क्या विडंबना है कि जीव को जीव का पता बताया जा रहा है कि तू जीव है , इस जन्म का उद्देश्य धन कमाना नही है निज धर्म प्राप्त करना है: मुनि श्री आदित्यसागर

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शीत ऋतु के आगमन के साथ ही धर्मनगरी छिन्दवाड़ा में भी संतों के आगमन की शीतल बयार चलने लगी है, संतनिवास , श्री आदिनाथ जिनालय , ऋषभनगर , गुलाबरा में पधारे हैं चर्या शिरोमणि आचार्य श्री 108 विशुद्ध सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री 108 आदित्य सागर जी महाराज, मुनि श्री 108 अप्रमित सागर जी महाराज, मुनि श्री 108 सहज सागर जी महाराज ।

श्री शांतिनाथ चैत्यालय जी नागपुर रोड में पधारे हैं सत शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के शिष्य मुनि श्री 108 आर्जव सागर महाराज जी से दीक्षित मुनि श्री 108 महान सागर जी महाराज और मुनि श्री 108 विदित सागर जी महाराज

मुनि श्री आदित्यसागर जी ने अपनी पावन पीयूष देशना में कहा – इस जन्म का उद्देश्य धन कमाना नही है निज धर्म प्राप्त करना है। क्या विडंबना है कि जीव को जीव का पता बताया जा रहा है कि तू जीव है । जब हमें संसार से मुक्त होना ही है तो क्यों न तीर्थंकर बनकर सिद्ध भगवान बनें इसके लिए 16 कारण भावनाओं को भाने की आवश्यकता है।

मुनि श्री सहजसागर जी ने श्री योगीन्दुदेव आचार्य के ज्ञानांकुश जी ग्रंथ पर प्रवचन करते हुए कहा ध्यान से हर चीज की प्राप्ति होती है, शुद्धात्मा के उत्कृष्ट ध्यान की प्राप्ति के लिए जरूरी है अध्यययन, मनन, श्रवण, चिंतन, उपदेश, तपश्चरण और विनय। कंठ में विद्या और जेब मे दाम वक्त आने पे काम आते हैं।
नदन जैन म.प्र.अध्यक्ष नमोस्तु शासन सेवा समिति
9479521008 9303901008
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