जीवन में हम बहुत कुछ सीखते हैं ,कई तरह से सीखते हैं ,किताबें पढ़ कर सीखते हैं तो कभी किसी से सुनकर सीखते हैं ,कुछ अपने अनुभव से सीखते हैं तो कुछ दूसरों के अनुभव से सीखते हैं | फिर हम सिखाने भी लग जाते हैं ,लगभग वही जो हमने सीखा है | इन सीखने सिखाने के सिलसिलों में हमारी उम्र कितनी गुजर जाती है पता ही नहीं चलता | उम्र के एक पड़ाव पर कभी फुरसत के क्षणों में यह लेखा जोखा करने बैठते हैं कि मैंने जो कुछ भी जीवन भर सीखा-सिखाया उसमें कितना प्रेयस था और कितना श्रेयस ? हमारे आत्मकल्याण में ,आत्मशांति की प्राप्ति में वह सीख कितनी कार्यकारी है ? तो अक्सर हिसाब संतुलित नहीं बैठता | प्रेयस का पड़ला भारी नजर आता है , श्रेयस का बजन बहुत हल्का नजर आता है | दुःख होता है कि महाभाग्य से इतना दुर्लभ मनुष्य भव पा करके भी आत्मज्ञान के अभाव में हमारा सारा का सारा बौद्धिक विकास कितना रीता रीता सा लग रहा है ?
जानने का स्वभाव होते हुए भी हम उसे नहीं जान पाए जो जाननहार है ,ज्ञायक है | इसलिए मेरी अभी तक की सारी शिक्षा संसार बढाने वाली होने से भार स्वरुप ही है | उस बौद्धिक विकास से हमारी आर्थिक स्थिति तो सुधरी लेकिन मानसिक स्थिति खराब हो गयी और हम उस सुधरी हुई आर्थिक स्थिति का भी आनंद नहीं ले पाए | हमारे दुःख कम होने की जगह बढ़ गए |
कविवर दौलतराम जी छहढाला के शुरू में ही लिखते हैं –
जे त्रिभुवन में जीव अनंत , सुख चाहें दुःख ते भयवन्त |
तातें दुखहारी सुखकार, कहें सीख गुरु करुणा धार ||
सीख अर्थात् शिक्षा | स्वयम् साक्षात् मोक्षमार्ग पर चलने वाले आचार्य हमारे ऊपर करुणा करके हमें कौन सी शिक्षा देना चाहते हैं ? हमें ऐसा क्या सिखाना चाहते हैं जो सब कुछ सीखने के बाद भी हम सीख नहीं पाए ? और वो कैसे सिखायेंगे ?
वे हमें सब कुछ सिखाते हैं ,कुछ कह कर सिखाते हैं ,बहुत कुछ बिना कहे ,कुछ करके सिखाते हैं ,बहुत कुछ बिना करे , उनका पूरा जीवन एक पाठशाला होता है ,योग्य शिष्य उनके जीवन की प्रत्येक क्रिया एवं चर्या से , हर वाक्य से ,उनके हर पल से महाविद्या तक सीख लेता है |
हम सभी के ऐसे ही परम गुरु, भारत की पवित्र धरा पर पिछले पचास वर्षों से वीतरागी नग्न दिगम्बर उन्मुक्त विचरण करने वाले ,परम तपस्वी , स्वानुभवी आचार्य विद्यासागर जी महाराज हैं जिन्होंने स्वयं के कल्याण के साथ साथ हम जैसे जीवों के कल्याण के लिए शाश्वत मोक्षमार्ग की शिक्षा देकर हम सभी का परम उपकार किया है | संयम और ज्ञान की चलती फिरती महापाठशाळा के आप ऐसे अनोखे आचार्य हैं जो न सिर्फ कवि,साहित्यकार और विभिन्न भाषायों के वेत्ता हैं बल्कि न्याय,दर्शन ,अध्यात्म और सिद्धांत के महापंडित भी हैं ,ज्ञान के क्षेत्र में जितने ऊँचे हैं ,उससे कहीं अधिक ऊँचे वैराग्य ,तप,संयम की आराधना में हैं | ऐसा मणि-कांचन संयोग सभी में सहज प्राप्त नहीं होता |
विद्यासागर सिर्फ उनका नाम नहीं है यह उनका जीवन है ,वे चलते फिरते पूरे एक विशाल विश्वविद्यालय हैं , वे संयम , तप, वैराग्य , ज्ञान विज्ञान की एक ऐसी नदी हैं जो हज़ारों लोगों की प्यास बुझा रहे हैं , कितने ही भव्य जीव इस नदी में तैरना और तिरना दोनों सीख रहे हैं |
कितने ही उन्हें पढ़कर जानते हैं ,कितने ही उन्हें सुनकर जानते हैं ,कितने ही उन्हें देख कर जानते हैं और न जाने ऐसे कितने लोग हैं जो उन्हें जीने की कोशिश करके उन्हें जानने का प्रयास कर रहे हैं |
इन सबके बाद भी आज बहुत से लोग ऐसे हैं जो कुछ नया जानना चाहते हैं , जीवन दर्शन को समझना चाहते हैं और जीवन के कल्याण की सच्ची विद्या सीखना चाहते हैं उन्हें इस सदी के महायोगी दिगम्बर जैन आचार्य विद्यासागर महाराज के एक बार दर्शन अवश्य करना चाहिए ।
–डॉ अनेकांत कुमार जैन नई दिल्ली