सान्ध्य महालक्ष्मी / 10 नवंबर 2021
नये वीर संवत की शुरूआत के आठवें दिन यानि कार्तिक शुक्ल अष्टमी (इस वर्ष 11 नवम्बर) से वर्ष में तीन बार आने वाले अनादि निधन पर्व अष्टाह्निका की शुरूआत हो जाती है। अधिकांश पर्व मनुष्यों के द्वारा मनाये जाते हैं, संभवत: कल्याणकों के अलावा यह एक मात्र पर्व है, जिसे देव मनाते हैं, अपने-अपने घर में या अपने स्थान के मन्दिरों में नहीं, वहां से दूर उर्ध्वलोक से मध्यलोक में आकर।
जी हां, इस मध्य लोक के आठवें द्वीप नंदीश्वर द्वीप पर आकर, वह द्वीप जिसका व्यास यानि लम्बाई सुनकर ही आप चौंक जाएंगे, पहले अपनी पृथ्वी की व्यास जाने लें, यह है 12742 किमी और नंदीश्वर द्वीप का व्यास है 163 करोड़ महायोजन। अभी नहीं समझ पाएंगे, किमी में बदलते हैं, 12 हजार किमी की एक महायोजन होता है, यानि पृथ्वी लगभग एक महायोजन की है, अब इससे 163 करोड़ गुना है नंदीश्वर द्वीप, सपने में भी विस्तार की कल्पना नहीं की जा सकती।
उस द्वीप के चारों दिशाओं में एक-एक पर्वत है अंजन गिरि, जो पृथ्वी के कुल आकार से 84 हजार गुना ज्यादा विस्तार वाले हैं। उसके चारों ओर पृथ्वी से दस हजार गुना के 4-4 पर्वत (दधिमुख) हैं और उन चारों के दायें बायें 1-1 पृथ्वी के आकार का यानि कुल आठ पर्वत (रतिकर) है यानि कुल 13 पर्वत एक दिशा में और सभी के शिखर पर 1-1 विशाल मन्दिर है। हां, वहां कोई मनुष्य नहीं जा सकता, अरे मनुष्य तो इस छोटे-से दिख रहे अंतरिक्ष में भी कुछ दूर तक जा पाता है। ढाई द्वीप की बाउण्ड्री बनी है, मानुषोत्तर पर्वत, वहां तक भी विद्याधर या चारणऋद्धिधारी मुनि ही जा सकते हैं। बाउण्ड्री यहां से लगभग साढ़े 22 लाख योजन दूर है, अब गुणा कर लीजिये 12 हजार से तो, किमी में जान लेंगे।
हां, तो इस द्वीप की प्रत्येक दिशा के 13-13 शिखरों पर 1-1 मंदिर है, और उसमें 108-108 प्रतिमायें हैं, आप सोचोंगे, इसमें क्या है? हमारे मंदिरों में तो 4 से 8 फुट में 1008 प्रतिमाओं का सहस्त्रकूट बन जाता है, कई मंदिरों में 2 से 4 हजार प्रतिमायें भी हैं, जी हां, ये प्रतिमायें 4-6 इंचों में या एक डेढ़ फुट की होती है। हम मांगीतुंगी की 108 फुट की ऊंची प्रतिमा पर वर्ल्ड रिकॉर्ड मान लेते हैं, वहां की प्रतिमा का आकार सोचिए, वो है, 6000 फुट की, और वो खड्गासन नहीं, पदमासन है और इन 52 विशालकाय अकृत्रिम चैत्यालयों की 6000 फुटी ऊंची 5616 प्रतिमाओं की देव दिन-रात चौबीस घंटे लगातार 8 दिन यानि 192 घंटे पूजा करते हैं, वहां रत्नमयी प्रकाश होता है, हमारी पृथ्वी के ऊपर दमकते सूर्य से करोड़ों गुना रोशनी रहती है हर समय। बस उसी का प्रतीक, हम अपने मंदिरों में 8 दिनों में चंद घंटे अष्टाह्निका पर्व मनाते हैं – कार्तिक, फाल्गुन, आषाढ़ के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से पूर्णिमा तक।