स्वाध्याय, नमोकार महामंत्र का जाप, स्मरण करते रहने से असंख्यात कर्मों की निर्जरा होती है : आचार्यश्री विद्यासागर

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सिद्ध क्षेत्र कुण्डलपुर में विराजमन संत शिरोमणि आचार्यश्री विद्यासागर ने मंगल वाणी में कहा कि जैन धर्म की विशेषताएं, उदारताएं, परंपराएं, आचार संहिताएं हैं जिसमें जीवनचर्या का विश्लेषण है।

परिणाम अलग वस्तु है और अध्ययन अलग वस्तु है, परिणामों को संभालना चाहिए, कषायों को घटाने की ओर दृष्टि होनी चाहिए। कषायों को घटाने की ओर जिसकी दृष्टि होती है वह धन्यवाद का पात्र तो नहीं पर स्वागत के योग्य होता है। कषायों को क्षीण करना है तो अपने चारित्र, विशुद्धि को अपनाते हुए किसी भी काल में मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।

स्वाध्याय, नमोकार महामंत्र का जाप, स्मरण करते रहने से असंख्यात गुणों के कर्मों की निर्जरा होती है। हमें जीवन में पंच परमेष्ठी की आराधना करने का सौभाग्य मिला।

यह हमारा अहो भाग्य है। क्योंकि दार्शनिक वह है जो पंच परमेष्ठी की शरण में जाता है।