श्री विमलनाथ प्रभु का जन्म माघ शुक्ल चतुर्थी के दिन काम्पिलय नगरी में तथा हेमन्त ऋतु में बर्फ की शोभा को तत्क्षण में विलीन होते हुए देख विरक्त हो गये

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आज 4 फरवरी दिन शुक्रवार, माघ शुक्ल चतुर्थी शुभ तिथि को तेरहवें तीर्थंकर देवादिदेव श्री १००८ विमलनाथ भगवान का जन्म,तप कल्याणक पर्व है

तीर्थंकरों के जीवन की ऐसी घटना जो अन्य जीवों के कल्याण का आधार बनती हैं कल्याणक कहलाते हैं। वर्तमान में साक्षात में तो भगवान के कल्याणक देख पाना संभव नहीं अतः कल्याण पर्वों के शुभ अवसर पर भगवान की भक्ति, पूजन आदि द्वारा पुण्योपार्जन करना चाहिए।

प्रभु विमलनाथ जी जैन धर्म के 13वें तीर्थंकर है । प्रभु का जन्म माघ शुक्ल चतुर्थी के दिन काम्पिलय नगरी में इक्ष्वाकु कुल में हुआ था । प्रभु विमलनाथ जी के पिता का नाम कृतवर्मन तथा माता का नाम श्यामा था,प्रभु की देह का वर्ण स्वर्ण और इनका प्रतिक चिह्न वाराह था..

एक दिन भगवान ने हेमन्त ऋतु में बर्फ की शोभा को तत्क्षण में विलीन होते हुए देखा,जिससे उन्हें पूर्व जन्म का स्मरण हो गया। तत्क्षण ही भगवान विरक्त हो गये। तदनन्तर देवों द्वारा लाई गई देवदत्ता पालकी पर बैठकर सहेतुक वन में गये और स्वयं दीक्षित हो गये,उस दिन माघ शुक्ला चतुर्थी थी..