निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
प्रतिदिन भगवान,गुरु के दर्शन करो नये नये भाव आना चाहिए,भगवान भी नये नये दिखंगे
1.हर क्षण में परिवर्तन लाना प्रारंभ करो एक अंतर्मुहुत से ज्यादा देर नहीं रहना खुश रहना है तो,यदी एक अंतर्मुहुत से ज्यादा टिग गये या तो मोक्ष जायेंगे,नहीं तो पागल हो जायेंगे एक अंतर्मुहूत से ज्यादा देर कोई भाव नहीं रहने देंगे।अपनी कषायों को भी नहीं रहने देना।
2.सृष्टि का स्वभाव परिवर्तनशील है उत्पाद व्यय ध्रोव्य हैं,सब कुछ स्थिर हो जाए तो प्रकृति नहीं चल पायेगी, परीवर्तनशील होती हैं,प्रकृति ने सब कुछ अधिकार हमको भी नहीं दिया, जन्म लेना यह हमारे हाथ में है ,मरण कैसा हो ,हमारे हाथ में हैं,कुछ अधिकार अपने पास रखे,आंख केवल देखने का काम है, क्या देखना हमारे हाथों में हैं।
3.दुनिया का अस्तित्व इसलिए नहीं हैं कि वह आस्तित्वमान है, बल्कि परीवर्तनशील हैं इसलिए दुनिया का अस्तित्व है, दुनिया को कुटस्थ कर लिया है,स्थिर अवस्था में संसार की व्यवस्था नहीं बनेगी, क्योंकि आज जो दुखी है और हमेशा दुखी बना रहेगा, जो सुखी हो हमेशा सुखी बना रहेगा,जो रोगी बना रहेगा रोगी बना रखी,जो भगवान है वह भगवान बना रहेगा।
4.एक स्वल्प विराम मैं इतना अंतर होता हैं कि वह अर्थ को चाहे तो अनर्थ कर दे,अनर्थ को अर्थ कर दे।जैसे रोको मत,जाने दो और स्वल्प विराम नही लगाए तो रोको मत जाने दो,कितना परिवर्तन हो गया।
5.माँ की हर दिन अपने बेटे का चेहरा नया दिखता है ऐसे ही भक्त को भी भगवान का चेहरा रोज नया ही दिखता है।माँ कभी अपने बेटे को बार बार देखकर बोर नही होती,उसी प्रकार भक्त भी भगवान को बार बार देखकर भी बोर नही होता हैं।
शिक्षा-अच्छाइयां बाहर से नही आती अंदर से प्रकट होती है