#बद्रीनाथ धाम के रविवार को खुल गए कपाट ,अंदर दिख रहे आपको #विष्णु जी या कहीं #आदिनाथ

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9 मई 2022/ बैसाख शुक्ल अष्टमी /चैनल महालक्ष्मीऔर सांध्य महालक्ष्मी/

स्थलों की भी, जैन समाज विनम्र होकर अनुरोध करेगा कि उनके इतिहास को भी सामने लाया जाना चाहिए।
रविवार 8 मई को प्रातः 6:15 बजे बद्रीनाथ धाम के कपाट, दर्शन के लिए खोल खोल दिए गए। इसके लिए 15 क्विंटल फूलों से सजावट की गई थी, और कपाट खुलने पर अखंड ज्योति के दर्शन के लिए देश-विदेश से 7000 से ज्यादा यात्री पहुंच चुके थे। इसे वैसे तो कहा जाता है कि यह श्री विष्णु जी के 108 दिव्य मंदिरों में से एक है। 1803 में एक भयंकर भूकंप ने इस मंदिर को बहुत नुकसान पहुंचाया। फिर जयपुर के राजा ने , कहा जाता है , इसका जीर्णोद्धार कराया ।

चैनल महालक्ष्मी, आज सोमवार मई, रात्रि 8:00 बजे, अपने सोशल मीडिया पर जैन समाज के सबसे लोकप्रिय यूट्यूब जैन न्यूज़ चैनल , चैनल महालक्ष्मी पर विशेष एपिसोड में आपको इसकी पूरी जानकारी, चित्रों के साथ देगा। हमारा अनुरोध केवल इतिहास को सही रूप से दर्शाने के लिए , उचित जांच का है ।

क्योंकि अगर अयोध्या के बाद कानून की सीमाओं में, काशी के अंदर, मथुरा के अंदर, मस्जिदों की निष्पक्ष जांच हो सकती है , तो फिर उत्तर में बद्रीनाथ , दक्षिण में तिरुपति बालाजी, पश्चिम में महालक्ष्मी , पूर्व में अदीना मस्जिद यानी चारों दिशाओं में लगभग 50 से ज्यादा धार्मिक स्थलों की भी, जैन समाज विनम्र होकर अनुरोध करेगा कि उनके इतिहास को भी सामने लाया जाना चाहिए।

उत्तराखंड के चमोली में है चार धामों में से एक बद्रीनाथ धाम, वैदिक परम्परा से भगवान विष्णु का धाम। यह 11,204 फीट की ऊंचाई पर गढ़वाल पहाड़ियों पर स्थित है, जहां अलंकनंदा नदी बहती है। शहर नर और नारायण के बीच बसा है और ऋषिकेश से 301 किमी की दूरी पर, या कहें गौरी कुंड (केदारनाथ) से 233 किमी, दिल्ली से 525 किमी की दूरी पर है।

यही पर हैं आभूषणों से लगभग पूरी तरह ढकी अतिशयकारी मनोहर श्याम रंग की 3.3 फीट ऊंची प्रतिमा। यह जो मूर्ति बनी है , यह शालिग्राम पत्थर की बनी है । आपमें से कई वहां गये भी होंगे, वहां आचार्य श्री विद्यानंद जी मुनिराज भी दर्शन करने गये थे और एक बार में ही एकाग्रता से देखने के बाद, उनके मुख से निकला – यह तो आदिनाथ भगवान हैं। और उसके बाद यहां की सच्चाई जानने के लिये कुछ प्रयास शुरू हुये, पर किसी परिणाम पर पहुंचने से पहले ही वो सब बंद हो गया। पर इस बीच कई सवाल सामने उभरने लगे, जो आज जनहित में आपके सामने चिंतन के लिये पेश कर रहे हैं।

इन सवालों के जवाब जानने की कोशिश कीजिए, आपके जहन में बद्रीनाथ के कपाट के अंदर बंद, आदिनाथ भगवान की छवि नजर आने लगेगी-
1. क्या वैदिक परम्परा में भगवान के अभिषेक की परम्परा है? अगर नहीं, तो यहां क्यों अभिषेक किया जाता है?

2. भगवान का अभिषेक सार्वजनिक रूप से क्यों नहीं किया जाता? क्या किसी रहस्य का खुलासा ना हो जाये, इस आशंका से? क्या किसी वेद में इसका उल्लेख है कि अभिषेक सार्वजनिक रूप से नहीं करना चाहिए?

3. क्या वैदिक परम्परा में कहीं भी किसी भगवान की मूर्ति ध्यान मुद्रा में दिगम्बर रूप में है? अगर नहीं, तो यह किसकी प्रतिमा है?

4. जिस मुद्रा में बद्रीनाथ के भगवान हैं, वह मुद्रा पूरे विश्व में केवल जैन तीर्थंकरों की होती है, जो केवल दो रूपों में ही पाई जाती है – पदमासन (ध्यान मुद्रा में बैठे हुए) या खड्गासन (ध्यान में दोनों हाथ नीचे कर खड़े हुए)।

5. वैदिक परम्परा में भगवान के साथ या तो कोई कम्पेनियन (पत्नी, भाई, शिष्य आदि) होते हैं और कभी अकेले मूर्ति होती है तो उनके हाथ में कोई न कोई अस्त्र या वस्तु जैसे डमरू, बांसुरी आदि होते हैं। इनके बिना दिगम्बर पदमासन रूप में क्या विश्व में आज तक कोई वैदिक प्रतिमा देखी है?

6. क्या दिगम्बर रूप में जैन तीर्थंकरों के अलावा कहीं किसी अन्य भगवान की प्रतिमा कभी देखी गई है?

इन 6 सवालों के जवाब ढूंढने की कोशिश करते हैं, तो मन में एक ही जवाब आता है कि बद्रीनाथ के जब भी खुलते हैं कपाट, तो सामने विराजित दिखते आदिनाथ। हमारा उद्देश्य यह नहीं कि किसी का विरोध करें या प्रतिमा की पहचान को बदला जाये।

सिर्फ यही अनुरोध कि सही इतिहास को उजागर किया जाना चाहिए। किसी भी देश का सही प्रकट किया किया गया इतिहास, उस देश की प्राचीन संस्कृति व समृद्धि का प्रतीक माना जाता है और विश्व में अलग पहचान बनती है।

हमारा यह अनुरोध है कि अगर यह प्रमाण स्पष्ट करते हैं कि प्रतिमा प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ जी की है तो यहां एक शिलालेख पर यह जानकारी स्पष्ट रूप से लिखी जानी चाहिए, जैसे कुतुबमीनार के पास लिखा है कि यह 27 जैन-हिन्दू मंदिर तोड़कर बनाया गया है।
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