11 मार्च/फाल्गुन शुक्ल नवमी /चैनल महालक्ष्मीऔर सांध्य महालक्ष्मी/
जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ यानि भगवान ऋषभदेव (Tirthankara Of Jainism) के युग में भारतवर्ष में स्थापित अयोध्यानगरी (Golden Temple Ayodhya Nagari) के अद्भुत व स्वर्णिम दृश्य देखने हैं तो धार्मिक शहर अजमेर ही ऐसी जगह है, जहां हम उस काल के स्वर्णयुग की सैर कर सकते हैं। जी हां, अजमेर स्थित सोनी जी नसियां स्थित दिगम्बर जैन मंदिर (Digamber Jain Temple ) में देश की एकमात्र स्वर्णिम अयोध्या नगरी का निर्माण कर रखा है। जैन धर्म के किसी भी मंदिर में इस तरह की अद्भुत अयोध्यानगरी (Golden Temple Ayodhya Nagari ) की रचना नहीं है। इसलिए देश-दुनिया के लाखों लोग हर वर्ष अजमेर के सोनीजी की नसियां के जैन मंदिर (Ajmer Jain Temple ) में दर्शन करने के लिए आते हैं और यहां स्वर्णिम अयोध्या नगरी का दर्शन कर गौरवांवित महसूस करते हैं।
स्वर्णिम अयोध्या नगरी की रचना इतनी सुन्दर व कलात्मक तरीके से की गई हैं कि घंटों तक इसको देखने की इच्छा रहती है। लकड़ी व कांच पर सोने की अनूठी कारीगिरी हर किसी को आकर्षित करती है। नसिया में एक बड़े हिस्से में बनी इस अयोध्यानगरी को संत-महात्मा ही अंदर जाकर देख सकते हैं। शेष दर्शक व पर्यटक इस अयोध्या नगरी का दर्शन पारदर्शी कांच की दीवारों व खिड़कियों से ही कर सकते हैं।
सेठ मूलचंद नेमीचंद सोनी ने इसका निर्माण 1864 में शुरू कराया था, जिसे पूरा होने में २५ वर्ष लगे। सेठ भागचंद सोनी ने इसका निर्माण पूर्ण किया था। इसे श्री सिद्धकूट चैत्यालय एवं करौली के लाल पत्थरों से निर्मित होने के कारण लाल मंदिर भी कहा जाता है। नसियां में स्वर्णिम अयोध्या नगरी सर्वाधिक दर्शनीय है। भगवान ऋषभदेव ( Rishabhdev Bhagwan) के पंच कल्याणक का दृश्यांकन किया गया है। अयोध्या नगरी में सुमेरू पर्वत का निर्माण जयपुर में कराया गया था। आचार्य जिनसेन द्वारा रचित आदिपुराण पर आधारित है। मूर्तियों में स्वर्ण की परत का प्रयोग किया गया है।
यह हैं स्वर्णिम अयोध्या के पंच कल्याणक-
गर्भ कल्याणक-
माता मरुदेवी के रात्रि में 16 स्वप्न देखे थे, जिसके फलानुसार भावी तीर्थंकर का अवतरण अयोध्या में हुआ। इसमें देवविमान और माता के स्वप्न दर्शाए गए हैं।
जन्म कल्याणक-
ऋषभदेव (Bhagwan Adinath ) के जन्म पर इंद्र के आसन कंपायमान होने, ऐरावत हाथी पर बालक ऋषभवदेव को सुमेरू पर्वत ले जाने, पांडुकशिला पर अभिषेक और देवों की शोभायात्रा को दर्शाया गया है।
तप कल्याणक-
महाराज ऋषभदेव के दरबार में अप्सरा नीलांजना का नृत्य, ऋषभदेव के संसार त्याग कर दिगंबर मुनि बनने और केशलौंचन को दर्शाया गया है।
केवलज्ञान कल्याणक-
हजार वर्ष की तपस्या में लीन ऋषभदेव, कैलाश पर्वत पर केवल ज्ञान प्राप्ति, राजा श्रेयांस द्वारा मुनि ऋषभवदेव को प्रथम आहार को दर्शाया गया है।
मोक्ष कल्याणक-
भगवान ऋषभदेव (Tirthankara Of Jainism ) का कैलाश पर्वत से निर्वाण का स्वर्ण कमल दृश्य, पुत्र भरत द्वारा 72 स्वर्णिम मंदिर को दर्शाया गया है।