84,97,023 अकृत्रिम चैत्यालय- प्रत्येक में अरिहंत भगवान की 500 धनुष ऊँची 108 प्रतिमाएं

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जो मंदिर अनादि से हैं अंनत काल तक रहेंगे उसे अकृत्रिम चैत्यालय जी कहते हैं।
इनमें प्रत्येक में 108 प्रतिमाएं होती हैं।

ये प्रतिमाएं पद्मासन , 500 धनुष ऊँची, अरिहंत भगवान की होती है।
किसी भगवान के नाम से नही होती हैं।

ज्योतिषी देवों के विमान सूर्य, चंद्र, तारे आदि हैं एक एक विमान में एक एक चैत्यालय है इसप्रकार ज्योतिषी और व्यन्तर देवों के असंख्यात अकृत्रिम चैत्यालय जी हैं।

अधोलोक में भवनवासी देवों के भवन में 7करोड़ 72लाख अकृत्रिम चैत्यालय हैं।
मध्यलोक में 458 अकृत्रिम चैत्यालय हैं। जिसमे अढ़ाई द्वीप में 398 हैं, आठवे नंदीश्वर द्वीप में 58, 11वे द्वीप में 4 और 13वे द्वीप में 4 अकृत्रिम चैत्यालय हैं।

ऊर्ध्वलोक में 84लाख 97हजार 23 अकृत्रिम चैत्यालय हैं। (84,97,023)

जैसे ही किसी भी देव/देवी का जन्म होता है सबसे पहले अपने विमान के अकृत्रिम चैत्यालय को नमस्कार करते हैं फिर नंदीश्वर द्वीप के 52 अकृत्रिम चैत्यालय जी की वंदना करते हैं। वन्दना करते ही उनके गले में मंदार पुष्प की माला आ जाती है जब आयु 6 माह की बचती है तो वह माला मुरझा जाती है।

अष्टान्हिका महापर्व में नंदीश्वर द्वीप के चैत्यालयों की वंदना पूजा करके असंख्यात देवों को सम्यकदर्शन होता है।
वयन नहीं कहें लखि होत सम्यक धरम
भौन्न बावंन्न प्रतिमा नमो सुखकरं

नन्दन जैन