21 सितम्बर 2022/ अश्विन कृष्ण एकादिशि /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
राजधानी दिल्ली के दिल चांदनी चौक के धर्मपुरा में सुप्रतिष्ठित परिवार के आंगन में एक तेजस्वी बालक ने दिनांक 23 सितम्बर 1965 को जन्म लिया जिसका नाम नीरज जैन रखा गया| कहते हैं कि किसी महापुरुष के जन्म लेने से पहले ही संकेत मिल जाते हैं| इस ओजस्वी बालक के जन्म के साथ ही लम्बे समय से चल रहा भारत-पाकिस्तान युद्ध समाप्त हो गया एवं चारों ओर ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी| आप बाल्यकाल से ही साहसी, दृढ निश्चयी एवं लगनशील हैं| आप सहृदयी, सरल स्वभावी, उदारचित एवं आकर्षक व्यक्तित्व के धनि हैं|
प्रशममूर्ति आचार्य श्री 108 शान्तिसागर जी महाराज (छाणी) की पट्ट परम्परा में पंचम पट्टाधीश परम पूज्य आचार्य श्री 108 विद्याभूषण सन्मति सागर जी महाराज ने अपनी पारखी नज़रों से एक अनमोल रत्न को तराशा और महावीर जयंती 2006 के अवसर पर जैन समाज को मुनि श्री 108 अतिवीर जी महाराज के रूप में एक दिव्य व अद्वितीय संत प्रदान किया| आपकी छलछलाती मंद-मंद मुस्कान हर बाल-वृद्ध को अपनी ओर सहज ही आकर्षित कर लेती है| लगभग 25 वर्षों की सतत संयम साधना से फलीभूत अथाह ज्ञान भंडार, तप-त्याग-साधना, समाज-उद्धारक मानसिकता, स्व-पर कल्याण की भावना, एकता व संगठन, साधर्मी वात्सल्य, गंभीर चिंतन, धैर्य आदि अनेकों योग्य गुणों को देखते हुए यह कहना अतिश्योक्ति ना होगी कि आप जैन धर्म के वाङ्ग्मय में एक प्रखर प्रकाश पुंज की भांति दैदीप्यमान नक्षत्र बनकर जगमगाएंगे|
पूज्य गुरुवर ने अपने प्रियाग्र शिष्य की विशेष योग्यता, दिव्यता, गंभीरता, संगठन व संचालन कुशलता तथा अल्प-समय में अभूतपूर्व धर्मप्रभावना को देखते हुए एलाचार्य पद पर प्रतिष्ठित करने की घोषणा कर भक्तों को प्रफुल्लित कर दिया| पूज्य आचार्य श्री ने अपने शिक्षा-दीक्षा वरदहस्त कर-कमलों द्वारा शरद पूर्णिमा 2009 के पुनीत प्रसंग पर आपको विधि-विधान पूर्वक एलाचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया| आचार्य श्री द्वारा दीक्षित समस्त शिष्य समुदाय में आप एकमात्र ऐसे शिष्य हैं जिन्हें उन्होंने स्वयं कोई पद प्रदान किया है।
गहन चिंतक, विचारक, प्रवचनकार व कुशल मार्गदर्शक के रूप में आपने अल्पसमय में ही जैन समाज को नयी दिशा प्रदान करने की सार्थक पहल की| आप हर उस कार्य को सहजता से कर लेते हैं जिसके लिए जैन समाज एक सही नेतृत्व का इंतज़ार करता रह जाता है| युवा पीढ़ी को कुशलतापूर्वक सही दिशा में अग्रसर करने में आपके हर कदम पर हज़ारों युवा चलने को तैयार हो जाते हैं| आने वाला कल जिनके हाथों में है, उनको सही दिशा में आगे बढ़ाने की कला के भण्डार हैं| स्पष्ट सोच, स्वच्छ कार्यप्रणाली, निश्चित दिशा, हर विचार को यथार्थ में सहजता से अग्रसित कर देती है|
आपके द्वारा विभिन्न प्रसंगों पर किये गए उत्कृष्ट कार्य श्रमण व श्रावक के लिए प्रेरक उदाहरण हैं| जहाँ एक ओर ख्याति-लाभ-पूजा का जबरदस्त बोलबाला है वहीँ आपने सन 2010 में दिल्ली के लाल किला के सामने परेड ग्राउंड में आयोजित समारोह के मध्य जीवनपर्यन्त अपनी दीक्षा जयंती व जन्म जयंती ना मनाने दृढ़ संकल्प लेकर सभी को स्तब्ध कर दिया| गुरुवर द्वारा ही आपको आचार्य पद से सुशोभित किया जाना था परन्तु अचानक ही उनके समाधिमरण हो जाने से यह कार्य अधूरा रह गया|
गुरुवर की असीम अनुकम्पा से गुरुभ्राता परम पूज्य सल्लेखनारत आचार्य श्री 108 मेरु भूषण जी महाराज ने अपने परम प्रभावक अनुज-भ्राता एलाचार्य श्री 108 अतिवीर जी महाराज को श्रमण परंपरा के वर्तमान में सर्वोच्च पद आचार्य पद पर प्रतिष्ठित करने की घोषणा की| आपकी विलक्षण प्रतिभा व विशेषताओं को देखते हुए पूज्य आचार्य श्री द्वारा वर्ष 2020 में हजारों गुरुभक्तों के समक्ष तथा अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन शास्त्री परिषद् के विद्वानों की अनुमोदना के साथ विधि-विधान पूर्वक आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया।
परम पूज्य आचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज के श्रीचरणों में 58वें जन्म दिवस के पुनीत अवसर पर शत-शत नमन…
संकलन – समीर जैन (दिल्ली)