24-25 फरवरी – दो दिन, दो तीर्थंकर, दो जन्म-दो तप कल्याणक

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1906

माघ शुक्ल द्वादशी और त्रयोदशी, जो है 24 व 25 फरवरी को तीसरे तीर्थंकर श्री संभवनाथ जी के 9 लाख करोड़ सागर का लम्बा पीरिएड बीता जाने के बाद माघ शुक्ला द्वादशी को अयोध्या नगरी में स्वयंवर महाराज के महल में शहनाईयां, नगाड़े गूंज उठे जब महारानी सिद्धार्था देवी के गर्भ से तीर्थंकर अभिनंदन का बालक के रूप में जन्म हुआ। स्वर्ग से सौधर्म इंद्र दुरंत पूरे लश्कर के साथ अयोध्या पहुंचा, तीर्थंकर बालक को ले मेरु पर्वत पर जन्माभिषेक किया।
आपने साढ़े छत्तीस लाख वर्ष पूर्व तथा 8 पूर्वांग वर्ष तक राज करने के बाद, गंधर्व नगर के नाश को देखकर इसी माघ शुक्ल द्वादशी को अयोध्या नगर के ही उग्रवन में एक हजार राजाओं के साथ दीक्षा ली।
वहीं राजा दशरथ के जीव का अगली पर्याय में रत्नपुरी के महाराजा भानुराज की महारानी सुव्रता जी के गर्भ से माघ शुक्ल त्रयोदशी को जन्म हुआ। आपकी आयु दस लाख वर्ष और कद 45 धनुष था। 50 हजार वर्ष राज करने के बाद एक दिन बिजली गिरने का दृश्य देखकर वैराग्य की भावना बलवती हो गई और एक हजार राजाओं के साथ रत्नपुर नगर के शांतिवन में पहुंचे, वहां पंचमुष्टि केशलोंच कर सप्तछद वृक्ष के नीच तप धारण किया, उसी जन्म के दिवस माघ शुक्ल त्रयोदशी को।
दोनों तीर्थंकरों के चार कल्याणकों पर हार्दिक मंगलकामनायें।