अभिषेक करते समय ध्यान देने योग्य बातें-
अभिषेकत्र्ता स्नानादि करके शुद्ध धुले हुए धोती, दुपट्टे पहनें। पैण्ट, शर्ट, कुत्र्ता, पाजामा आदि पहनकर अभिषक न करें।
अभिषेक करने वाले की उम्र आठ वर्ष से कम और अस्सी वर्ष से ज्यादा न हो।
अभिषेक करते समय नाक, कान, मुंह आदि में अंगुली न डाले। नाभि के नीचे का भाग स्पर्श न करें।
सर्दी, जुकाम, बुखार, चर्मरोग, सफेद दाग, खुजली, दाद, चोट लगने पर खून, पीव, मवाद आदि निकलने पर अभिषेक न करें।
अभिषेक करते समय जिन प्रतिमा का स्थान नाभि से ऊंचा होना चाहिए।
अभिषेक करते समय सिर पर दुपट्टा डाल लेना चाहिए।
अभिषेक करने हेतु वेदी से प्रतिमा जी निकालते समय प्रतिमा जी की गर्दन, कमर, पेट एक हाथ आदि अंग पकड़कर नहीं उठाना चाहिए। इससे असाता वेदनीय कर्म का आश्रव होता है। प्रतिमा जी को विनयपूर्वक अपने दोनों हाथों से एक हाथ भगवान के पद्मासन पर और एक हाथ भगवान की पीठ पर रखकर प्रतिमा जी को सिर पर रखकर अभिषेक के सिंहासन पर विराजमान करना चाहिए।
जिन प्रतिमा को अध्र्य चढ़ाने के उपरांत ही वेदी से उठाना चाहिए एवं पुनः वेदी पर विराजमान करने के पूर्व ही अध्र्य चढ़ाना चाहिए।
अभिषेककत्र्ता के वस्त्र धोती, दुपट्टा गृह कार्य में उपयोग न हुए हो, दूसरों के उतारे हुए वस्त्रों से या अकेले एक धोती मात्र से ही अभिषेक नहीं करना चाहिए। कम-से-कम दो वस्त्र धोती, दुपट्टा होना चाहिए।
अभिषेक करते समय मुख किस दशा में और क्यों होना चाहिए?
दिशाओं का जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। अतः हमें पूजन, सामयिक करते समय प्रतिमा जी का मुख पूर्व की ओर है तो अभिषेककत्र्ता का मुख उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए और यदि प्रतिमा जी का मुख उत्तर की ओर है तो अभिषेककत्र्ता का मुख पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए। दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर प्रतिमा और पूजक दोनों के मुख नहीं होना चाहिए। क्योंकि उत्तर दिशा को विघ्नान्तक माना है अर्थात आने वाले विघ्नों की शांति। पूर्व दिशा को यमान्तक अर्थात मृत्यु को जीतने वाला। दक्षिण दिशा को प्रज्ञान्तक अर्थात बुद्धि प्रज्ञा की हानि। पश्चिम दिशा को पद्मान्तक अर्थात मन और मस्तिष्क को कमजोर करने वाली होती है एवं पश्चिम और दक्षिण दिशाएं ऋणात्मक हैं जो ऊर्जा का शोषण करती हैं और पूर्व व उत्तर दिशाएं धनात्मक होती हैं और शक्ति का पोषण करती है।
पूजन करने वालों का मुख किस दिशा में होना चाहिए?
उत्तर- पूजन करने वालों का मुख पूज्य अथवा प्रतिमा जी की ओर देव-शास्त्र-गुरू की तरफ होना चाहिए।