कहां हैं अनुभव सागर? क्या उनको दे दी दीक्षा? दी तो किसने दी? या फिर इतिहास वही दोहराया जाएगा जो जनवरी 2018 में गिरनार में हुआ था?

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20 मई 2022/ जयेष्ठ कृष्णा पंचमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/

आज जैन समाज फिर, उस चौराहे पर खड़ा है, जहां से न्याय – अन्याय, सही और गलत, सच और झूठ, नकाब और बेनकाब , दोनों तरफ जाने के रास्ते खुलते हैं । चतुर्विध संघ- चारों दिशाओं में मुंह करके खड़ा है, जिस रथ के चार पहिए एक ही दिशा में ले जाने के लिए ,नेतृत्व कुशल सारथी हुआ करता था। आज वह नेतृत्व विहीन , दिशाहीन होकर, बढ़ने की कोशिश में, ऊपर की बजाय , नीचे की ओर जाता जा रहा है।

अगर वर्तमान घटनाओं का जायजा ले, तो इतिहास यही कहता है कि जब -जब परमेष्ठी पद , तीसरे, चौथे या पांचवें पद में , कभी भी इस पंचम काल के, पिछले 10- 15 वर्षों में कोई गलती सामने आई है , तो उसको ढकने के लिए , सदा एक वर्ग तैयार रहा है। यहां तक कि पूरे विश्व को सही दिशा बताने वाले , गुरु भी अपने शिष्य के बारे में निर्णय देते हुए डगमगा गए हैं और उचित न्याय नहीं कर पाए ।

इतिहास इसका साक्षी है और चैनल महालक्ष्मी भी , जिसने अपनी आंखों से , कई बार न्याय के ऊपर अन्याय को हावी होते देखा है। गिरनार की पटकथा उससे कहीं अलग नहीं है, चाहे फिर वह कोलकाता में लिखी गई हो या फिर पुष्पगिरी तीर्थ पर । कहीं से भी वह आवाज खुलकर नहीं आ पाई, जिसके आने की आशा समाज ने की थी । और ध्यान रखिए यह बात वर्तमान में इतनी ज्यादा खतरनाक हो गई है कि अगर अब भी हम नहीं जागे, तो वह दिन दूर नहीं , जब हमारे दिगंबर संतो के विहार पर एक प्रश्न खड़ा करने के लिए एक राजनीतिक वर्ग तैयार है और तैयारी कर भी रहा है । वह जैन दिगंबर संस्कृति को, उसी जगह पीछे धकेलना चाहता है , जो आचार्य शांतिसागर जी द्वारा शुरू होने से पहले की स्थिति थी

अब सवाल यह उठता है कि क्या अजमेर की घटना के बाद पुनः वही इतिहास दोहरा दिया जाएगा ? क्योंकि कुछ देर हमारी आवाज उठती है , गले से बाहर निकलती है और फिर सरकारी फाइल की तरह , जो एक कोने में दबकर धूल फांकती रहती है। जैसे वह फाइल , ऐसे ही हम मौन हो जाते हैं । क्या नवीनतम केस में , जिसमें अनुभव सागर ने स्वयं अपने आप वस्त्र धारण कर लिए थे और यही शब्द कहे थे कि मैं ऐसी घटना को देखते हुए , मुनि वेश में नहीं रहना चाहता हूं , मुनि पद की गरिमा को नीचे नहीं करना चाहता हूं ।क्या अब उस कथा को भी , पुरानी कथाओं का रंग दिया जा रहा है ?

चैनल महालक्ष्मी के सामने समय-समय पर यह तक चर्चा है कि उन्हें आचार्य अनेकांत सागर जी ने कूंचा सेठ में दीक्षा दे दी या फिर कुंथलगिरी में आचार्य कुंथुसागर जी ने उन्हें दीक्षा दे दी। दोनों ही बातें पूरी तरह झूठ और अफवाह मात्र थी।

पर क्या अब अनुभव सागर को दीक्षा दे दी गई है, या नहीं दी गई है? , या उसी तरह की पटकथा लिखी जा रही है जो कभी जनवरी 2018 के अंदर, गिरनार जी में लिखी गई थी ?यानी अपना ही निर्णय लिखकर, पंचों से उसको सुना देना और उचित न्याय से दूर रखना, उस समय भी गुरु ने शिष्य का वह दोष देखा ही नहीं, ना ही शिष्य ने उसे दोष के बारे में प्रायश्चित लिया, जिसके बारे में समाज ने वीडियो, सीसीटीवी कैमरे की फुटेज देखी थी। वह बात तो दब गई और अनुचित विहार की बात को प्रायश्चित के रूप में बदल कर, अपना न्याय सुना दिया।

पर क्या, अब अनुभव सागर के लिए वही किया जा रहा है या समाज के हित को देखते हुए , सही रूप से, सही दिशा में बड़ा जा रहा है। इसमें चैनल महालक्ष्मी एक बार फिर अपना प्रयास करने चाहेगा और आपके सामने वह सब कुछ लाने का प्रयास करेंगे, जो समाज जानना चाहता है।

बस इंतजार कीजिए, शनिवार 21 मई रात्रि 8:00 बजे तक का । आपके सामने दूध का दूध और पानी का पानी, चैनल महालक्ष्मी के शनिवार 21 मई को आने वाले एपिसोड नंबर 1138 में , सब कुछ खुलासा होगा। आशा तो यही रखें , अंधेरी नगरी चौपट राजा से निकलकर, समाज यह कह सके कि आज भी न्याय में देर है, अंधेर नहीं।