जिन वृक्षों के नीचे ऋषभदेव आदि तीर्थंकरों को केवलज्ञान प्राप्त हुए हैं , वे ही अशोक वृक्ष हैं।जैसे आदिनाथ प्रभु को वट वृक्ष के नीचे केवलज्ञान हुआ है। उसी तरह बाकी तीर्थंकरों के जो-जो ज्ञानवृक्ष हैं वे ही शोक निवारक अतिशय से युक्त होने से अशोक वृक्ष कहे जाते हैं।
चौबीस तीर्थंकरों के भिन्न-भिन्न अशोक वृक्ष हैं।
आदिनाथ जी – न्यग्रोथ (वट)
अजितनाथ जी – सप्तपर्ण (सप्तच्छद)
संभवनाथ जी – शाल
अभिनन्दन नाथ जी – सरल
सुमतिनाथ जी – प्रियंगु
पद्मप्रभु जी – प्रियंगु
सुपार्श्वनाथ जी – शिरीष
चन्दप्रभ जी – नागवृक्ष
पुष्पदंत जी – अक्ष (बहेड़ा)
शीतलनाथ जी – धूली (भालिवृक्ष)
श्रेयांसनाथ जी – पलाश
वासुपूज्य जी – तेन्दु
विमलनाथ जी – पाटल
अंनतनाथ जी – पीपल
धर्मनाथ जी – दधिवर्ण
शांतिनाथ जी – नन्दी
कुन्थुनाथ जी – तिलक
अरहनाथ जी – आम्र
मल्लिनाथ जी – कंकेली
मुनिसुव्रत नाथ जी – चम्पक
नमिनाथ जी – बकुल
नेमिनाथ जी – मेष श्रृंग
पारसनाथ जी- धव
महावीर स्वामी जी – शाल
ये सभी अशोक वृक्ष तीर्थंकर भगवान की ऊँचाई से 12 गुणें होते हैं।
वह महान अशोक वृक्ष मरकत मणि के बने हूए हरे-हरे पत्ते और रत्नमय चित्र विचित्र फूलों से अलंकृत होता है।
बाल ब्रम्हचारी राजेश चैतन्य अहमदाबाद
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