पशुओं तक का आहार देखने मात्र से खुल गया मोक्ष का मार्ग, आज हम लोग आहार देने से कतराते हैं,कभी डरते हैं, कभी समय नहीं, का बहाना बनाते हैं

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20 अप्रैल 2023/ बैसाख कृष्ण अमावस /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/

यह तो सभी जानते हैं कि प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ चैत्र कृष्ण नवमी को 4000 राजाओं के साथ पंच मुष्टि केशलोंच कर कायोत्सर्ग मुद्रा में ध्यानरत हो गये और 6 माह का संकल्प लिया। इस बीच शेष सभी तो भूख प्यास से विचलित हो गये, पर श्री आदिनाथ महामुनिराज को भूख प्यास विचलित नहीं कर पाई, तब भी वे आगे मुनिराजों की आहार चर्या के लिये आवश्यक नवधा भक्ति की परम्परा के लिये आहार हेतु विहार करने लगे। पर उस समय किसी को नवधा भक्ति का ज्ञान नहीं था। इस तरह आहार हेतु विहार करते हुए 7 माह 8 दिन और बीत गये। तब आया दिन बैसाख शुक्ल की तृतीया (जो इस वर्ष 22 अप्रैल को है) तब 399वें दिन उन्हें हस्तिनापुर के राजकुमार श्रेयांस व बड़े भाई राजा सोमप्रभ के साथ पूर्व जाति संस्मरण से नवधा भक्ति के साथ उन्हें इक्षुरस के रूप में इस युग का प्रथम आहार दिया और तब पंचाश्चर्य प्रकट हुये और वह दिन अक्षय तृतीया के रूप में आज तक मनाया जाता रहा है।

वह दिन जो ‘अक्षय’ कर दे, ऐसा प्रताप है महामुनिराजों को आहार कराने का। वर्तमान में हम मुनिराजों के आहार से होने वाले पुण्य संचयन को नहीं समझ पा रहे।
खैर यह तो सबको मालूम है। पर राजकुमार श्रेयांस ने जो आठ भव पूर्व नवधा भक्ति से आहार देने की धटना का स्मरण किया, तब के बारे में अधिकांश नहीं जानते होंगे। कहा जाता है कि किसी से आज हमारा रिश्ते का संबंध है, वो पिछले संपर्कों और कर्मों के कारण ही होता है।

वह समय था 8 भव पूर्व का, जब तीर्थंकर श्री आदिनाथ थे महाराज वज्रसंघ और राजकुमार श्रेयांस उनकी महारानी श्रीमती। दोनों वन से गुजर रहे थे, तब वज्रसंघ के साथ उनके चार साथी भी थे। तब चारण ऋद्धिधारी युगल मुनिराज – दमधर और सागरसेन जा रहे थे, उनका वन में ही आहार लेने का संकल्प था। जैसे ही वे दो राजा वज्रसिंह के डेरे के पास पहुंचे, तब वज्रसंघ और श्रीमती ने दोनों को नवधा भक्ति से पड़गाहन कर आहार कराया। आहार उपरांत वज्रसंघ ने युगल मुनि से अपना व श्रीमती का अतीत जानना चाहा। उन्होंने दोनों के पूर्व के 4-4 भव बता दिये। वज्रसंघ तीर्थंकर आदिनाथ बने और श्रीमती राजकुमार श्रेयांस, जिन्होंने आहार देकर मोक्ष पद प्राप्त किया।

पर उस समय वहां राजा वज्रसंघ के साथ चल रहे महामंत्री मतिकर, पुरोहित आनंद, सेनापति अकंपन और सेठ धनमंत्रि भी थे, चारों ही राजा वज्रसिंह को प्राणों से प्यारे थे तथा जीवन में महामुनिराजों को आहार देखते गदगद हो गये थे। ऐसी अनुमोदना का सौभाग्य विरलों को ही मिलता है।

हां, उस घनघोर जंगल में आहार को देखने वाले चार पशु भी थे, जो टकटकी लगाकर देखते रहे, जानते हैं वो कौन थे – व्याघ्र, शूकर, वानर और नेवला। ये चारों पशु क्यों बने पहले ये जान लेते हैं। व्याघ्र (सिंह) पूर्व भव में राजकुमार था, पर तीव्र क्रोध से तिर्यंच बंध किया। राजकोष से घी-चावल वेश्या को देने पर राजा से खूब मार पड़ी और मरकर सिंह बना। ये देख रहा शूकर भी पहले घमंडी मनुष्य था। विनय नहीं करता था, अप्रत्याख्यान मान से तिर्यंच बंध हुआ। पिता की बात नहीं मानी, भागते-भागते पत्थर से टकराया और मरकर शूकर बन गया।

ये वानर (बंदर) बहुत ठगी करता था, अपनी बहन के विवाह के सामान में ही मायाचारी की, मरकर बंदर बना। और यह जो नेवला है ना, यह पूर्व भव में हलवाई था। राजा मंदिर के लिये ईंटें मंगवाता, ये उनमें से कुछ अपने घर डलवा लेता। बेटे को भी चोरी करने को कहा, उसने मना कर दिया, उसकी सिर फोड़कर हत्या कर दी, फिर यह राजा से मारा गया और नेवला बना।

पर अब आठों ने निर्मल भावों से आहार की अनुमोदना की और जानते हैं आप ये आठों ही अगले भवों में उनसे जुड़े रहे और जब वज्रसिंह आदिनाथ बने तब मतिवीर महामंत्री उनका ज्येष्ठ पुत्र भरत चक्रवर्ती बने, आनंद पुरोहित कामदेव बाहुबली बने। शेष छह भी उन्हीं के पुत्र बन सिद्धालय गये। अकंपन सेनापति ऋषभसेन, धनमित्र सेठ अनंत विजय, सिंह अनंतवीर्य, शूकर अच्युत, वानर वीर तथा नेवला वरवीर नाम के पुत्र और उसी भव से मोक्ष गये।

यह है सब आहार देने और देखने का फल। अब हम लोग आहार देने से कतराते हैं। कभी डरते हैं, कभी समय नहीं, का बहाना बनाते हैं। आज ऐसा पुण्य संचयन का सौभाग्य हम स्वयं छोड़ रहे, इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है?

वज्रसिंह – श्रीमती द्वारा दिये गये आहार का चिन्तन व अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर अब तो आहार देने में आगे रहा करेंगे, यह भावना तो भा ही सकते हैं।