कैसा था ऐरावत, जिस पर चला, इन्द्र ‘जिन’ बालक को लेकर

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ऐरावत कोई साधारण गजराज (हाथी) नहीं था, नागदत्त नामक अभियोग्य जाति के देवों ने उसकी रचना की थी। उसका मस्तक ऊंचा तथा चौड़ा था और बहुत बलवान था। उसका शरीर बहुत स्थूल और अनेक सूंडों से सुशोभित था। वह इच्छित रूप बनाने वाला था।

उसके श्वासोच्छास से सुगन्धि निकलती थी। दुन्दुभी वाद्यों की तरह शब्द करता हुआ, कर्णरूपी चंवरों से सुशोभित, दो बड़े-बड़े घंटे बंधे हुए वह बहुत ही मनोज्ञ मालूम होता था। गले को घुंघरू की मालाएं सुशोभित कर रही थी। श्वेत वर्ण और पीठ पर स्वर्ण सिंहासन जगमग कर रहा था। ऐरावत के 32 दांत थे, प्रत्येक दांत पर 32 तालाब जल से भरे हुए थे।

प्रत्येक तालाब में एक-एक कमालिनी थी, और हर कमलिनी के आसापास 32 कमल थे, प्रत्येक कमल की 32 पंखुड़ियां थीं। प्रत्येक पंखुड़ी पर अप्सरायें मनमोहक नृत्य कर रही थी, सुरीले श्रृंगार रस के गीतों से मंत्रमुग्ध कर सबको प्रसन्न कर रही थी, ऐसा शोभामान ऐरावत गजराज सौधर्म इन्द्र-इन्द्राणी के साथ देदीप्यमान ‘जिन बालक’ के साथ आकाश मार्ग से सुमेरू पर्वत की ओर बढ़ रहा था।