॰ आचार्य श्री सुनील सागर जी ने कहा- मस्जिद पहले जैन मंदिर था
॰ ढाई दिन का झोपड़ा में प्रवेश से रोका, अपशब्द
॰ डीएम कार्यालय पर प्रदर्शन व ज्ञापन
॰ आरएसएस, बजरंग दल, विस अध्यक्ष, उपमहापौर आये जैन आचार्य के समर्थन में
17 मई 2024/ बैसाख शुक्ल नवमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/शरद जैन /
‘अजमेर की मस्जिद’ उर्फ ‘ढाई दिन का झोपड़ा’ की सच्चाई देखने आचार्य श्री सुनील सागर जी 30 पिच्छी के साथ मंगलवार 07 मई को प्रात: 6.30 बजे पहुंचे, तो साथ में राष्ट्रीय स्वयं संघ और बजरंग दल कार्यकर्ताओं के साथ जैन समाज के भी लोग थे। पुरातत्व विभाग के अंतर्गत आते ढाई दिन के झोपड़ा के प्रवेश पर ही खूब अतिक्रमण हो गया, यानि जाना भी बहुत मुश्किल। आचार्य श्री सुनील सागर जी को प्रवेश पर ही रोक दिया गया और कहा बिना कपड़े अंदर नहीं जा सकते, यह हमारी मस्जिद है। अगर जाना है तो कपड़े का चारों तरफ घेरा बनाकर प्रवेश करो। काफी गर्मा-गर्मी हुई, तब आरएसएस और बजरंग दल वालों ने कड़ा रुख किया, तब प्रवेश हुआ। अगर यह कहे कि जैन लोग तो वहां बस एक-दूसरे को देखते रहे, तो गलत नहीं होगा। अपने गुरु का अपमान, शर्मसार टिप्पणियां देखकर भी उनकी चुप्पी और इस पर बाद में आचार्य श्री की टिप्पणी कि अहिंसक जैन समाज नपुंसक हो रहा है, गलत नहीं था।
उसके बाद अगले दिन अंजुमन सचिव, सैयद सरवर चिश्ती का एक अडियो वायरल हो गया, जिसमें वो कहते सुनाई दे रहें हैं कि मैंने सी आई साहब को अवगत कराया है कि यह कैसे ‘ढाई दिन का झोपड़ा’ में बिना कपड़ों के लोग अंदर चले गये, अंदर मस्जिद भी है। उन्होंने कहा कि यह बात गलत हो रही है। कभी तो आये नहीं, यहां बिना कपड़े पहने लोग।
इस टिप्पणी के बाद भी जैन समाज शांत बैठा रहा, पर विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने कहा कि सचिव सरवर चिश्ती ने जैन संतों को बिना कपड़े के कहा है, भारतीय सनातन संस्कृति में तप और तपस्वियों का सर्वोच्च स्थान है। जैन संत जीवन भर वस्त्रहीन रह कर, समाज को अपरिग्रह और तपस्यापूर्ण जीवन का संदेश देते हैं। ऐसे जैन संतों के प्रति चिश्ती का बयान दुर्भाग्यपूर्ण और विकृत मानसिकता का परिचायक है। उनकी टिप्पणी समूचे जैन समाज और सनातन संस्कृति का अपमान करने वाली है।
अजमेर के उपमहापौर नीरज जैन ने भी उन पर कड़ी टिप्पणी की है। हैरानगी तो इस बात पर है कि पुरातत्व के विभाग के अंतर्गत स्थान पर क्या एक सम्प्रदाय अवैध कब्जा बना सकता है? सरकारी विभाग भी चुप और जैन समाज भी चुप। हमारे साधु संत तो शांत रहते हैं, उपसर्ग सहते हैं। पर जैन समाज भी मौन रह गया, उपसर्ग सहते संतों को देखता रह गया।
क्या यह दिमाग में नहीं आया कि आचार्य संघ इस स्थान पर क्यों आया? सिर्फ जैन संस्कृति खोजने को, जो हमें यहां करना चाहिए, वह कर रहे हैं। यहां प्रमाण है कि यह जैन मंदिर था जब यहां से अनेक मूर्तियां मंदिरों में गई, तो यह जैन मंदिर ही रहा होगा। आज उन पर ही अपशब्द बोलते गये, दुर्व्यवहार करते रहे, पर जुबान तक नहीं हिली। अहिंसा-अहिंसा नाम जपते, हम अब अहिंसक से कायर और नपुसंक हो गये हैं।
अक्षय तृतीया के अगले दिन आचार्यश्री ने समाज को संबोधित किया कि कायरपना छोड़ना होगा। वहीं सोमवार को विभिन्न कमेटियां/ दल एक ज्ञापन लेकर जिलाधिकारी के कार्यालय पहुंच गये और सरवर चिश्ती की गिरफ्तारी की मांग करने लगा। सचमुच यह असहनीय है, कैसे हमारे सामने ही कोई हमारे संतों को बोल गया। रगो में दौड़ता खून, क्या इतना ठंडा हो गया। मंदिरों में लड़ने वाले अपनी गली में शेर बनने वाले, तीसरे के सामने क्यों गीदड़ की तरह व्यवहार करने लगते हैं, मेमने की तरह मिमियाने लगते हैं।
चिंता का विषय है, मिलकर जवाब देना होगा। उनके मन के मैल को निकालो और नहीं मानते, तो कुछ कर के दिखाओ। आचार्य श्री ने सही कहा कि अगर ऐसा दुर्व्यवहार किसी और के संत के साथ हो गया होता, तो अब तक बड़ा बवाल मच गया होता। और जैन समुदाय में कोई प्रतिक्रिया नहीं। चिंतन कीजिये क्या यह अहिंसा है या कायरपना। क्या आदि से महावीर स्वामी ने यही शिक्षा दी है। चल-अचल तीर्थों के सुरक्षा प्रहरी बनिये। कोई गलत बोले, तो उसके आगे दीवार के रूप में खड़े हो जाये, प्रतिकार करना सीखिये।