रियासतों में बंटे जैन समाज को जरूरत सरदार पटेल और गांधी की #bananopmandal

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एक-दो-तीन-चार,बंद करें नफरत, द्वेष, प्रचार

दो-चार जगह पुलिस में शिकायत, दसियों जगह प्रदर्शन, बीसियों जगह ज्ञापन, सैकड़ों जगह से प्रधानमंत्री, राज्यपाल व मुख्यमंत्रियों को चिट्ठियां और हजारों से लाखों बार सोशल मीडिया पर लिखी जा रही पोस्ट कर, पोस्ट फारवर्ड करके रण में उतरने की कोशिश तो कही जा सकती है, पर ऐसे बाजी जीत ली जीये, यह सोचना भी बुहत बड़ी भूल होगी।

जगह-जगह, जोश और होश के साथ अलग-अलग कोशिशें, समाज के आक्रोश का तो संकेत करती हैं, पर बंटी रियासतों की तरह अखंड जैन समाज नहीं बन सकता। अलग-अलग तिनके को तोड़ने के लिये, ज्यादा बल नहीं लगाना पड़ता। आज हमारे यहां जितनी ‘रियासतें’ हैं, उतने ही ‘महाराजा’ हैं और उनके साथ उनका बनाया गौण-मौन मंत्रिमंडल। सबकी राजसभा में ‘गुरु’ भी है और यदा-कदा केवल लड़ने के लिये ‘सैनिक’ भी, पर बंटी हुई रियासतों वाले भारत को आक्रमणकारियों ने कैसे लूटा, इसका इतिहास साक्षी है।

1. आवश्यकता चाणक्य नीतिकार सरदार पटेल की
आज इस बंटी जैन रियासतों को एक करने के लिये एक सरदार पटेल की आवश्यकता है, जिस तरह से विभिन्न जगहों पर सेनाओं की तैयारी हो रही है, उसके लिये मैदान में नेतृत्व के लिये कुशल सेनापति के साथ, चाणक्य नीतिकार सरदार पटेल भी चाहिये, जिसमें कुर्सी से चिपके रहने की ललक, सिर पर मुकुट की भनक न हो, जो स्वयं चलकर हर रियासत पर पहुंच का माद्दा रखता हो, एक करने का कुशल रणनीतिकार हो।

2. जरूरत अहिंसक लाठी वाले गांधी की
और उसके साथ ही एक अहिंसक लाठी के साथ चलते गांधी की भी, जो जन-जन को इस आंदोलन में जोड़ सके। जिसको कुर्सी का लालच न हो, कुर्सी को उसका लालच हो। आज नेताओं की पहचान मंत्री-संतरी से होती है, पर प्रधानमंत्री से बड़ा पद, देश राष्ट्रपिता को देता है, ऐसे ही एक गांधी की जरूरत है जैन समाज को।

3. आर्थिक तार तोड़ दो
साथ ही, लड़ाई चाहे ताकतवर चीन से हो या अपने ही कुल में जन्मे पाकिस्तान से, रण की बजाय आर्थिक प्रतिबंध की मार बड़े-बड़ों की कमर तोड़ देती है। आज हमें असहयोग करना होगा, उन दुकानदार से, कारीगरों से, कलाकारों से, कामगारों से जो जैन धर्म के प्रति मिथ्या प्रचार करते हों, नफरत फैलाते हों, साम्प्रदायिकता की आग लगाकर रोटियां सेंकते हों।

4. छिपे हीरो को खदान से निकालना होगा
जैन समाज के पास शायद बाहुबल कम हो, पर ज्ञान बल और शीर्ष बल किसी से कम नहीं है। आज सौ से ज्यादा निर्णय करने वाली अदालती कुर्सियों पर विराजे हैं, इतने ही पुलिस में ऊंचे पदों पर हैं, 250 से ज्यादा प्रशासनिक शीर्ष पदों पर हैं। ये सभी प्राय: जैन धर्म में अपना समय नहीं दे पाते। पर अब ऐसे हीरों को धरा से प्रकट होना होगा। अपने-अपने खदान से निकालकर अपनी चमक बिखेरनी होगी। जब क्षितिज पर सूरज उगता है, तो अनगिनत तारों की नकली दमक फीकी पड़ जाती है।

वक्त नाम का नहीं, काम करने का है। अनोप मण्डल को हवा देकर गुब्बारे की तरह फुला तो दिया, पर बीच में ही नहीं रुकना है, हर एक्शन का रिएक्शन भी होगा, और होना शुरू भी हो गया है, पर जीतता सत्य ही है, धर्म ही है। अहिंसा, जीव दया, लोक सेवा, हितोपदेशी, प्रेम, सौहार्द, कल्याणकारी कार्य करने वाले जैन धर्म, जैन संस्कृति, जैन संत, जैन समाज के प्रति हमारे शास्त्रों का नाम लेकर झूठा अनर्गल प्रचार, नफरत-द्वेष फैलाने वाले ‘अनोप मण्डल’ जैसों के लिये, दो ही द्वार खुले रखने होंगे – क्षमा और दूसरा कटघरा।

कलम रोकने से पहले पं. माखन लाल चतुर्वेदी जी की दो पंक्तियां दोहराना चाहूंगा –
मुझे तोड़ लेना वनमाली (जैन नेतृत्व), उस पथ पर देना तुम फेंक।
मातृभूमि (धर्म सुरक्षा) पर शीश चढ़ाने, जिस पथ पर जावें वीर अनेक।।

– शरद जैन