शिरपुर अंतरिक्ष पार्श्वनाथ : बढ़ते तनाव के बीच, दोनों जैन संप्रदाय कैसे मिल गए गले और किन शर्तों पर होगी अब लेप की शुरुआत?

0
716

20 मार्च 2023/ चैत्र कृष्ण चतुर्दशी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/ शरद जैन/EXCLUSIVE

आज सबसे पहले संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनिराज को हृदय में विराजित कर, उनके चरणों में बारंबार नमन करेंगे कि आखिरकार उन्होंने यहां शिरपुर आकर जो जागृति की अलख जगाई , जो सब को एक सूत्र में बांधकर उस कदम की ओर बढ़ने को प्रेरित किया , यहां से अमरकंटक पहुंचने लगे, परंतु उनकी जलाई ज्योत उसी तरह प्रकाशमय वातावरण को करती रही जैसे गुमनाम गहन अंधेरे में एक दीपक करता है। बस उसी दीपक की तरह, उसके तले में अंधेरा रह गया।

जिसके चलते छोटे-छोटे तनाव से मनमुटाव बढ़ने पर, दोनों एक दूसरे को भरा बुला भी कहने लगे। ऐसे समय में निर्यातक श्रमण श्री योगसागर जी मुनिराज ने आज चैत्र कृष्ण चतुर्दशी को निर्जल उपवास कर , उन्हीं अंतरिक्ष पार्श्वनाथ की प्रतिमा जी के सामने ध्यानरत रहे कि अब तो भगवान अपने प्रकाश से, इस दीपक तले अंधेरे में भी उजाला कर दो और उधर सुलह की शर्तों पर बात करते एलेक् श्री सिद्धांत सागर जी महाराज, आपस में बैठकर सौहार्दमय वातावरण में बात बढ़ाते रहें।

सूरज की तरह आचार्य श्री का ज्ञान दमक रहा था , चंद्रमा की तरह निर्यापक श्रमण श्री योगसागर जी मुनिराज की शीतलता आ रही थी और दोनों संप्रदायों के बीच जब सुलह की बात तैयार होने लगी, तो उस पर सबसे पहले हस्ताक्षर किए एलक श्री सिद्धांत सागर जी महाराज ने और साथ में धन्यवाद के पात्र हैं श्वेतांबर संत भी, जिन्होंने मिलजुलकर आखिरकार इस कठिन रास्ते को सहजता से पूरा कर लिया । इस अंतरिक्ष पारसनाथ प्रतिमा का चरित्र स्वरूप या कहें सत्य स्वरूप को बिल्कुल नहीं बदला जाएगा ।

जैसे हैं वैसे रहेंगे। उसमें कोई बदलाव लेप के नाम पर नहीं किया जाएगा। दोनों ने कुछ शर्ते बनाई और जिन पर इकरारनामा, दोनों तरफ के हस्ताक्षर से हुआ।

क्या था वह इकरारनामा ?
और साथ में कैसे प्रतिमा की दशा है?

ऐसे अभूतपूर्व एक्सक्लूसिव चित्रों के साथ, आज उस प्रतिमा का नाप लिया गया , उसका विवरण, यह सब चैनल महालक्ष्मी मंगलवार रात्रि 8:00 के एपिसोड 1755 में आपको एक्सक्लूसिव रूप से जानकारी देगा।

सदा सही पक्ष की जानकारी देना और सबसे पहले उसको, आप सब तक पहुंचाना, चैनल महालक्ष्मी, यह सब, सभी संतो व श्रावकों के सहयोग से ही संभव कर पाता है और अब एक बार फिर, उसी अंदाज में सब कुछ एक्सक्लूसिव पहली बार।

क्या थी शर्ते इकरारनामा की?
दोनों में पहले किन बातों पर सुलह नहीं हो रही थी ?
कैसे हैं अंतरिक्ष पाश्र्वनाथ?
प्रतिमा में कहां-कहां से क्षरण हो रहा है?

पर सबकुछ में प्रमुख बात कि दोनों में से कोई, उसके मूल स्वरूप से छेड़छाड़ नहीं करेगा । जैसा उनका सत्य स्वरूप है , उसी को बनाए रखा जाएगा ।

जय हो अंतरिक्ष पारसनाथ जी की।
जय हो जैन धर्म की।
जय हो गुरुवर संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनिराज की ।
जय हो सभी संतो की।