सब भगवानों में सबसे खास, जो शेष भगवानों में नहीं मिलता, तभी तो जैन धर्म खास बन जाता है।
01 अप्रैल 2024 / चैत्र कृष्ण सप्तमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/शरद जैन /
अगर जैन धर्म की, श्रमण संस्कृति की, पुरातन की पहचान को जीवंत रखना होगा, जैन को सनातन धर्म ही प्रमाणित करना होगा। (आज समय ही ऐसा है कि जैनों को हर बात के लिए प्रमाण देना पड़ रहा है)। इस बार तीर्थंकर श्री आदिनाथ जन्म-तप कल्याणक पर हर बार की तरह महज पूजा पढ़कर, भक्तामर विधान के साथ इतिश्री के अलावा उनके जीवन चारित्र के विभिन्न पहलुओं को जनमानस के सामने रखकर एक जागृति का उद्घोष करना ही होगा। 03 अप्रैल से 21 अप्रैल तक हर दिन एक उत्सव के रूप में मनाकर हर वर्ष इन 19 दिनों में 24 तीर्थंकरों की जन मानस में प्रभावना कर उस लकीर को छोटा होने से रोकना होगा, सब भगवानों में भी खासम खास कैसे होते है तीर्थंकर, यह बताना होगा।
1. भगवान आदिनाथ परिवार में, सब बने भगवान
ऐसे अनेक धर्मों में भगवान हुए हैं, जिन्होंने अकेले अगुवाई की, पर पहले तीर्थंकर श्री आदिनाथ जी का तो पूरा परिवार – तीन पीढ़ी तक, भगवान बना, ऐसी कोई और झलक नहीं मिलती। उनके सौ पुत्र, ज्येष्ठ पुत्र भरत चक्रवर्ती के सभी पुत्र भी सिद्धालय गये। हां, एक पोते थे मारीचि, जो अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी बने।
2. स्वर्ग से सौधर्म इन्द्र आता है मनाने कल्याणक
भगवान तो बहुत हुए हैं, पर ऐसे भगवान केवल 24 ही हुए हैं, जिनके गर्भ में आने के समय, जन्म के समय, इस संसार से विरक्ति के समय, केवलज्ञान प्राप्ति के समय, फिर जन्म-मृत्यु के सिलसिले को सदा खत्म करते हुए, इन पांचों अवसरों – गर्भ कल्याणक, जन्म कल्याणक, तप कल्याणक, ज्ञान कल्याणक और मोक्ष कल्याणक मनाने स्वर्ग से सौधर्म इन्द्र अनेक देवी-देवताओं के साथ इस धरा पर आता है, किसी और भगवान के लिए नहीं।
3. जन्म से पूर्व 15 माह तक करोड़ों रत्नों की वर्षा
प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ से 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी के स्वर्ग में आयु पूर्णकर इस धरा पर मां के गर्भ में आने से 6 माह पहले से ही सौधर्मेन्द्र की आज्ञा से कुबेर 15 माह तक रोजाना दिन के तीनों पहर (सुबह, दोपहर, शाम)[ कुछ जगह उल्लेख रात्रि पहर में भी] माता-पिता के राजमहल पर साढ़े तीन करोड़ रत्नों की बरसात करता है। ऐसा किसी और भगवान के लिये नहीं।
4. पूरे शरीर पर सहस्त्र नेत्र बनाकर देखता है
सौधर्म इन्द्र तीर्थंकर बालक को तीर्थंकर बालक का जब जन्म होता है, तो इस लोक के लोग ही नहीं, स्वर्ग से सौधर्म इन्द्र सहित, उसकी देवी, अनेकों देवी-देवता भी देखने को लालायित होते हैं और स्वर्ग से इस धरा पर आते हैं। सौधर्मेन्द्र तो दर्शन को इतना प्यासा हो जाता है कि सर्वांग शरीर पर सहस्त्र नेत्र बनाकर बिना पलक झपकायें, टकटकी लगाकर देखता रहता है, पर प्यास नहीं बुझती।
5. तीर्थंकर नवजात को पहला स्नान (अभिषेक) देवताओं के राजा द्वारा
