शिरपुर के अंतरिक्ष पारसनाथ 42 सालों के लंबे इंतजार के बाद, तालों से बाहर होंगे, पर उससे पहले दावे, प्रतिदावे – किसके हैं वह

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28 फरवरी 2023/ फाल्गुन शुक्ल नवमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/

सुप्रीम कोर्ट ने 22 फरवरी को क्या अंतरिम आदेश सुनाया, उस आदेश की कॉपी के साथ पूरी जानकारी कि लेप की प्रक्रिया में कितने दिन लगेंगे , कब शुरू हो पाएगा अभिषेक? इसकी पूरी जानकारी आज मंगलवार, रात्रि 8:00 बजे के विशेष एपिसोड में देखिएगा, एक्सक्लूसिव

शिरपुर के अंतरिक्ष पार्श्वनाथ जैनों के हैं, यह सब जानते हैं। पर अब जब उनके ताले खुलने वाले हैं , तो आपस में दोनों भाइयों में खींचातान शुरू हो गया है । कोई अपने दावे कर रहा है, तो कोई दूसरे। उसी में थोड़ी जानकारी यहां प्रस्तुत है:

श्वेताम्बर मुनि शीलविजयी ने 17वीं शताब्दी में दक्षिण के तीर्थों की यात्रा की थी। उन्होंने ‘तीर्थमाला’ नाम से अपनी यात्रा का विवरण भी पुस्तक के रूप में लिखा था। उसमें उन्होंने लिखा है कि यहाँ से समुद्र तक सर्वत्र दिगम्बर ही बसते हैं

इसके पश्चात् उन्होंने सिरपुर अन्तरिक्ष को दिगम्बर क्षेत्र लिखा है। इससे पूर्व यतिवर्य मदनकीर्ति (ईसा की 13वीं शताब्दी) अन्तरिक्ष पार्श्वनाथ को स्पष्ट ही दिगम्बरों के शासन की विजय करने वाला अर्थात् दिगम्बर धर्म की मूर्ति बता ही चुके थे।

यहाँ उत्खनन के फलस्वरूप जो पुरातत्त्व उपलब्ध हुआ है, उससे भी सिद्ध होता है कि ये मंदिर और मूर्तियाँ दिगम्बर आम्नाय की हैं प्रथम उत्खनन 1928 ई. में हुआ था। सिरपुर गाँव के बाहर पश्चिम दिशा की ओर पवली मंदिर है। मंदिर की दीवार के इर्द गिर्द पक्के फर्श के ऊपर 4-5 फुट मिट्टी चढ़ गई थी

उसे सन् 1967 में हटाया गया। फलत: मंदिरके तीन ओर दरवाजों के सामने 10 x 10 फुट के चबूतरे और सीढ़ियाँ निकलीं। इसके अतिरिक्त पाषाण की खड्गासन सर्वतोभद्रिका जिनप्रतिमा, जिनबिम्ब स्तंभ, एक शिलालेख युक्त स्तंभ और अन्य कई प्रतिमाएँ निकली हैं। गर्भगृह की बाह्य भित्तियाँ भी निकली हैं,

जिनमें 18 इंच या इससे भी लम्बी, 9 इंच चौड़ी और 2 फुट 3 इंच मोटी र्इंटें लगी हुई हैं। इसी प्रकार मंदिर के अंदर गर्भगृह के सामने पत्थर के चौके लगाने के लिए खुदाई की गई। खुदाई में दिनाँक 6-3-1967 को 11 अखण्ड जैन मूर्तियाँ निकलीं। इनमें एक मूर्ति मूँगिया वर्ण की तथा शेष हरे पाषाण की है

सभी के पाद पीठ पर लेख उत्कीर्ण हैं। इन लेखों में आचार्य रामसेन, मलधारी पद्मप्रभ, नेमिचन्द्र आदि का नामोल्लेख मिलता है, जो दिगम्बर आचार्य थे। इन मूर्तियों, स्तंभों और लेखों में एक भी वस्तु श्वेताम्बर सम्प्रदाय से संबंधित नहीं है, सभी दिगम्बर मान्यता के अनुकूल हैं,

पुरातत्त्व-विभाग के पूर्वांचल की सर्वे रिपोर्ट (17-04-1973) में लिखा है-सिरपुर का प्राचीन मंदिर अंतरिक्ष पार्श्वनाथका है तथा वह दिगम्बर जैनों का है।
मंदिर का निर्माण दिगम्बर धर्मानुयायी ऐल श्रीपाल ने कराया, मूर्तियों के प्रतिष्ठाकारक और प्रतिष्ठाचार्य दिगम्बर धर्मानुयायी रहे हैं। मूर्तियों की वीतराग ध्यानावस्था दिगम्बर धर्मसम्मत और उसके अनुकूल है।