2 मई 2022/ बैसाख शुक्ल दौज /चैनल महालक्ष्मीऔर सांध्य महालक्ष्मी/
निर्दोष आहार चर्या बतानी है, विहार करना ही होगा, बस यही चिंतन करते वृषभदेव महामुनिराज ईयासमिति से गमन करते पोले पोले पैर रखे, वर्ना उनके चरणों के भार से, यह पृथ्वी अधोलोक में डूब गई होती।
जिस भी नगर, ग्राम, मडम्ब, खर्वट और खेतों में विहार करते, वहां के लोग आदरपूर्वक प्रणाम करते। कोई उनसे काम पूछते, कई उनके पीछे जाने लगते, कई भोग सामग्री, कई बहुमूल्य रत्न भेंट कर प्रसन्नता पूर्वक स्वीकार करने का अनुरोध करते। करोड़ों पदार्थ – करोड़ों सवारियां उनके चरणों में अर्पित करते, कोई माला, कोई वस्त्र, कोई गंध, कोई आभूषण भगवान को धारण करने का अनुरोध करते, पर वे मुद्राधारण किये, पोले-पोले पैरों से आगे बढ़ते जाते।
अज्ञानता में, कई तो अपनी कन्याओं को विवाह के लिए स्वीकार करने को कहते, कोई स्नान सामग्री – भोजन सामग्री लेकर घेर लेता, पर नवधा भक्ति से कोई नहीं पड़गाहता। हाथ जोड़ते, चरण धूलि स्पर्श करते, भोजन का अनुरोध करते, भोजन की योग्यता बताते, कोई अतिस्वादिष्ट – गरिष्ठ व्यंजन लाते, कई के आंसू नहीं रुकते, पूरे के पूरे परिवार महिलाओं सहित चरणों में आ पड़ते।
चैत्र कृष्ण नवमी को तप हेतु कायोत्सर्ग मुद्रा धारण की थी, 6 माह का संकल्प लिया था, अब तो अगले वर्ष का बैसाख माह भी आ गया। क्या कारण था चार ज्ञानधारी भी सही जगह नहीं जा पा रहे थे। क्या उनके ज्ञान में झलकता नहीं था, सब झलकता है। तो फिर क्यों? बस दिगम्बर मुनि अपने लिये, उपसर्ग निवारण हेतु कभी अपने ज्ञान का उपयोग नहीं करते। धन्य हैं ऐसे महामुनिराज।
अवधि ज्ञानी सौधर्म इन्द्र भी, चाहकर कुछ नहीं कर रहा था। ज्येष्ठ पुत्र चक्रवर्ती भरत भी, अनेकों प्रयास के बाद भी आहार देने में सफल नहीं हो पा रहा था। अयोध्या से बढ़ते आ रहे थे, महामुनिराज। पर ऐसा क्या था, हर कोई अपने-अपने प्रयास कर रहा था कि तब दिन आया बैसाख शुक्ल की तृतीया का, रोज से अलग नहीं था, वह दिन और वृषभदेव भगवान पोले – पोले चरण रखकर, कुरुजांगल देश के हस्तिनापुर में बढ़ते जा रहे थे।