11, 13, 14 फरवरी – माघ शुक्ल दशमी, द्वादशी और त्रयोदशी -तीन दिन, तीन तीर्थंकर, 6 कल्याणक- जन्म और तप कल्याणक

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फरवरी माह जहां सोलहकारण व दशलक्षण आदि महापर्वों से ओतप्रोत है, कई कल्याणकों के लिए भी विशेष है इस बार। आगामी तीन तिथियों – 11, 13 व 14 फरवरी – इन तीन दिनों में तीन तीर्थंकरों के जन्म और तप कल्याणक आ रहे हैं यानि कुल 06 कल्याणक – तीर्थंकर श्री अजितनाथ जी, श्री अभिनंदननाथ जी और श्री धर्मनाथ जी के जन्म और तप कल्याणक माघ शुक्ल दशमी, द्वादशी और त्रयोदशी को।

11 फरवरी : तीर्थंकर श्री अजितनाथजी का जन्म-तप कल्याणक

प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ जी के 50 लाख करोड़ सागर वर्ष के लगभग 50 बाद विजय नामक अनुत्तर विमान में आयु पूर्ण कर अयोध्या में महाराज जितशत्रु जी की महारानी विजयसैना जी के गर्भ से दूसरे तीर्थंकर श्री अजितनाथ जी का जन्म, माप काया 27000 फुट ऊंचा कद और आयु 72 लाख वर्ष पूर्व।

पहले 18 लाख पूर्व वर्ष कुमार काल में बीते, फिर 53 लाख पूर्व वर्ष एवं एक पूर्वांग वर्ष तक राजपाट संभाला। फिर एक दिन राजमहल की छत पर काले बादलों के बीच बिजली का चमक कर गिरना, क्षण में नष्ट होना, संसार से विरक्ति का कारण बना। ठीक इसी तरह यह जीवन है, बस यही सोचकर, चल दिये राजपाट छोड़ वैराग्य की ओर। और माघ शुक्ल दशमी को ही सायंकाल में रोहिणी नक्षत्र में सेहतुकवन में देवों द्वारा पालकी से पहुंच गये। पंचमुष्टि केशलोंच कर कायोत्सर्ग मुद्रा में तप धारण कर लिया। आपके इस उत्तम मार्ग पर बढ़ते देख एक हजार अन्य राजाओं ने भी दीक्षा ग्रहण कर ली। 12 वर्षों तक कठोर तप के बाद आपको केवलज्ञान की प्राप्ति हुई।

13 फरवरी – तीर्थंकर श्री अभिनंदननाथ जी का जन्म-तप कल्याणक

तीसरे तीर्थंकर श्री संभवनाथ जी के 9 लाख करोड़ सागर तथा चार पूर्वांग वर्ष के बाद, विजय नामक अनुत्तर विमान में आयु पूर्ण कर उसी अयोध्या नगरी में तत्कालीन महाराज श्री स्वयंवर जी की महारानी सिद्धार्था देवी जी के गर्भ से उस जीव का माघ शुक्ल द्वादशी (जो इस वर्ष 13 फरवरी को है) को जन्म होता है, जो चौथे तीर्थंकर श्री अभिनंदननाथ जी के रूप में तीनों लोकों का कल्याण करते हैं।

आपकी आयु 50 लाख वर्ष पूर्व थी और कद था 2100 फुट ऊंचा। तपे सोने के समान आपकी काया थी और साढ़े बारह लाख वर्ष पूर्व के कुमार काल के बाद आपने राजपाट संभाला और राज करते-करते साढ़े छत्तीस लाख पूर्व और 8 पूर्वांग वर्ष बीत जाने के बाद गंधर्व नगर का अपनी आंखों के सामने नष्ट होते देख, संसार से सारा मोह खत्म हो गया और वैराग्य धारण करने का मन बना लिया, जिसकी लौकान्तिक देवों ने आकर सराहना की।

फिर माघ शुक्ल द्वादशी को ही पुव्रर्कसु नक्षत्र में पूर्वाह्न काल में हस्तचित्रा पालकी से अयोध्या के ही उग्रवन पहुंचे और पंचमुष्टि केशलोंच कर कायोत्सर्ग मुद्रा में तप में लीन हो गये। आपको इस तरह पूरा राजपाट छोड़ इस मार्ग पर बढ़ते देख एक हजार अन्य राजाओं ने भी दीक्षा ग्रहण की। आपको 18 वर्ष के कठोर तप के बाद केवलज्ञान की प्राप्ति हुई।

14 फरवरी – तीर्थंकर श्री धर्मनाथ जी का जन्म-तप कल्याणक

पहले भी और तब भी बीच-बीच में अल्प धर्म विच्छेद होता रहा था। 14वें तीर्थंकर अनंतनाथ जी के लगभग चार सागर बाद सवार्थसिद्धि विमान में आयु पूर्व कर तत्कालीन रत्नपुरी के महाराज श्री भानुराज की महारानी सुव्रता महादेवी के गर्भ से कुरुवंश में, पुण्य नक्षत्र में माघ शुक्ल तेरस (जो इस वर्ष 14 फरवरी को है) को जन्म हुआ। आपका कद 220 फुट ऊंचा था, आयु दस लाख वर्ष और काया तपे सोने के समान दमकती थी।

ढाई लाख वर्ष कुमार काल बीत जाने के बाद आपने राजपाट संभाला और लगभग 5 लाख वर्ष राजपाट करने के बाद एक दिन आकाश से बिजली गिरने और क्षण में गायब होने को देख उन्हें संसार भी इसी तरह क्षणभंगुर लगा। बस राजपाट छोड़ वैराग्य की भावना बलवती हो गई।

फिर माघ शुक्ल तेरस को ही अपराह्न काल में पुण्य नक्षत्र में नागदत्ता पालकी से रत्नपुर नगर के शालिवन में पहुंचे और पंचमुष्टि केशलोंच कर सप्तछद वृक्ष के नीचे कायोत्सर्ग मुद्रा में तप में लीन हो गये। आपको इस उत्तम मार्ग पर बढ़ता देख एक हजार अन्य राजाओं ने भी दीक्षा ले ली। आपको एक वर्ष के तप के बाद केवलज्ञान की प्राप्ति हुई।

वैसे उपरोक्त तीनों सहित 18 तीर्थंकरों के जन्म-तप कल्याणक एक ही दिन आते हैं। सभी 24 तीर्थंकरों के जन्म से पहले 15 माह तक सुबह-दोपहर-शाम तीनों पहरों में सौधर्म इन्द्र की आज्ञा से कुबेर माता -पिता के राजमहल पर साढ़े तीन करोड़ रत्नों की लगातार वर्षा करता है। सभी कल्याणकों को मनाने सौधर्म इन्द्र आता है, पर मूल शरीर से कभी नहीं, अन्य रूप बनाकर आता है।

बोलिये तीनों तीर्थंकरों के जन्म-तप कल्याणक की जय-जय-जय।