बाबा रामदेव ने एलॉपथी को स्टुपिड( बेवकूफ )और दिवालिया साइंस कहा जिससे उनकी बेवकूफी और ज्ञान का दिवालियापन दिखता हैं .यदि आपके ऊपर शासन की छत्रछाया न होती तो अब तक जेल में होते

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बाबा रामदेव अशिक्षित—- प्रभुता पाय मद जो आय —

कभी कभी किसी किसी का पुण्य का उदय होता हैं तो वह मिटटी छूता हैं तो सोना हो जाता हैं और कभी कभी पाप का उदय होने से बना बनाया काम ख़तम हो जाता हैं .बरगद के पेड़ का बीज छोटा होता हैं जब उसे द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव, भाव, निमित्त ,उपादान मिलते हैं तब वह विशाल वृक्ष बन जाता हैं .न जाने किस रूप में नारायण किसको कब मिल जाए .

कभी कभी बन्दर के हाथ उस्तरा लग जाता हैं तो वह सबकी दाड़ी बनाने लगता हैं जिसके द्वारा जिंदगी में बाल न बनाये हो वह बाल ब्रह्चारी कहलाता हैं पता नहीं कौन कितना ब्रह्मचारी हैं यह उसका निजी मामला होता हैं .आदमी कभी कभी योग से भोग की ओर चला जाता हैं .

बाबा जी का योग के माध्यम से भरत भूमि में अवतरण हुआ था लगभग २७ वर्ष पहले और अपनी प्रतिभा ,वाक्पटुता के बल पर एवं प्रचार माध्यम के द्वारा बहुत यश ,धन कमाया और करोड़ों को लाभान्वित किया .इसके बाद मार्केटिंग के माध्यम से आयुर्वेद औषधियों का निर्माण कर आक्रामक बाजारीकरण कर स्थापित किया और आज स्थापित व्यापारी और निर्माता बन गए .

बाबा जी आपके आने के पूर्व मतलब १९९३ के पूर्व इस देश में आयुर्वेद रहा हैं और उसका भारतीय जनता ने कितना लाभ प्राप्त किया और आज कितने लोग लाभ प्राप्त कर पा रहे हैं बाबाजी वर्तमान में भारत में मुख्य चिकित्सा एलॉपथी हैं ,उसमे कुछ खामियां हो सकती हैं पर वह ही आज जनता के सेवा में अग्रणी हैं .आपके द्वारा बनाया गया शोध संसथान बहुत अच्छा हो सकता हैं पर वह अंतिम नहीं हैं .

भारत वर्ष में आयुर्वेद कॉलेजों ,संस्थानों ,डिस्पैंसरीएस की स्थिति और चिकित्सकों का ज्ञान कितना श्रेष्ठ हैं और कितने कर्तव्यपरायणं इसका अंदाजा आपको कम होगा .आयुर्वेद विभाग का बजट और उसका उपयोग कितना ,कैसा होता हैं ,औषधियों की गुणवत्ता कैसी हैं वह आप भी अच्छे से जानते हैं और लेखक भी . वर्ष १९६९ से मध्य प्रदेश के आयुर्वेद विभाग के अंतरगत विभिन्न पदों कार्यरत रहा हैं और सब क्षेत्रो में काम किया हैं .गुणवत्ता का फल मरीज़ों के लाभ से मिलता हैं नाकि निर्माताओं के लाभ से .आज एलॉपथी विज्ञान का योगदान न होता तो हमारे देश को आबादी नियंत्रण करने की जरुरत न पड़ती .!

आयुर्वेद ,अलोपथी ,होमियोपैथी ,नेचुरोपैथी ,सिम्पैथी.एम्पैथी.टच थेरेपी म्यूजिक थेरेपी आदि सब विधाओं का अपना अपना योगदान हैं .और हमें सभी के प्रति ऋणी होना चाहिए क्या आप अपने पूरे प्रदेश को या जिले को सम्पूर्ण चिकित्सा प्रदाय कर सकते हैं . आपने भी कभी न कभी अलोपथी उपयोग की होगी, बताये न, पर आँख बंद कर चिंतन करे .
हमें हमेशा उपकारी भाव रखना चाहिए .डाकू में कुछ अच्छाइयां होती हैं आपने अलोपथी के बारे में जो कहा वह आपकी संकीर्ण मानसिकता का ञोतक हैं इससे कुछ नहीं होने वाला हैं ,सूरज पर थूकने से थूंक अपने पर ही आता हैं .

अभी अभी कुछ सुधार हुआ हैं अन्यथा इस विभाग को पुरातत्व विभाग को सौप दिया जाता तो सुरक्षित रहता .क्योकि उसका बजट अधिक रहता हैं बाबा जी यह विभाग भगवान के द्वारा बनाया गया हैं तो उसे सुधारने वाला भी भगवान हैं और जिसने सुधारने का प्रयास किया वह स्वयं भगवान के पास सिधर जाता हैं .आप स्वयं आँख बंदकर चिंतन कर सोचे क्या आप आयुर्वेद के नाम से कितना धोखा दे रहे हैं .

इससे अच्छे आपके पहले डाबर ,बैद्यनाथ ,चरक आफलिआदि आदि ने कितना महत्वपूर्ण योगदान दिया उनको नकार नहीं सकते .आज भी ९०% जनता एलॉपथी पर निर्भर हैं .आज भी आयुर्वेद का योगदान नकारात्मक हैं कारण आज भी कितने स्नातक आयुर्वेद चिकित्सा कर रहे हैं .आज जिले में कितने वैद्य हैं जो ढूढने से नहीं मिलेंगे जब डॉक्टर हैं क्षद्म चिकित्सक .

आयुर्वेद और एलॉपथी की स्थिति ऐसी हैं जैसे सहकारी बैंक और स्टेट बैंक .भवन नहीं दवाएं नहीं ड्यूटी नहीं लाखों पद रिक्त .मध्य प्रदेश में एक आयुर्वेद फार्मेसी ग्वालियर में और यूनानी फार्मेसी भोपाल में .इस करना काल में मध्य प्रदेश शासन ने इन फार्मेसी से क्या योगदान लिया ?कितना काढ़ा और दवा बनवाई .असरकारी फार्मेसी से कमीशन के आधार पर खरीदी हुई और कितनी उपयोगिता हुई .उसमे आप में शामिल हो सकते हैं .

बाबा रामदेव ने एलॉपथी को स्टुपिड( बेवकूफ )और दिवालिया साइंस कहा जिससे उनकी बेवकूफी और ज्ञान का दिवालियापन दिखता हैं .यदि आपके ऊपर शासन की छत्रछाया न होती तो अब तक जेल में होते .यदि मुझ जैसा निरीक्षक होता तो आपकी फार्मेसी बंद हो जाती हैं .काने को सब काने नजर आते हैं .

मैं आयुर्वेद चिकित्सक और सेवा निवृत उपसंचालक रहा हु स्वर्ण पदक स्नातक हूँ .मुझे बहुत कुछ मालूम हैं .बड्डपन यह हैं की दूसरों को भी सम्मान दो .अभी आपको ईश्वर न चाहे कोई शल्य की आवश्यकता पड़े तो अंत में आपको एलॉपथी शरण गच्छामि होना होगा .

आपके एक ब्यान ने आपकी ज्ञान का प्रदर्शन कर दिया और आपकी निजी जाति को उद्घाटित कर दिया .हो सकता हैं अपने प्रचार के लिया दिया गया हैं ब्यान .

विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन संरक्षक शाकाहार परिषद् (ये लेखक के निजी विचार हैं)