हर तरफ महावीर स्वामी के जन्म कल्याणक का शोर, पर आदि प्रभु के जन्म-तप पर कहीं नहीं जोर

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31 मार्च 2024 / चैत्र कृष्ण षष्ठी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/शरद जैन /
21 अप्रैल से पहले 03 अप्रैल को प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभनाथ की जन्म-तप कल्याणक और भरत चक्रवर्ती की जन्म-जंयती को जोर- शोर से मनाइये।
3 से 21 तक पर्युषण 18 दिनों की तरह अब 19 दिनों का महामहोत्सव मनाइये
सनातन जैन धर्म की पहचान तभी बनेगी, जब पहले तीर्थंकर से इसके इतिहास को जीवंत रखा जा सकेगा।

आज से सोशल मीडिया पर, कई जगह पोस्टरों, फलेक्सों पर कुछ यदि कमेटियों की तैयारियों में, चाहे वो महावीर स्वामी की जन्म तप भूमि हो या बड़ा अतिशय तीर्थ या फिर बड़े बाबा कुंडलपुर से लेकर अनेकों तीर्थ हों, हर जगह वर्तमान जिनशासन नायक महावीर स्वामी के 2623वें जन्म कल्याणक की तैयारी की सूचनायें एक माह से भी पहले मिलनी शुरु हो गई हर साल की तरह, और होनी भी चाहिये। सांध्य महालक्ष्मी इसका पुर जोर समर्थन करता है। पर इस प्रसार- प्रचार घोषणाओं में जन्म कल्याणक संख्या का भी स्पष्ट उल्लेख करें, जिससे उनकी प्राचीनता का जन-जन तक को मालूम हो सके। कम से कम जिन तीर्थंकरों का वर्ष लगभग ज्ञात है, ईसा से कितने वर्ष पूर्व, जिनमें 23 वें तीर्थंकर श्री पारसनाथ और 24वें तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी हैं, उनके कल्याणक को संख्या के साथ मनायें, पर हम ही इस तरह के प्रयास नहीं करते। आज अन्य को लकर 99 फीसदी जैन बंधुओं को ही नहीं मालूम कि 21 अप्रैल 2024 को आने वाला तीर्थंकर वर्द्धमान स्वामी का जन्म कल्याणक 2623 वां है।

गत वर्ष 2023 की कार्तिक अमावस को महावीर स्वामी का ही 2550वां मोक्ष कल्याणक था, और वह महामहोत्सव वर्ष अभी मनाते आ रहे हैं। कुछ साधु -संतों ने इसकी जोर-शोर से मनाने की अगुवाई की, जैसे दिल्ली में विराजमान आचार्य श्री प्रज्ञ सागर जी ने तथा श्वेताम्बर मूर्तिपूजक श्री धर्मधुरंधरजी मा.सा. ने। पर इस प्रचार-प्रसार में हम 23 वें तीर्थंकर के 2900वें जन्म कल्याणक और 2800वें मोक्षकल्याणक को तो मानो भूल ही गये। कारण? किसी कमेटी, किसी विद्वान के पास नहीं है। हकीकत में उस इतिहास को जानने की कोशिश ही नहीं की।

सांध्य महालक्ष्मी – चैनल महालक्ष्मी ने इसकी सूचना पहले ही दी, और अयोध्या में विराजमान गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमति माताजी ने, लाल मंदिर दिल्ली में चातुर्मास करने वाले आचार्य श्री अतिवीर जी ने पारस प्रभु के 29वें जन्म कल्याणक पर महामस्तकाभिषेक कार्यक्रम तथा दिल्ली के ऋषभ विहार में चातुर्मास करने वाले आचार्य श्री सुनील सागर जी की अगुवाई में वहीं पारस प्रभु के जन्म और मोक्ष कल्याणक कुछ अलग रूप से प्रमुखता से मनाये गये, पर उनके अलावा कहीं न धमक सुनाई दी, न ही चमक दिखाई दी। अभी तक महावीर स्वामी के निर्वाण महामहोत्सव के तहत कोई न कोई कार्यक्रम करने की घोषणायें ही रही, पर भूलते जा रहे पारस प्रभु के 2800वें मोक्ष और 2900वें जन्म कल्याणक वर्ष को। इसी तरह अब 21 अप्रैल 2024 को आ रहे महावीर स्वामी के जन्म कल्याणक की तैयारियां शुरु होंगी, पर उससे पहले चैत्र कृष्ण नवमी जो इस वर्ष 03 अप्रैल को है, जिस दिन प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभनाथ जी का जन्म-तप-कल्याणक दिवस है और वही दिन है भरत चक्रवर्ती की जन्म-जयंती का, जिनके नाम पर हमारे देश का नाम ‘भारत’ पड़ा। इस गौरवमय संस्कृति, सनातन धर्म की प्राचीनता को अगर जीवंत रखना है, तो यह दिन पूरे जोर-शोर, पूरे धर्म प्रभावना से मनाना, हम सबका कर्तव्य और दायित्व है।

इसके लिये साधु-संतों को लगातार उद्घोष अपने उद्बोधनों में करने का अनुरोध है, वहीं विद्वत व श्रेष्ठी वर्ग के साथ विभिन्न कमेटियों की भी जिम्मेदारी है, कि इस का गौरव बढ़ायें अपने कार्यक्रमों के द्वारा। सोशल मीडिया के शेरों को भी इस समय जागृति फैलानी चाहिये विभिन्न हेण्डलों के जरिये।

यह सही है कि हमारे राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री सहित सभी स्वीकारते हैं जैन धर्म के आदिनाथ जी से शुरूआत हुई, पर जब इतिहास और संस्कृति बताने की बात आती है, तो जी-20 में जो आजाद भारत के लिये विश्व पटल पर अपनी संस्कृति प्रदर्शित करने का सबसे बड़ा अवसर था, उसमें प्रधानमंत्री द्वारा जिस बुकलेट का विमोचन कर पूरे विश्व में भेजा गया, उसमें यह नहीं लिखा होता कि जैन धर्म की शुरुआत महज 2650 वर्ष पहले ही हुई।

अगर सही बात जो मंचों से सभी नेताओं द्वारा कही तो जाती है, पर शायद कागजों में भी मानी जाती, तो विश्व को बताया जाता कि वैदिक के साथ श्रमण भी सनातन धर्म है, जिसकी शुरुआत प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभनाथ द्वारा हुई और उनके बाद 23 और तीर्थंकर हुये, उन्हीं के ज्येष्ठ पुत्र भरत चक्रवर्ती बने और छ: खण्ड पर राज्य किया तथा उन्हीं के नाम पर हमारे देश का नाम ‘भारत’ पड़ा। नहीं कहा जाता है यह, पर कोई कितना भी दबाये सत्य तो सत्य होता है। पर उसे समय के गर्त में दबा ना दिया जाये, लगातार हम को प्रकाशित करना होगा। लगातार विभिन्न मंचों से, जोर-शोर से प्रचारित करें। क्योंकि आज किसी सत्य को भी पहचान बनानी है, तो वह प्रचार-प्रसार के द्वारा ही होती है।

संकल्प कीजिये और शुरुआत करिये 03 अप्रैल को आने वाले प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभनाथ जी के जन्म कल्याणक और प्रथम चक्रवर्ती भरत की जन्म जयंती को जोर-शोर से, पूरे प्रचार-प्रसार से मनाने में अपना पूरा योगदान देंगे।