत्र के 1500 से अधिक वर्षों से प्राचीन होने के साक्ष्य है। यह स्थान प्राकृतिक और शांतिपूर्ण वातावरण से भरपूर खूबसूरत पहाड़ियों के बीच में स्थित है।
‘बुंदेलखंड क्षेत्र’ में सात भोंयरे (भूमिगत स्थान) बहुत प्रसिद्ध हैं ! जो पावा, देवगढ़, सेरों, करगुवां, बंधा, पपौरा और थूवोन में स्थित हैं ! कहा जाता है, यह सात 7 भोंयरे दो भाइयों अर्थात ‘देवपत’ और ‘खेवपत’ द्वारा निर्माण किये गए है ।
यह क्षेत्र पुरातत्व की दृष्टि से काफी धनी है। यहाँ पर जैन धर्म से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य – विभिन्न जगहों, तालाबों, प्राचीन किलों, और पुराने मंदिरों में जहां तहाँ प्राप्त होती रहती है ! ऐसा मानना है, मुस्लिम शासकों के समय, इस जगह पर चंदेल राजाओं के द्वारा भोंयरे (तहखाने) का निर्माण किया गया था (सुरक्षित रूप से मूर्तियों को रखने के लिए) ।
अतिशय: –
(१) जब मुगल काल के दौरान जब हमलाकरियों ने मूर्तियों को तोडा, तो उन्हें यहाँ चमत्कारी शक्ति का एहसास हुआ और सभी विध्वंसक एक अदृश्य शक्ति के अधीन होकर यहाँ फंस गए, फिर उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ, और सब उस अदृश्य शक्ति से क्षमा मांगकर चले गये ! उनके इस अदृश्य बंध के कारण ही इस जगह को ‘ बंधा जी ‘ के रूप में कहा जाता है !
(२) वर्ष 1953 में आचार्य श्री महावीर कीर्तिजी अपने संघ के साथ यहां आये थे ! उस समय कुएं में पानी नहीं था । लेकिन आचार्यश्री ने ‘अभिषेक के जल’ को छिड़का, त्यों ही कुए में जल भर गया ! उस समय के बाद से पानी इस स्थान पर उपलब्ध है।
(३) यहाँ भोंयरा (भूमिगत स्थान) में एक विशाल सर्प रहता है इसे यहाँ अक्सर देखा जा सकता है और इस वजह से जो मनपूर्वक भक्ति से परिपूर्ण नही होते वो इस तहखाने के अंदर प्रवेश करने में सक्षम नहीं हो पाते ।
(४) बंधा जी में रात्रि के समय अक्सर भक्ति गीत, नृत्य और अन्य संगीत वाद्ययंत्र की आवाज़ सुनने को मिलती है ।
(५) एक बार संवत १८९० में एक कलाकार मूर्तियों को बेचने के लिए के लिए ‘बम्होरी’ जा रहा था । अचानक बैलगाड़ी बम्होरी के एक बड़े पीपल के पेड़ के पास उसकी गाडी का ठहर गयी । बहुत दिनों तक जब सभी प्रयास व्यर्थ साबित हो गए तो उसने फैसला बंधाजी की ओर बढना शुरू कर दिया। यह मूर्ति अभी भी बंधाजी के विशाल मंदिर में स्थापित है ।
अतिशय बंधाजी में मूलनायक भगवान अजितनाथ की मूर्ति प्राचीन भोंयरा में स्थापित है । यह काले रंग की २-१/२ फीट ऊंची पद्मासन प्रतिमा है! मूर्ति काफी प्राचीन चमत्कारी निर्मल और शांत है। इस मूर्ति के दोनों किनारों पर २ फीट की भगवान आदिनाथ और भगवान सम्भवनाथ की उच्च खड्गासन मूर्तियों स्थापित हैं । विशाल प्राचीन मंदिर को भोंयरा के पास बनाया गया है, यह 65 फुट ऊंचा है । घने जंगल में इस मंदिर का निर्माण किया गया था । १८वीं सदी में निर्मित यह मंदिर काफी कलात्मक होती है।
क्षेत्र में एक और भोंयरा (भूमिगत स्थान) के अस्तित्व की संभावना है। इस क्षेत्र में जब कोई भी अपनी जगह से इस चट्टान को हटाने की या इस चट्टान पर बैठता है तो बीमारीग्रसित हो जाता है । उस काल में, अन्य विद्वानों ने आचार्य महावीर कीर्ति को यह बात बताई थी, यहाँ एक भोंयरा (भूमिगत स्थान) होने की संभावना है एवं कुछ समय के बाद यह स्वयं पृथ्वी से बाहर आ जायेगा ।
वार्षिक मेला : माघ शुक्ल से १५ फाल्गुन कृष्ण (२- ३दिन) (आचार्य श्री का कुएं में ‘ अभिषेक जल ‘ छिड़काव) जब एक ही बार पानी से भर गया था ! यह मेला इसकी वर्षगांठ के रूप में आयोजित किया जाता है।)
निकटवर्ती अतिशय क्षेत्र : – पपोराजी, जिला – टीकमगढ़, करगुवांजी, जिला – झाँसी, क्षेत्रपालजी, जिला – ललितपुर
निकटवर्ती सिद्ध क्षेत्र : – आहारजी, जिला – टीकमगढ़, सोनगिरिजी, जिला – दतिया, पावगिरिजी, जिला – ललितपुर, द्रोणागिरिजी, जिला – छतरपुर
निवास आरक्षण उपलब्ध है! फोन ०७६८१-२६२२४४
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संकलनकर्ता सुलभ जैन (बाह)