15 वां आचार्य पदा रोहण दिवस -21वी सदी के दूर दृष्टा अध्यात्म के राजहंस अध्यात्मयोगी – अहिंसा के सद प्रचारक एवं टूटती आस्थाओं को जोड़ने वाले महायोगी-आचार्यश्री विशुद्धसागरजी

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31 मार्च 2022//चैत्र कृष्णा चतुर्दशी /चैनल महालक्ष्मीऔर सांध्य महालक्ष्मी/
वर्तमान में श्रमण संस्कृति के सुविख्यात एवं बहुआदरित आध्यात्मिक सत है। आप अंतिम तीर्थंकर एवं वर्तमान शासन नायक भगवान महावीर स्वामी की परंपरा में हुए आचार्य आदिसागर अंकलीकर, आचार्य महावीर कीर्तिजी, आचार्य विमलसागरजी एवं आचार्य सन्मति सागरजी महाराज की निग्रंथ वीतरागी दिगंबर जैन श्रमण परंपरा के प्रतिनिधि गणाचार्य विरागसागर जी महाराज से दीक्षित उनके बहुचर्चित श्रमण शिष्य हैं और अपनी आगम अनुकूल चर्या एवं ज्ञान से नमोस्तु शासन को जयवंत कर रहे हैं।

18 दिसंबर 1971 को मध्यप्रदेश के भिंड जिले के ग्राम रूर मैं आपका जन्म हुआ। पूर्व संस्कार बस आपको बाल्यकाल में ही आध्यात्मिक रुचि जागृत हुई और मात्र 17 वर्ष की अल्पायु में आपने जीवन पर्यंत के लिए गृह त्याग कर गणाचार्य विरागसागरजी के कर कमलों से 11 अक्टूबर 1989 को क्षुल्लक दीक्षा एवं 19 नवंबर 1991 को हीरो की नगरी पन्ना में ऐलक दीक्षा और 21 नवंबर 1991 को जैनेश्वरी मुनि दीक्षा प्राप्त की। तदोपरांत गणाचार्य विरागसागरजी महाराज द्वारा आपको 31 मार्च 2007 की महावीर जयंती के दिन औरंगाबाद महाराष्ट्र में आचार्य पद प्रदान किया गया। आज आचार्य श्री का 15 वां आचार्य पदा रोहण दिवस है। आज उनके आचार्य पदा रोहण दिवस पर नमोस्तु आचार्य श्री विशुद्धसागर जी वर्तमान काल में अपने ज्ञान, आगम अनुकूल अपनी चर्या और आगम सम्मत पीयूष वर्षणी विशुद्ध वाणी के प्रभाव से अध्यात्म सरोवर के राजहंस सिद्ध हो चुके हैं। आपका वात्सल्य और आपकी सरलता सहजता भी ऐसी है कि जो भी आपके सानिध्य में एक बार आता है वह उन्हीं का हो जाता है। आपके तप, त्याग, ज्ञान और आपकी निर्दोष चर्या और चरित्र को देखकर अब लोग उन्हें छोटे विद्यासागर मानने लगे हैं।

आचार्य पदारोहण दिवस पर विशेष
आज यदि आचार्य विद्यासागरजी महाराज श्रमण संस्कृति के जेष्ठ एवं श्रेष्ठ शिरोमणि संत हैं तो आचार्य श्री विशुद्धसागर भी श्रमण संस्कृति के श्रेष्ठ और गौरवमयी संतो की श्रृंखला में श्रेष्ठ चर्या शिरोमणि के रूप में बहु आदरित हैं।

इस पंचम काल में अनेक जैन मुनि, आचार्य एवं उनके संघ साधनारत हैं लेकिन वर्तमान में उनकी चर्या एवं कृतीत्व में 20 वीं सदी का प्रभाव भी घुसपैठ करता दिखाई देता है, लेकिन आचार्य विशुद्धसागरजी एवं उनके द्वारा दीक्षित 45 मुनियों का संघ इसका अपवाद है। उनकी चर्या में सिर्फ और सिर्फ आगम की झलक दिखाई देती है और उसमें शिथलाचार का कोई स्थान नहीं है। देश में आचार्यश्री के नाम से कहीं भी कोई प्रोजेक्ट या निर्माण कार्य नहीं चल रहा है इसलिए आचार्य श्री ना तो धन संग्रह करते हैं और ना ही करवाते हैं। यही वजह है कि उनकी चर्या श्रावकों के लिए आदर्श और श्रमणो के लिए अनुकरणीय बन गई है।

‘आत्मा स्वभाव परभाव भिन्नम इस आध्यात्मिक सूत्र पर जीवन जीने वाले आचार्य विशुद्धसागरजी का एकमात्र लक्ष्य आत्म कल्याण एवं दैनंदिनी कार्यक्रम ज्ञान ध्यान, लेखन प्रवचन और अध्ययन करना व संघस्थ मुनियों एवं ब्रह्मचारियों को अध्ययन कराना है।

आचार्य श्री का जितना विषद व्यक्तित्व है उससे अधिक उनका कृतीत्व भी है। देश के 10 राज्यों में 75000 किलोमीटर से अधिक पग बिहार पूर्ण होना और आप के सानिध्य में शतक पंचकल्याणक प्रतिष्ठाओं का संपन्न होना आपकी अरिहंत भक्ति का अभिज्ञान कराती है।

आपके द्वारा सताधिक प्रवचन साहित्य के अलावा भाष्य अनुशीलन परिशीलन, स्वतंत्र चिंतन कथा साहित्य एवं 5000 आध्यात्मिक कविताएं आदि विभिन्न प्रकार का पठनीय साहित्य सृजित है, जिसका देश विदेश में लाखों स्वाध्याय प्रेमियों द्वारा स्वाध्याय किया जाता है।

लाखों जैनेतरों को व्यसन एवं मांसाहार का त्याग कराने वाले आचार्य श्री अहिंसा के सद प्रचारक एवं टूटती आस्थाओं को जोड़ने वाले महायोगी है। आपके नाम के पूर्व अध्यात्मयोगी का जो विशेषण अंकित किया जाता है वह न केवल सार्थक है वरन उनके व्यक्तित्व की वह दीपशिखा है जिससे उनके भक्तों को ढोंग का नहीं ढंग का जीवन जीने और अध्यात्म के रत्नों से अपने जीवन को सवारने की रोशनी मिलती है।