5वें चक्रवर्ती, 12वें कामदेव के रूप में 16वें तीर्थंकर श्री शांतिनाथ जी को सब जानते हैं, पर उनके बाद हस्तिनापुर में ही गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान कल्याणक वाले अगले दो तीर्थंकर भी चक्रवर्ती और कामदेव थे, ये बहुत कम जानते हैं।
वर्तमान काल में हस्तिनापुर ही ऐसी एकमात्र धरा है, जहां एक के बाद एक, तीन तीर्थंकरों के 4-4 कल्याणक होते हैं और तीनों ही चक्रवर्ती और कामदेव होते हैं, ऐसी अन्य कोई धरा नहीं है।
छठे चक्रवर्ती, 17वें तीर्थंकर श्री कुंथुनाथ जी के मोक्ष जाने के एक हजार करोड़ वर्ष कम चौथाई पल्य बीत जाने पर जन्म हुआ था, उस जीव का, जो अपराजित स्वर्ग में आयु पूर्ण कर हस्तिनापुर में महाराज श्री सुदर्शन जी की महारानी श्रीमती मित्रसेना के गर्भ से जन्मे, वो दिन था, मंगसिर शुक्ल चतुर्दशी, (जो इस वर्ष 17 दिसंबर को है) का। इस दिन तक, पिछले 15 माह से लगातार उनके महल पर, दिन के तीनों पहर, सुबह-दोपहर-शाम साढ़े तीन-साढ़े तीन करोड़ रत्नों की वर्षा करता रहा कुबेर, जो पूरे लोक के लिए संकेत था, कि यहां एक ऐसे जीव का जन्म होने वाला है, जो तीनों लोकों का अधिपति होगा, सबका कल्याण करेगा।
आपका कद 180 फुट ऊंचा, तपे सोने जैसा रंग और आयु 84 हजार वर्ष थी। आपकी सुंदरता ऐसी कि कहलायें 14वें कामदेव और 21 हजार वर्ष के कुमार काल के बाद आपने 42 हजार वर्ष राज्य संभाला और 14वें चक्रवर्ती बनें।
मंगसिर शुक्ल चतुर्दशि सोहे, गजपुर-जनम भयो जग मोहे।
सुर-गुरु जजे मेरू पर जाई, हम इत पूजै मन-वच-काई।।
16 वर्ष के तप के बाद आपको केवलज्ञान की प्राप्ति हुई और फिर 20,984 वर्ष तक जगह-जगह कुबेर द्वारा रचे समोशरणों में अपनी दिव्य ध्वनि से लोक के कल्याण की बात कर पावन तीर्थ सम्मेद शिखरजी की नाटक कूट से आठों कर्मों को नष्ट कर सिद्धालय में विराजमान हो गये।
बोलिए 18वें तीर्थंकर श्री अरनाथ जी के जन्म कल्याणक की जय-जय-जय।