मन्दिर आना तो कल्याण मार्ग की प्रथम सीढ़ी है, परन्तु उसी को अन्तिम समझकर वहीं पर अटक जाना बेवकूफी है – आचार्य अतिवीर मुनि

0
1338

परम पूज्य आचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज ने श्री दिगम्बर जैन मन्दिर, अशोक विहार फेज-2, दिल्ली में प्रवचन करते हुए कहा कि मन्दिर में आना उसी व्यक्ति का सार्थक होता है जिसके भीतर आत्म-कल्याण का भाव विद्यमान है| केवल परम्पराओं का निर्वाह करते हुए या भौतिक इच्छाओं की पूर्ति करने के लिए मन्दिर आना दिखावा मात्र है, इससे कल्याण होना असम्भव है|

आचार्य श्री ने आगे कहा कि मन्दिर आना तो कल्याण मार्ग की प्रथम सीढ़ी है, परन्तु उसी को अन्तिम समझकर वहीं पर अटक जाना बेवकूफी है| मन्दिर आकर निजात्मा में झांकना तथा उस पर पड़े कर्मों के गड्डों को निकालने का प्रयास कर मोक्ष मार्ग की ओर आगे बढ़ने में ही समझदारी है तथा कल्याणकारी है|

आचार्य श्री ने आगे कहा कि अनन्त पुण्य का संचय करने के पश्चात् जीव को दुर्लभ मनुष्य जीवन प्राप्त होता है| यह गर्व का विषय नहीं है अपितु विचार करने की बात है कि इतनी दुर्लभ वस्तु हमें ही क्यों मिली| कोई ख़ास प्रयोजन ही रहा होगा जो हम इस काबिल बनें और इस महान योनी में जन्म प्राप्त किया|

जन्म मरण के चक्कर से छुटकारा पाने के लिए एक यही मनुष्य योनी कार्यकारी है| देवी-देवता भी अनन्त सुख की अभिलाषा को रखते हुए मनुष्य योनी में आना चाहते हैं| इतना सब कुछ होते हुए भी वर्तमान में श्रावक अत्यंत प्रमादी हो गया है तथा भौतिक संसाधनों की आपूर्ति में जुटा हुआ है|

आचार्यों ने कहा है कि इसमें भी कोई बुराई नहीं है, यदि हमारा लक्ष्य सम्यक हो तथा भाव सरल हों| मनुष्य योनी में जन्म लेने से अधिक महत्वपूर्ण है अपने भीतर मनुष्यता के भाव को जगाए रखना| यदि हमारे भीतर दया, करुणा आदि निर्मल परिणामों का समावेश नहीं है तो मनुष्य योनी भी किसी काम की नहीं है|

आचार्य श्री ने बताया कि प्रभु की भक्ति-अर्चना करने के लिए किसी शुभ मुहूर्त की आवश्यकता नहीं होती। जब ईश्वर की भक्ति में मन लग जाये, जीवन का वही पल शुभ होता है। प्रभु के गुणों का गुणगान करते हुए स्वयं के दोषों पर भी सदैव दृष्टि बनाये रखनी चाहिए।

बिना ज्ञान के तथा बिना सोचे-समझे कोई क्रिया लाभदायक नहीं होती। निस्वार्थ भक्ति ही कल्याणकारी होती है तथा जीवन में परम आनंद की अनुभूति करवाती है। परम्पराओं का निर्वाह करते हुए दर्शन, जाप, पूजन, अभिषेक, विधान आदि कर लेना मोक्ष मार्ग में सहायक नहीं होते। उल्लेखनीय है कि राजधानी दिल्ली में बढ़ते कोरोना संक्रमण के कारण प्रशासनिक पाबंदियों को देखते हुए सभी की सुरक्षा हेतु आचार्य श्री के सान्निध्य में होने वाले आगामी सभी कार्यक्रम अगली सूचना तक स्थगित किये गए हैं|