आज हमारे दूसरे तीर्थंकर देवाधिदेव 1008 श्री अजित नाथ भगवान का गर्भ कल्याणक महोत्सव है
आज ही के दिन रात्रि के पिछले प्रहर में रोहिणी नक्षत्र में विजय विमान त्याग कर भगवान ने माता विजयसेना के गर्भ में प्रवेश किया।ब्रह्म मुहूर्त के कुछ समय पहले माता ने ऐरावत आदि सोलह सपने देखे और बाद में अपने मुँह में एक मत्त हस्ती को प्रवेश करते देखा।
राजा जितशत्रु से महारानी को जब यह पता चला कि ये कोई सामान्य सपने नहीं हैं बल्कि त्रिलोकीनाथ के आगमन की पूर्व सूचना है तो महारानी के हर्ष का पारावार नहीं रहा।
आचार्य समन्तभद्र स्वामी “स्वयम्भू स्तोत्र” में भगवान अजितनाथ की स्तुति करते हुए कहते हैं
येन प्रणीतं पृथु धर्मतीर्थं ज्येष्ठा जना: प्राप्य जयन्ति दु:खम्।
गाङ्गं हृदं चन्दनपङ्कशीतं गजप्रवेका इव घर्मतप्ता: ।।
जैसे तीव्र गर्मी के आतप से पीड़ित बङे – बङे हाथी चन्दन की लेप के समान शीतल गंगा नदी के जल में नहाकर अपने क्लेश से छूट जाते हैं उसी प्रकार श्री अजितनाथ तीर्थंकर ने जिस सर्वोत्कृष्ट और विस्तृत धर्मतीर्थ का प्रणयन किया था उसे अपनाकर भव्य जीव संसार – समुद्र से पार हो जाते हैं , अर्थात् संसार के दुखों से छूट जाते हैं।
ॐ ह्लीं अर्हं श्री अजितनाथ जिनेन्द्राय नमो नमः।
सभीको देवाधिदेव १००८ श्री अजितनाथ भगवान के गर्भ कल्याणक महोत्सव की बहुत बहुत बधाइयां एवं शुभकामनाएं