13 दिसंबर : 18वें तीर्थंकर अरनाथजी का तप कल्याणक

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84 हजार वर्ष की आयु वाले श्री अरनाथजी भगवान का जन्म 17वें तीर्थंकर श्री कुंथुनाथ जी के एक हजार करोड़ वर्ष कम चौथाई पल्य बीत जाने के बाद हुआ।
180 फुट ऊंचे कद वाले तथा तपे सोने जैसी काया वाले अरनाथ जी ने 21 हजार वर्ष के कुमार काल के बाद 42 हजार वर्ष राज्यभार संभाला। आप लगातार तीसरे तीर्थंकर हैं, जिनके हस्तिनापुर में ही गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान कल्याणक हुए।

सर्दियों के दिन थे, तब राजमहल की छत से आसमान में आते-जाते बादलों को देखकर, उनका यूं ही नष्ट हो जाना, बस यही दृष्य देख उनमें वैराग्य का बीज अंकुरित हो गया। बस तुरंत निसार समझ अपने पुत्र अरविंद को राजपाट सौंप हस्तिनापुर के सहेतुक वन में वैजयंती पालकी से पहुंच गये, वह दिन था मंगसिर शुक्ल दशमी (इस वर्ष 13 दिसम्बर को है),

अपराह्न काल का समय और आपको वैराग्य को देख एक हजार और राजा भी आपके साथ तप के लिये अग्रसर हो गये। रेवती नक्षत्र में, अपराह्न काल में पंचमुष्टि केशलोंच कर, आम्रवृक्ष के नीचे आप कठोर तप में लीन हो गये। तीन दीक्षोपवास के बाद चक्रपुर के राजा अपराजित ने दूध की खीर के रूप में महामुनिराज अरनाथ को प्रथम आहार का सौभाग्य प्राप्त किया और तब उनके महल में देवों ने पंचाश्चर्य प्रकट किये।

आपने 16 वर्ष तक कठोर तप किया। बोलिये तीर्थंकर श्री अरनाथ जी के तप कल्याणक की जय-जय-जय।