माघ शुक्ल चतुर्थी (04 फरवरी) को 13वें तीर्थंकर श्री विमलनाथ जी का जन्म-तप कल्याणक व फिर एक दिन बाद माघ शुक्ल षष्ठी (06 फरवरी) को उनका ज्ञान कलयणक पर्व आ रहा है। यानि 31 जनवरी से लगातार 7 दिनों में 4 तीर्थंकरों के 6 कल्याणक आ गये।
कम्पिला नगरी में महाराज श्री कृतिवर्मा की महारानी श्रीमती जयश्यामा के यहां आपका जन्म हुआ, तो तब तक 15 माह कुबेर उस राजमहल पर साढ़े तीन करोड़ रत्नों की वर्षा, दिन में तीनों पहर सुबह-दोपहर-शाम करता रहा। आपकी आयु 60 लाख वर्ष थी, जिसमें 15 लाख वर्ष कुमार काल तथा 30 लाख वर्ष राजपाट में बीता। तपे सोने सी काया वाले, 360 फुट ऊंचे कद वाले, आपका जन्म 12वें तीर्थंकर के 30 सागर वर्ष बाद हुआ।
फिर एक दिन ठण्ड में पत्तों पर ओस की बूंदें सूरज की किरणों से नष्ट होती देख, यह संसार नश्वर का आभास हो गया। बस फिर उस माघ कृष्ण चतुर्थी (इस बार 04 फरवरी) को सहेतुक वन में देवदत्ता पालकी से पहुंचे। आपके साथ एक हजार राजाओं ने भी दीक्षा ले ली। फिर पंचमुष्टि केशलोंच कर जामुन वृक्ष के नीचे तप में लीन हो गये।
राजा श्री जयकुमार के यहां पहला आहार कर, 03 वर्ष का कठोर तप करने के बाद माघ कृष्ण षष्ठी (इस बार 06 फरवरी) को उसी वृक्ष के नीचे अपराह्न काल में केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। आपका केवली काल 14,99,997 वर्ष रहा।
केवलज्ञान की प्राप्ति के तुरंत बाद कुबेर द्वारा 72 कि.मी. विस्तृत समोशरण की रचना की गई। प्रमुख गणधर जय सहित 55 गणधर, 68,000 ऋषि, 1100 पर्वूधर मुनि, 38,500 शिक्षक मुनि, 4800 अवधि ज्ञानी मुनि, 5500 केवली, 9000 विक्रयाधारी, 5500 विपुलमति ज्ञानी, 3600 वादी मुनि, प्रमुख श्री पद्मा के साथ 1.03 लाख आर्यिकाएं, प्रमुख श्रोता स्वयंभू सहित दो लाख श्रावक, 4 लाख श्राविकायें व अनेक तिर्यंच भी आपकी दिव्य ध्वनि का धर्मलाभ लेते रहे।
बोलिये 13वें तीर्थंकर श्री विमलनाथजी के जन्म-तप-ज्ञान कल्याणकों की जय-जय-जय।