क्या कभी किसी ने यह चिंतन किया कि भगवान को निर्वाण की प्राप्ति हुई तो उससे हम क्या उपलब्धि होगी, हम क्यों ख़ुशी मना रहे हैं, हम क्यों लाडू चढ़ा रहे हैं -आचार्य अतिवीर मुनि

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स्वयं के कल्याण की भावना से निर्वाण लाडू चढ़ाना हितकारी होगा – आचार्य अतिवीर मुनि

परम पूज्य आचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज के परम पावन सान्निध्य में जैन दर्शन के 23वें तीर्थंकर श्री 1008 पार्श्वनाथ भगवान का निर्वाण कल्याणक महोत्सव रविवार, दिनांक 15 अगस्त 2021 को श्री शान्तिनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर, रानी बाग, दिल्ली में भक्ति-भाव के साथ आयोजित किया गया| प्रातः काल की प्रत्युष बेला में सर्वप्रथम धर्मानुरागी बंधुओं ने श्रीजी का स्वर्ण कलश से अभिषेक कर स्वयं को धन्य किया| तत्पश्चात आचार्य श्री के मुखारबिंद से मंत्रोच्चार के साथ शान्तिधारा संपन्न की| समस्त समाज ने भक्ति-भाव से संगीतमय सामूहिक पूजन में सम्मिलित होकर पुण्यार्जन किया| तत्पश्चात उत्साह से भरपूर भक्तों ने प्रभु की भक्ति करते हुए श्रीजी के चरणों में 2.3 किलो का प्रथम निर्वाण लाडू तथा 1-1 किलो के 23 विशेष निर्वाण लाडू अर्पित किए|

इस अवसर पर धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए पूज्य आचार्य श्री ने भगवान पार्श्वनाथ स्वामी के जीवन-चारित्र पर प्रकाश डाला| अपने प्रेरक उद्बोधन में आचार्य श्री ने बताया कि पिछले दस भवों से कमठ द्वारा पार्श्वनाथ जी पर उपसर्ग किया जा रहा था परन्तु कभी भी पार्श्वनाथ जी ने कमठ का प्रतिकार नहीं किया| सदैव दया और क्षमा की प्रतिमूर्ति की भाँति कर्मों की निर्जरा में संलग्न रहे| तीर्थंकर बनने वाले जीव को कोई भी उपसर्ग तिलतुष मात्र भी डिगा नहीं सकता| धरणेंद्र इन्द्र एवं पद्मावती देवी पार्श्वनाथ भगवान पर हो रहे उपसर्ग को दूर करने में मात्र निमित्त बने| पूर्व में किये गए कर्मों का हिसाब तो सभी जीवों को स्वयं ही करना पड़ता है चाहे वह तीर्थंकर बनने वाला जीव हो, कोई साधु हो या कोई सामान्य श्रावक अथवा कोई तिर्यंच ही क्यों न हो|

आचार्य श्री ने आगे कहा कि भगवान पार्श्वनाथ जी को आज के दिन निर्वाण पद की प्राप्ति हुई जिसके उपलक्ष्य में आप सभी निर्वाण लाडू अर्पित कर रहे हैं| परन्तु क्या कभी किसी ने यह चिंतन किया कि भगवान को निर्वाण की प्राप्ति हुई तो उससे हम क्या उपलब्धि होगी, हम क्यों ख़ुशी मना रहे हैं, हम क्यों लाडू चढ़ा रहे हैं – इन सब क्रियाओं से हमें क्या हासिल होगा? यदि यह सब क्रियाएं हमने मात्र परंपरा पूरी करने के लिए सम्पादित की हैं तो उससे कोई लाभ होने वाला नहीं है| आचार्य श्री ने आगे कहा कि जिस दिन हम स्वयं के कल्याण की भावना भाते हुए और अंतरंग की विशुद्धि की ओर कदम बढ़ाने का संकल्प करते हुए निर्वाण लाडू अर्पित करेंगे, उस दिन हमारा निर्वाण लाडू चढ़ाना सार्थक हो जायेगा और वह दिन हमारे जीवन में अनेक उपलब्धियां लेकर आएगा|

पूज्य आचार्य श्री ने आगे कहा कि भगवान पार्श्वनाथ स्वामी की निर्वाण भूमि श्री सम्मेद शिखर जी की वर्तमान में स्थिति काफी चिन्ताजनक है| आज तीर्थ यात्रियों द्वारा शाश्वत तीर्थाधिराज की स्वच्छता एवं पवित्रता को खंडित किया जा रहा है| यात्रा के दौरान खाद्य पदार्थों का प्रयोग तथा कूड़े को इधर-उधर फ़ैलाने का चलन बढ़ता जा रहा है जोकि सर्वथा गलत है| आज हमें ही अपने तीर्थों के संरक्षण एवं संवर्धन की ओर ध्यान देना होगा तभी हमारे शाश्वत तीर्थ सुरक्षित रह पाएंगे अन्यथा सभी एक-एक करके हमारे हाथों से छूट जाएंगे| उल्लेखनीय है कि आचार्य श्री के पावन सान्निध्य में आगामी दिनांक 22 अगस्त 2021 को श्री श्रेयांसनाथ निर्वाण कल्याणक महोत्सव व रक्षाबंधन पर्व का आयोजन रानी बाग में किया जा रहा है|