वैशाख सुदी तृतीया- सर्वोत्तम मुहूर्त- बिना मुहूर्त देखे शोधे भी बड़े से बड़े मांगलिक कार्य- अक्षय तृतीया नाम क्यों पड़ा

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21 अप्रैल 2023/ बैसाख शुक्ल एकम/चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
जिस दिन भगवान का आहार हुआ था उस दिन वैशाख सुदी तृतीया थी। अतः उस दान के प्रभाव से ही वह अक्षय तृतीया इस नाम से आज तक इस भारत भूमि में प्रचलित है क्योंकि जहां पर भगवान का आहार होता है वहां पर उस दिन भोजनशाला में सभी वस्तु अक्षय हो जाती है अत: इसका यह नाम सार्थक हो गया है । वह दिन इतना पवित्र हो गया कि आज तक भी बिना मुहूर्त देखे शोधे भी बड़े से बड़े मांगलिक कार्य इस अक्षय तृतीया के दिन प्रारम्भ कर दिये जाते हैं। सभी सम्प्रदाय के लोग भी इस दिन को सर्वोत्तम मुहूर्त मानते हैं। इसमें किसी प्रकार का संदेह नहीं है। यह है आहार दान का माहात्म्य जो कि सभी की श्रद्धा करने योग्य है l

हे चिर सनातन, हे पुरुष प्रधान ,हे पुरातन , विश्व क्षितीज के गौरव ,अमल श्रद्धा भावना से ,कर रहे अभिवदंन ,
माता मरुदेवा की कुक्षि से मिला जगत को नव स्पंदन ।

अंबर की आभा न्यारी ,वसुधा की विभुता अपार ,
प्रथम प्रणेता,ऋषभ नाथ का मान रहा आभार ।

जिदंगी का राज देकर , करा सृष्टी कल्याण ,
बाँध सुदंर नीतियो सब, मनुज जीवन को दिया वरदान ।

संयम पथ पर राही बनकर, धर्म मे लाये नव निखार
नव सूत्र से इतिहास बना, साधना से फैला नव्य निखार ।

वर्षीतप में घूम रहे थे , माता मरूदेवा के लाल ,
जनता हरपल लाकर देती , नीत नये उपहारो के थाल ।

हाथी घोडे़ लाते रहे सब, जो प्रभु को न थे स्वीकार,
राजमार्ग पर चलते रहे, कर अनशन स्वीकार ।

स्वप्न श्रेयांश का हुआ साकार, ईक्षु कलश बहराने का ,
अहोदानम् अहोदानम् की गुजिंत हुयी झंकार ।

वर्षीतप का हुआ समापन,और फिर से प्रारंभ ,
तेज साधना से तेजोमय ,धर्म में कीर्ती स्तंभ ।

सुपात्रदान की महीमा विश्रुत , सब शास्त्रो ने हे गायी ,
प्रभु के पारणे से जग में खुशियॉ छाई, आखातीज ये पर्व मनाये ।।