हे बंदें उस डगर पर न चल जहाँ तेरी बर्बादी का खेल रचा जा रहा हैं,
उस क़यामत को भी न पकड़ जहाँ तेरी मौत का समान गुँथा जा रहा हैं
“””””””नाम जैनत्व का ले रहें हैं और वैदिकता की ही ताजपोशी पर टिके हैं, दिखावे मात्र के लिए भक्ति तो खूब जिनशासन की कर रहें हैं मग़र मिथ्यात्व दैवों की शरण में रहते उन्ही की भक्ति व प्रशंसा में लीन व तल्लीन हैं.जयकारे तो जैन धर्म के लगाते हैं
और हिन्दूधर्म याने वैदिक धर्म को ही अपने सिर पर चढ़ाते, छाती पर थोपते
जिनधर्म के शाश्वत मूल्यों व महान अवधारणाओं को ही हर हाल में ज़मींदोज़ करते गर्व से हिन्दुत्व के जयकारे के ढोल पीट रहे हैं.ऐसे ही कुछ संगठित लोगों का समूह जो अपने आप को जिनभक्त व जिनप्रेमी कहते स्वत: को प्रचारित व स्थापित कर रहे और अंदर ही अंदर जिन धर्म व जिनत्व को तबाह बनाने वालों की कठपुतलियाँ बने जैन जगत के साथ धोखा,कपट व विश्वासघात भी कर रहे.जैन धर्म के नाम पर जिनत्व की आस्तीनों में पलने वाले वे ऐसे साँप हो गए जो हमें ही डस रहे हैं.प्रभु महावीर ने तो इंसानियत व मानवता को वर्णवाद के ज़हर के नाम पर ऊँच नीच,धार्मिक क़हर के नाम पर फैला अन्यायी भेदभाव व मुट्ठी भर अति उच्चकुलीन मनुवादियों के स्वार्थी तन्त्र के अलावा समूची मानव जाती व नारी जगत को भयावह तिरस्कार व पशुवत् बर्बरता से मुक्त करवाकर वर्णवादी ज़हरीले मनुवाद को जड़ मूल से उखाड़ फ़ैंक़ा था जिसके प्रतिशोध में प्रभु महावीर को प्राणांतक घोर उपसर्ग व भीषणतम यातनाएँ सहनी व भुगतनी पड़ी.आज फिर से वहीं मनुवादी वर्णवाद का राक्षसी क़हर का भयावह दंश एक विशेष षड्यंत्र के तहत थोपा व थमाया जा रहा हैं.मग़र दुर्भाग्य यह हैं कि इस विषमता,मिथ्यात्व व धर्मांधता के उन्माद की कलुषिता का शिकार होते आज स्वयं जैन जगत उस विषमयी पागलपन पर सवार हो जिनत्व व श्रमण व्यवस्था की संयम, समता, समानता,समरस्ता,सर्वहिताय के सर्व कल्याण,शान्ति,अहिंसा व परोपकार के महान मूल्यों को खुद ही कुचलने पर उतारू हो गया हैं.
प्रभु ऋषभ के विश्व मानवता,सामाजिकता व नगरिकता के लिए किए गये महानतम विश्व अवदानों को पूरी तरह ख़त्म करने,ऋषभपुत्र भरत से बने भारत के सम्पूर्ण इतिहास को मिटाने व भारतीय संस्कृति,दर्शन व सांस्कृतिक मूल्यों के सफ़ाये का काम आज हिन्दुत्व का छलावा खड़ा कर बड़े छल व कपट से भारत के मूल,मौलिक व आधारभूत सांस्कृतिक संरचना के ढाँचे को ही जमीदोज़ कर उसे हर ओर से नेस्तनाबूत किया जा रहा हैं.इन सारे के सारे षड्यंत्रों का विरोध कर उसे
रोकने की बजाय स्वयं जैन जगत ही उसे हर स्तर पर सहयोग,समर्थन व सम्बल देकर अपने आत्मघात व स्वबलि पर आरूढ़ हों ऋषभ से महावीर प्रभु तक के अवदानों के महात्म्य को ही कुचलने,जिनशासन की श्रमणत्व व्यवस्था को रोंधने तथा ऋषभपुत्र भरत से भारत होने का हमेशा के लिए उस स्वर्णिम इतिहास को मिटा देने को तत्पर हैं.जैन जगत खुद ही अपने अस्मत,अस्मिता व अस्तित्व को ही मिटने देने पर ही आमादा हैं तो फिर उसे दुनिया की कोई ताक़त नही बचा पाएगी.
इसीलिए मेरा कवि मन कहता हैं……….
“”हे बंदें उस डगर पर न चल जहाँ तेरी बर्बादी का खेल रचा जा रहा हैं,
उस क़यामत को भी न पकड़ जहाँ तेरी मौत का समान गुँथा जा रहा हैं””
सोहन मेहता”क्रान्ति”जोधपुर,राज०