सब भगवानों में केवल 24 तीर्थंकर ही हैं, जिनको पहला स्नान सौधर्मेन्द्र करोड़ों- खरबों किमी दूर मेरु पर्वत पर ले जाकर करता है, इतने ज्यादा पानी से, कि पूरी दुनिया की सारी नदियों का जल भी कम पड़ जाये। 1008 विशाल कलशों से न्हवन, और हर कलश 96 किमी लम्बा, एक किमी गहरा होता है। वह जल इस क्षेत्र की नदियों, समुद्र, भूजल से नहीं, बल्कि जम्बूद्वीप के बाहर से क्षीर समुद्र के दूध से सफेद जल से। इतना पानी एक साथ, ऐसा स्नान, किसी और का नहीं।
6. देवताओं का राजा रखता है, तीर्थंकर का नाम
सभी भगवानों में केवल 24 तीर्थंकर ही ऐसे हैं, जिनका प्रथम नाम उनके मां-बाप नहीं, सौधर्मेन्द्र रखता है। तीर्थंकर बालक के दाहिने पैर के अंगूठे में जो चिह्न होता है, उसी से उन तीर्थंकर की पहचान होती है, और उस बालक की सौधर्मेन्द्र 1008 नामों के साथ स्तुति करता है।
7. तीर्थंकरों की धर्मसभा देवता लगाते हैं
जैसे ही केवलज्ञान की प्राप्ति होती है, तो उनकी धर्मसभा (समोशरण) के लिये कुबेर देवता रत्नों से तैयार करता है। प्रथम तीर्थंकर की ऐसी धर्मसभा 144 किमी की विशालता वाली होती थी।
8. तीर्थंकर की धर्मसभा में किसी की मृत्यु नहीं होती
दुनिया में सबको हैरत में डाल देती है, यह जानकारी कि जब-जब तीर्थंकरों की धर्मसभा लगती थी, तो उसमें सुनने वाले लाखों लोग बैठते थे, जिनमें पशु-पक्षी भी एक साथ। धर्मसभा के दौरान किसी की मृत्यु नहीं होती।
9. धरा से 30 हजार फुट ऊपर चलते हैं तीर्थंकर
जब केवलज्ञान प्राप्त हो जाता है, तो आदिनाथ से महावीर तक सभी 24 तीर्थंकर, इस धरा पर नहीं, बल्कि इससे 30 हजार फीट गगन में चलते हैं, वो भी बिना घुटने मोड़े, उन्हें गगन विहारी भी कहते हैं। ऐसे और कोई भगवान नहीं चलते।
10. तीर्थंकर की धर्मसभा के लिए डेढ़ फुट वाली 20 हजार सीढ़िया
आप को अचंभा होगा कि किसी भगवान की धर्मसभा से पहुंचने के लिये 30 हजार फुट ऊपर आकाश में जाना होता हो, और उसके लिये 20 हजार सीढ़ी चढ़नी पड़े, और हर सीढ़ी डेढ़ फुट ऊंची। और हां, वहां जाने वाला, कमजोर हो या छोटा, सभी भव्य चढ़ जाते हैं, मात्र 48 मिनट के भीतर। किसी और भगवान के साथ नहीं होता है यह।
11. जन्म से ही 10 खास चमत्कार
सब भगवानों में 24 तीर्थंकर सबसे अलग होते हैं, जन्म से ही। जन्म के साथ ही इनमें 10 अतिशय देखे जाते हैं, जो किसी और भगवान में नहीं पाये जाते –
1. पसीना नहीं आता 2. दूध के समान श्वेत रक्त
3. निर्मल शरीर 4. वृषभनाराचसंहनन शरीर
5. समुचतुस्त्ररूप संस्थान 6. अनंत बल
7. हित-मित-प्रिय वचन 8. 1008 उत्तम लक्षण
9. सुगंधित शरीर 10. मलमूत्र नहीं
12. भोजन-वस्त्र इस धरा से नहीं
जैसे सामान्यता सभी भगवान जन्म से अपने परिवार का भोजन खाते व वस्त्र-आभूषण पहनते हैं, पर आदिनाथ से महावीर स्वामी तक 24 तीर्थंकर इस बारे में खास होते हैं। जब तक वे संन्यास ग्रहण नहीं करते, तब तक उनका भोजन और वस्त्र स्वर्ग से आते हैं। संन्यास के बाद वस्त्र-आभूषण त्याग देते हैं और तब नवधा भक्ति से आहार (भोजन) ग्रहण करते हैं।
आज आपको ये 12 खास बातें बताई, जो 24 तीर्थंकरों को सब भगवानों में सबसे विशेष बनाती हैं, ऐसी ही अनेक खास बाते हैं, आगे बताते रहेंगे। बस हमें आदिनाथ भगवान का जन्म-तप कल्याणक भी महावीर स्वामी के जन्म कल्याणक की तरह जोर-शोर से मनाना है।