पत्थर-कंकर अंगारे, राह के कांटे लागे फूल : अंगारों, कंकड़ों से गुजरते मुनि श्री अक्षयसागरजी

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ऊंचे-नीचे, कच्चे-पक्के, कैसे भी हो लक्ष्य के रस्ते, मंजिल पर जाना है, अब हर तूफान पार करना है, जंगल की आग के बीच हो, या पहाड़ियों की कंकड़ियों से गुजरना हो, जब गुरुवर के पास पहुंचना हो, तो यह कुछ नहीं देखना है।
निर्यापकाचार्य श्री योग सागरजी मुनिराज, 6 मुनि व एक क्षुल्लक के संघ के साथ 12 मार्च को साढ़े 3 बजे मुक्तागिरि से नेमावर की ओर चले, लक्ष्य एक, इरादा एक, गुरुवर के पास पहुंचना है, जितना जल्द हो।

यह चित्र में आप देख सकते हैं मुनि श्री अक्षय सागरजी को, जिनका मन बहुत अधीर हो रहा है। अपने और सबके गुरुवर से मिलने को। 12 मार्च को सायं 4 बजे के लगभग मुक्तागिरि से 4-5 किमी बाद पोतल कुंडगांव की ओर जब जंगल से गुजरे तो जंगले की पत्तियों में आग लगी हुई थी, अंगारे राह में थे। पत्तों के नीचे नुकीले कंकड़ पड़े थे और कोई उपाय नहीं, कोई रोक नहीं, निर्बाध आवागमन जारी रहा… जब गुरु से मिलने की चाह हो, तो कोई आह नहीं, कोई रुकावट नहीं।
रात को बेतुल के पोतलकुंड झोपड़ी में ठहरे और सुबह होते ही, पूरा संघ आगे बढ़ गया नेमावर की ओर।
अंगारों, कंकड़ों से गुजरते मुनि श्री अक्षयसागरजी के बारे में थोड़ा बता दें, कि 17 सालों से महाराष्ट्र में विहार कर रहे हैं, कई अजैनों को मांसाहार से शाकाहार में बदला, हिंसा करने वालों को अहिंसा की राह पर बढ़ाया। कहते भी हैं – मैं जहां भी जाता हूं, अपनी दुकान चालू कर देता हूं, ग्राहक वहां अपने आप जुड़ जाते हैं और मैं अपना माल बेचना शुरू कर देता हूं। क्या है उनका माल? माल है ज्ञान का, शाकाहार का, अहिंसा का जैन धर्म का।
धन्य है गुरुवर और उनके ऐसे शिष्य, सबको इंतजार है गुरु शिष्य मिलन का, नेमावर में। यह जानकारी दी श्री संतोष पांगल ने।