अजितनाथ‎ भगवान में चुंबकीय गुण हों‎ और वह अपनी ओर चुंबक की‎ तरह खींचते है, पहली बार बंधा अजितनाथ‎ भगवान के दर्शन कर मुनिश्री ने कहा

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टीकमगढ़‎ बुंदेलखंड के हजारों वर्ष प्राचीन ‎ अतिशय क्षेत्र बंधा में मंगलवार को ‎ ‎ मुनिश्री वीर सागर महाराज, मुनिश्री ‎ ‎ विशाल सागर महाराज, मुनिश्री‎ धवल सागर महाराज का खाकरोन से ‎ ‎ पैदल चलकर बंधा की पावन धरा पर‎ आगमन हुआ। मुनिश्री ने कहा कि मैं बंधाजी‎ के अजितनाथ भगवान के दर्शन‎ करने भौयरे में गया, तो मुझे‎ ऐसा लगा जैसे अजितनाथ‎ भगवान में चुंबकीय गुण हों‎ और वह अपनी ओर चुंबक की‎ तरह खींचते हो। मैंने ऐसा‎ महसूस किया।

मुनिश्री ने कहा‎ मैंने अपने जीवन में पहली बार‎ अजितनाथ भगवान के दर्शन‎ किए हैं, आप लोग जो यहां‎ निवास करते हैं वह निश्चित ही‎ बहुत सौभाग्यशाली हैं, कि आप‎ लोगों को अजितनाथ भगवान‎ की शरण मिली है। आप लोग‎ अजितनाथ भगवान से कभी दूर‎ नहीं जाना, उनकी शरण में‎ रहना, जीवन में मंगल ही मंगल‎ होगा।‎

मुनिश्री धवल‎ सागर महाराज ने अपने प्रवचन में‎ कहा कि मैं बुंदेलखंड के छोटे से‎ गांव में आया हूं। जहां सात घर की‎ समाज है, लेकिन अतिशय क्षेत्र‎ बंधाजी छोटा नहीं है। इस क्षेत्र के‎ आसपास 40 गांव की समाज जुड़ी‎ हुई है। उन्हांेने कहा कि मैंने पहली‎ बार अजितनाथ भगवान के दर्शन‎ किए हैं। अजितनाथ भगवान कसौटी‎ पाषाण से निर्मित है।

मुनिश्री ने कहा‎ कि मैंने सुना था कि अजितनाथ‎ भगवान चमत्कारी हैं। अब स्वयं‎ उनका अतिशय देखा है। मुनिश्री ने‎ कहा कि मेरा पृथ्वीपुर से जतारा जाने‎ ‎‎ का विचार मन में चल रहा था,‎ लेकिन बंधाजी वाले बाबा के‎ अतिशय से मुझे बंधाजी आना पड़ा।‎ यदि में बंधाजी वाले बाबा के दर्शन‎ नहीं कर पाता, तो मेरे जीवन की यह‎ बड़ी भूल होती।‎

वहीं मुनिश्री वीर सागर महाराज‎ ने अपने प्रवचनों में कहा कि मैं‎ ‎ अभी आगरा से चल कर आया हूं,‎ मैंने आगरा में शौरी बटेश्वर क्षेत्र में‎ भी अजितनाथ भगवान के दर्शन‎ किए। वह भी प्रतिमा कसौटी पत्थर‎ से बनी हुई है। मैं बंधाजी के‎ अजितनाथ भगवान के दर्शन कर‎ रहा था, तो मुझे शौरी बटेश्वर के‎ अजितनाथ भगवान झलक दिख‎ रही थी।‎ गौरतलब है कि मुनिश्री वीर‎ सागर महाराज मुनि अवस्था के 20‎ साल पहले अमेरिका की एक निजी‎ कंपनी में सवा करोड़ रुपए सालाना‎ पैकेज पर नौकरी करते थे।‎ अमेरिका से दर्शन के लिए आचार्य‎ भगवान विद्यासागर के पास पहुंचे,‎ वहीं से उनके वैराग्य की शुरुआत‎ हुई। उन्हें आचार्य विद्यासागर‎ महाराज के दर्शन के बाद ऐसा‎ वैराग्य आया, कि उन्होंने सवा‎ करोड़ सालाना की नौकरी छोड़ कर‎ दिगंबर मुद्रा को धारण कर लिया।‎