कभी सुनकर दुःख नहीं होता कि आहार के तीर्थंकर शांतिनाथ की मूर्ति के निर्माता के वंशज आज जैन नहीं है
बुंदेलखंड का प्रसिद्ध जैन तीर्थ है आहार। गहोई जाति के जैन श्रावक ने यह प्रतिमा बनवाई थी,पर आज उसके वंशज जैन नहीं है।
मध्य भारत के सैकड़ों मंदिरों में गहोई जाति के जैनों की बनवाई मूर्तियां हे,पर दूख होता है कि आज गहोई जैन नहीं है।
काल का पहिया ऐसा घूमा कि सैकड़ों जातियां जैन से अजैन हो गई इनमें से एक गहोई थे, परवार और गहोई जाति का जुड़ाव बहुत नजदीक का है,परिवार आज जैन है पर गहोई अजैन।
गहोई जाति का मूल जैन धर्म में है,इस जाति का इतिहास जैन मूर्तियों पर अंकित है,इसे प्राचीन काल में गृहपति कहा जाता था,जैन मूर्तिलेखों में गृहपति अन्वय,गहोई अन्वय के कई जगह नामोल्लेख है।
उत्तर भारत की मध्यकालीन 84 जैन जातियो की सूची में कोई का भी उल्लेख आता है,गहोई मौर्यकालीन व्यापारिक जाति है,जो प्रांरभ से जैनधर्म पालक रही,जैन आगमो में जगह-जगह इसके विवरण उपलब्ध है।
गहोई जाति का इतिहास लिखने वाले विद्वानों ने भी माना है का गहोई जैन थे।
आज आवश्यकता है गहोईयो को पुनः अपने मूलधर्म में लौटने की।