चक्रवर्ती भरत भगवान की 31 फीट उत्तुंग प्रतिमा देशभर में 108 स्थानों पर विराजित की जाएगी: ऐतिहासिक मंगल मिलन पर घोषणा

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राजधानी दिल्ली के नवोदित तीर्थ चक्रवर्ती भगवान भरत ज्ञानस्थली दिगम्बर जैन तीर्थ, बड़ी मूर्ति, क्नॉट प्लेस में प्रशममूर्ति आचार्य श्री 108 शान्तिसागर जी महाराज ‘छाणी’ की परम्परा के प्रमुख संत परम पूज्य आचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज का प्रथम बार आचार्य श्री 108 अनेकांत सागर जी महाराज ससंघ एवं गणिनी प्रमुख आर्यिका श्री 105 ज्ञानमति माताजी ससंघ से भव्य मंगल वात्सल्य मिलन हुआ| इस अवसर पर भारी संख्या में उपस्थित गुरुभक्तों ने संत-मिलन के इन अद्भुत पलों के साक्षी बनकर स्वयं को धन्य किया| प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री 105 चंदनामती माताजी व पीठाधीश श्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी ने आचार्य श्री के चरणों में सादर नमन करते हुए इस ऐतिहासिक मंगल मिलन की बेला को जैन समाज के लिए अविस्मरणीय व सुखद बताया|

गणिनी आर्यिका श्री 105 ज्ञानमति माताजी ने सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि लगभग 20 वर्षों के पश्चात् हमारा राजधानी दिल्ली में आगमन हुआ है, इस लम्बे अंतराल के मध्य दिल्ली का ही एक बालक अतिवीर बन गया जो वर्तमान में जैन धर्म की पताका को नित नयी ऊंचाइयों पर ले जाने में सक्षम हैं| आचार्य श्री का वात्सल्य प्राप्त कर आज ऐसा लग रहा है जैसे हमें बड़ा भाई मिल गया हो| माताजी ने आगे कहा कि वह माँ अत्यंत पुण्यशाली होगी जिसकी कुक्षी से ऐसे तेजस्वी बालक ने जन्म लिया| आचार्य श्री अतिवीर जी मुनिराज का विराट व्यक्तित्व तथा विलक्षण सोच अकल्पनीय है|

इस अवसर पर आचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज ने कहा कि जैन साधुओं की परंपरा में आर्यिकाओं में आर्यिका श्री सुपार्श्वमती माताजी, आर्यिका श्री विशुद्धमती माताजी, आर्यिका श्री स्याद्वादमति माताजी व आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी के रूप में चार मजबूत स्तम्भ हैं जिनमें से तीन स्तम्भ को हम खो चुके हैं| अंतिम स्तम्भ आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी के पास अथाह अनुभव व ज्ञान का भंडार विद्यमान है| हमारा परम सौभाग्य है कि अपना दिशा-निर्देश व अनुभव प्रदान करने के लिए हमारी माताजी हम सबके मध्य आज उपलब्ध हैं| आचार्य श्री के आगे कहा कि दिल्ली वासियों को माताजी का जितना स्नेह व आशीर्वाद प्राप्त हुआ है, शायद ही वह अन्य किसी राज्य को मिला होगा|

राजधानी दिल्ली में माताजी के आशीर्वाद की चिरस्थायी स्मृति बनाये रखने के उद्देश्य से हम सभी को साथ मिलकर एक कीर्तिस्तम्भ का निर्माण इस क्षेत्र में करना चाहिए| आचार्य श्री ने आगामी शरद पूर्णिमा पर माताजी के जन्मदिवस के अवसर पर दिल्ली में विराजित सभी साधु-साध्वियों के मंगल सान्निध्य में ऐतिहासिक संत सम्मलेन करवाने की घोषणा की जिसकी सभी ने करतल ध्वनि से अनुमोदना की| इस सम्मलेन के मध्य ही कीर्तिस्तम्भ का शिलान्यास भी किया जायेगा तथा दिल्ली जैन समाज द्वारा माताजी का भव्य गुणानुवाद समारोह का आयोजन होगा| आचार्य श्री ने आगे कहा कि जिन भरत भगवान के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा, ऐसे चक्रवर्ती भगवान भरत स्वामी की 31 फीट उत्तुंग प्रतिमा देशभर में 108 स्थानों पर विराजित की जानी चाहिए जिससे कि जैन धर्म की कीर्ति का यशोगान युगों-युगों तक होता रहे| पूज्य आचार्य श्री अनेकांत सागर जी महाराज ने भी समर्थन करते हुए समस्त समाज को इन ऐतिहासिक कार्यों में तन-मन-धन से सहयोग करने हेतु प्रेरित किया|