वर्तमान में भगवान को पाने के लिए भी प्रलोभन और लालच की बुनियाद खड़ी करनी पड़ती है- आचार्य अतिवीर मुनिराज

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22 अगस्त 2022/ भाद्रपद कृष्ण एकादिशि /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/

प्रशममूर्ति आचार्य श्री 108 शांतिसागर जी महाराज ‘छाणी’ की परंपरा के प्रमुख संत परम पूज्य आचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज का 17वां मंगल चातुर्मास 2022 हरियाणा की धर्मनगरी रेवाड़ी स्थित श्री शान्तिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र नसिया जी में धर्मप्रभावना पूर्वक चल रहा है| सारगर्भित मंगल प्रवचन श्रृंख्ला में भक्तों को सम्बोधित करते हुए पूज्य आचार्य श्री ने कहा कि आज का जीवन केवल लालच के आधार पर टिका हुआ है| जहाँ कुछ लालच है वहीं हमारा रुझान है| हमारे पास जो है उससे हम संतुष्ट नहीं हैं परन्तु हमें और कुछ भी चाहिए, यही लालच आज मानव जीवन को बर्बाद करने में लगा है| वर्तमान और भविष्य के फासले को मिलाने की पुरजोर ताकत हम लगा देते हैं| लौकिक जीवन में तो लालच की पराकाष्टा देखने को मिलती ही है परन्तु वर्तमान में भगवान को पाने के लिए भी प्रलोभन और लालच की बुनियाद खड़ी करनी पड़ती है|

लालच से भरा हुआ चित अशांत ही रहता है| अशांत चित का भगवान से सम्बन्ध जुड़ ही नहीं सकता| जीवन में हर वस्तु लालच के पीछे भागने से शायद मिल सकती हैं पर भगवत-प्राप्ति के लिए दौड़ना मूर्खता है| दौड़ना उसके लिए पड़ता है जो हमसे भिन्न है परन्तु ईश्वर तो सदैव हमारे साथ है| एक इंच का भी फैसला होता तो हम उसके लिए थोड़ा दौड़ लेते| उसे खोजने कहाँ जायेंगे? जिसे खोया हो उसे ही खोज सकते हैं| जो अपने पास ही हो उसे खोजने निकलेंगे तो हर हाल में भटकेंगे ही| भगवान को पाने के लिए हम नित नयी क्रियाएं करते हैं| पूजा करेंगे, प्रार्थना करेंगे, जप करेंगे, तप करेंगे – ये सब प्रयत्न हैं भगवान को पाने के लिए| परन्तु जो हमारे पास ही है, हमारा ही है, उसे पाना क्या है? भगवान को पाना नहीं है, उसे तो मात्र जानना है| एक पल के लिए भी यदि हम अपनी बाहर की यात्रा को विराम दे देंगे तो चित का आवागमन रुक जायेगा|

भीतर विद्यमान चैतन्य आत्मा ही तो भगवान है| अंतरंग में उतरने के लिए किसी लोभ की, किसी लालच की, किसी दौड़ की, किसी खोज की, किसी उपाय की अथवा किसी प्रयास की आवश्यकता ही नहीं है| उसके लिए मात्र क्रिया-शून्यता चाहिए| सभी प्रकार के प्रयासों को, लोभ, लालच, दौड़, खोज आदि को विराम देकर केवल झांकना है अपने भीतर| जब बाहर की यात्रा रुक जाएगी तो अंदर की यात्रा स्वयं ही क्रियान्वित हो जाएगी| मोक्ष मार्ग पर बढ़ने के लिए सर्वप्रथम सम्यक्दर्शन की प्राप्ति अनिवार्य है| सम्यक्दर्शन के अभाव में सभी मेहनत निष्फल है| आचार्य श्री की ओजस्वी वाणी को श्रवण कर ज्ञानपिपासुजन तृप्त हो रहे हैं| उल्लेखनीय है कि आचार्य श्री के पावन सान्निध्य में दसलक्षण महापर्व के पावन अवसर पर श्री तीस चौबीसी महामण्डल विधान का भव्य आयोजन आगामी 31 अगस्त से 9 सितम्बर तक किया जा रहा है|