15 नवंबर : कार्तिक शुक्ल द्वादशी : तीर्थंकर अरनाथ जी ज्ञान कल्याणक

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सान्ध्य महालक्ष्मी / 14 नवंबर 2021
17वें तीर्थंकर श्री कुंथनाथजी के एक हजार करोड़ वर्ष कम चौथाई पल्य के बाद, श्री अरनाथजी का भी हस्तिनापुर में महाराजश्री सुदर्शन जी की महारानी श्रीमती मित्रसेना के गर्भ से मंगसिर शुक्ल चतुर्दशी को जन्म हुआ। 180 फुट ऊंचा कद और 84 हजार वर्ष की आयु थी। आपका कुमार काल 21 हजार वर्ष और फिर 42 हजार वर्ष तक राज्य किया।

सोने के तपे रंग के आप और एक दिन राजमहल की छत से शरद ऋतु के बादलों को नष्ट होता देख वैराग्य भावना बलवती हो गई और मंगसिर शुक्ल दशमी को हस्तिनापुर के सहेतुक में पंचमुष्टि केश लोंच करके आम्र वृक्ष के नीचे तप में लीन हो गये। आपको देख एक हजार और राजाओं ने भी दीक्षा ग्रहण की। आपको प्रथम आहार, दूध की खीर के रूप में चक्रपुर नगर के राजा अपराजित ने दिया।

सोलह वर्ष के कठोर तप के बाद आपको कार्तिक शुक्ल द्वादशी (जो इस वर्ष 15 नवम्बर को है) को अपराह्न काल में सहेतुक वन के आम्र वृक्ष के नीचे केवलज्ञान की प्राप्ति हुई।

सौधर्म इन्द्र की आज्ञा से कुबेर ने 42 किमी विस्तृत समोशरण की तत्काल रचना कर दी और 20,984 वर्ष तक आपकी दिन में तीन बार दिव्य ध्वनि खिरती रही। प्रमुख गणधर कुंभ के साथ कुल 30 गणधर, 50 हजार ऋषि, 610 पूर्वधर मुनि, 45,835 शिक्षक मुनि, 2800 अवधिज्ञानी मुनि, 2800 केवली, 4300 विक्रियाधारी मुनि, 2055 विपुलमति ज्ञानी मुनि, 2800 अवधिज्ञानी मुनि, 2800 केवली, 4300 विक्रियाधारी मुनि, 22055 विपुलमति ज्ञानी मुनि, 1600 वादी मुनि, 60 हजार आर्यिकायें, एक लाख श्रावक, 3 लाख श्राविकायें और अनेक तिर्यंचों तक 18 प्रमुख व 700 लघु भाषाओं में दिव्य ध्वनि पहुंचती थी, अर्धमागधी देवों के द्वारा।

चैत्र कृष्ण अमवास को प्रत्यूष बेला में श्री सम्मेदशिखरजी की नाटक कूट से आप सिद्धालय पुहंच गये। आपका तीर्थ प्रवर्तन काल नौ अरब 99 करोड़ 99 लाख 66 हजार वर्ष रहा।
बोलिये तीर्थंकर श्री अरनाथ जी के ज्ञानकल्याणक की जय-जय-जय।