ऋषभ विहार जिन मंदिर या कहे अतिशय तीर्थ! स्वर्णमयी वेदी में भ. आदिनाथ का जन्माभिषेक

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पाण्डुकशिला पर अभिषेक ॰ बालक आदिनाथ का पालना ॰ राजकुमार पालकी ॰ वैराग्य – केशलोंच और मोक्ष दर्शाती मनोरम झांकियां
सान्ध्य महालक्ष्मी / 05 अप्रैल 2021
संत शिरोमणि आचार्य 108 श्री विद्यासागरजी महामुनिराज के त्रय शिष्य प. पूज्य मुनि 108 श्री वीर सागरजी, विशाल सागरजी एवं धवल सागर जी की मंगल प्रेरणा एवं आशीर्वाद से दिल्ली की धर्मनगरी ऋषभ विहार में तीर्थंकरों का प्रत्येक कल्याणक हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है जिसमें समाज के बाल-युवा-महिला और पुरुष सभी उत्साहपूर्वक भाग लेते हैं। इसी कड़ी में 05 अप्रैल को भगवान आदिनाथ जन्म कल्याणक के मांगलिक अवसर पर प्रात: बेला में भगवान आदिनाथ के काले पाषाण वाले पद्मासन जिनबिम्ब का मस्तकाभिषेक, शांतिधारा एवं अष्ट द्रव्यों से मांगलिक पूजन डॉ. मुकेश शास्त्री के मंत्रोच्चारण के बीच किया गया। समाज के सभी लोग कार्यक्रम से जुड़े थे जैसे बच्चों – महिलाओं और समाज ने भगवान आदिनाथ के जन्म से मोक्ष तक की यात्रा दर्शाती हुई झांकियों का स्वयं निर्माण कर मनोरम प्रस्तुति पेश की। बालक और पुरुष वर्ग ने श्वेत वस्त्रों में इन्द्र बनकर मस्तकाभिषेक किया तो इन्द्राणियां श्वेत पारंपरिक वेशभूषा में अभिषेक देख अविभूत हो रही थी। कोरोना जैसी महामारी के समय में भी सभी सावधानी बरत रहे थे, मास्क पहनकर बड़े ही अनुशासनबद्ध तरीके से सभी मांगलिक क्रियाओं का आनंद ले रहे थे।
पूरा जिन मंदिर समोशरण की भांति प्रतीत हो रहा था। आकर्षक विद्युत सजावट, रंगीन लाइटों में अनुपम छटा बिखेरती झांकियां, परिसर में विशाल मानस्तंभ सभी के मान को खंडित करता हुआ, प्रवेश द्वार पर नपीरी वाले मांगलिक ध्वनि से अभिनंदन कर रहे थे तो मंदिर की सीढ़ियों से पूर्व दुंदभि, नगाड़ों की ध्वनि सभी का मंगल स्वागत कर रही थी। वेदी के समक्ष पहुंचकर तो एक बार ऐसा प्रतीत हुआ जैसे भगवान के समोशरण में पहुंच गये हों। स्वर्णमयी वेदियों में श्रीजी की अद्भुत छटा और उनके ऊपर लगे विशाल स्वर्णमयी 3-3 छत्र और चंवर भगवान के साक्षात दर्शन करा रहे थे। मन ही मन ये शब्द निकलने लगे – तेरी मूर्त इतनी सुंदर तो तू कितना सुंदर होगा!
डॉ. मुकेश शास्त्री के उत्तम एवं शुद्ध मंत्रोच्चारण के बीच पीठ स्थापना, पांडुकशिला पर जिनबिम्ब स्थापना, जलाभिषेक के लिये प्रासुक जल से भरे 4 कलश और जन्माभिषेक शुरू होते ही इंद्रों की करतल ध्वनि, वाद्य साजों के मनोरम नाद जैसे ही कानों में पड़े, ऐसा लगा कि आदिनाथ बालक का जन्म हो गया है और पाण्डुकशिला पर ऋषभ विहार वासी इन्द्र के रूप में अभिषेक कर रहे हैं। बालाएं अपने-अपने स्थान पर आनंद विभोर हो नृत्य कर रही हैं, इन्द्रगण आकाश से पुष्प वर्षा कर रहे हैं। कानों में अद्भुत वाद्यों के तस्वर गुंजायमान हो रहा है, आकाश में भी उस समय मेघों की उपस्थिति प्रतीत हुई, मानो मेघ देवता भी हर्षित हो रहे हों, फिर शंखनाद की ध्वनि से इस उत्सव ने सभी को इस संसारी लोक से दूर समोशरण में पहुंचा दिया हो।
डॉ. मुकेश शास्त्री जी ने बताया कि अभिषेक की महत्ता आरै उसकी परम्परा जैन दर्शन में विस्तार से दी गई है और हमें गर्व कि अभिषेक परंपरा सबसे पहले और प्रचीन युग से जैन आगम में ही प्रारम्भ हुई है। हडप्पा मोहन-जो-दाड़ो से लेकर आज तक भी खुदाई में जो भी प्रतिमाएं मिलती हैं वो जैन प्रतिमाएं ही होती हैं। जिन मंदिर समोशरण का तो अभिषेक के चार कलश चार अनुयोग तथा उनमें भरा जल ज्ञान का प्रतीक है। जब कलशों से जल श्रीजी के ऊपर ढारा जाता है तो वह गंधोदक दिव्य ध्वनि का प्रतीक है, जिसे हम लोग गंधोदक के रूप में सिर मस्तक पर धारण करते हैं।
जन्माभिषेक कार्यक्रम की मंगल क्रियाएं स्वत: ही अपनी गति से चल रही थी, कहीं भी कोई कार्यकर्ता या किसी का हस्तक्षेप नहीं था, पूरे जिन मंदिर में गजब का अनुशासन और हर्ष था। यह सारा श्रेय जाता है श्री दिगम्बर जैन सभा (रजि.), ऋषभ विहार दिल्ली की कमेटी को। सभा के वर्तमान चेयरमैन श्री विजय जैन, प्रधान इंजी. विजय कुमार जैन, अध्यक्ष विपिन जैन, महामंत्री विपुल जैन, कोषाध्यक्ष पवन जैन एवं समस्त कार्यकारिणी साधुवाद की पात्र है। यह उनकी केवल इस महोत्सव की सफलता ही नहीं बल्कि वर्षों से समाज में संस्कारों के रोपण का सुफल है जो धर्म रूपी कल्पवृक्ष के रूप में आज यहां प्रत्यक्ष खड़ा दिखाई दे रहा है।
इस अवसर पर मूलनायक भगवान के जलाभिषेक के पुण्यार्जक सर्व श्री उपदेश जैन (श्याम एन्क्लेव, अमित जैन (ऋषभ विहार), मूलनायक भगवान की शांतिधारा उपदेश जैन (श्याम एन्क्लेव), राजकुमार जैन मनोज जैन अजय जैन परिवार तथा पांडुकशिला पर श्री जिनबिम्ब की शांतिधारा के पुण्यार्जन का सौभाग्य प्रवेश जैन (किरण विहार) एवं दिनेश जैन (ऋषभ विहार) को प्राप्त हुआ। (प्रवीन कुमार जैन, सिटी संपादक)