अफगानिस्तान में सर्वत्र जैन साधु निवास करते थे, वहाँ जैन-प्रतिमायें उत्खनन में निकलती रहती हैं

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अफगानिस्तान प्राचीनकाल में भारत का भाग था, तथा अफगानिस्तान में सर्वत्र जैन साधु निवास करते थे। भारत सरकार के पुरातत्व विभाग के भूतपूर्व संयुक्त महानिर्देशक श्री टी.एन. रामचंद्रन अफगानिस्तान गये। उन्होंने एक शिष्टमंडल के नेता के रूप में यह मत व्यक्त किया था, कि ‘‘मैंने ई. छठी, सातवीं शताब्दी के प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग के इस कथन का सत्यापन किया है, कि यहाँ जैन तीर्थंकरों के अनुयायी बड़ी संख्या में हैं। उस समय एलेग्जेन्ड्रा में जैनधर्म और बौद्धधर्म का व्यापक प्रचार था।’’

चीनी यात्री ह्वेनसांग ६८६-७१२ ईस्वी के यात्रा के विवरण के अनुसार कपिश देश में १० जैनमंदिर हैं। वहाँ निग्र्रन्थ जैन मुनि भी धर्म प्रचारार्थ विहार करते हैं। ‘काबुल’ में भी जैनधर्म का प्रसार था। वहाँ जैन-प्रतिमायें उत्खनन में निकलती रहती हैं।

हिन्द्रेशिया, जावा, मलाया, कम्बोडिया आदि देशों में जैनधर्म-

इन द्वीपों के सांस्कृतिक इतिहास और विकास में भारतीयों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इन द्वीपों के प्रारंभिक अप्रवासियों का अधिपति सुप्रसिद्ध जैन महापुरूष ‘कौटिल्य’ था, जिसका कि जैनधर्म-कथाओं में विस्तार से उल्लेख हुआ है। इन द्वीपों के भारतीय आदिवासी विशुद्ध शाकाहारी थे। इन देशों से प्राप्त मूर्तियाँ तीर्थंकर मूर्तियों से मिलती जुलती है। यहाँ पर चैत्यालय भी मिलते हैं, जिनका जैन परम्परा में बड़ा महत्व है।