जैसे ही ठण्ड बढ़ती है, श्री सम्मेद शिखर की वंदना में अधिक सावधानी की जरूरत पड़ती है, जानिए क्या क्या रखे सावधानी, दूर रहे परेशानी

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विगत कुछ वर्षों से नवंबर, दिसंबर, जनवरी और फरवरी के महीनों में ठंड के मौसम में सिद्ध क्षेत्र श्री सम्मेद शिखरजी के पहाड़ की वंदना करते समय अनेक श्रावकों का हृदयघात से अवसान हुआ है जिसका मुख्य कारण अत्यधिक ठंड बताया जाता है। इसमें ज्यादातर यात्री दक्षिण भारत के राज्यों से हैं।

मस्तिष्क आघात के मरीज़ को कैसे पहचानें ?
स्ट्रोक की पहचान-
बामुश्किल एक मिनट का समय लगेगा, आईए जानते हैं-

न्यूरोलॉजिस्ट कहते हैं-
अगर कोई व्यक्ति ब्रेन में स्ट्रोक लगने के, तीन घंटे के अंदर, अगर उनके पास पहुँच जाए तो स्ट्रोक के प्रभाव को पूरी तरह से समाप्त (reverse) किया जा सकता है।
उनका मानना है कि सारी की सारी ट्रिक बस यही है कि कैसे भी स्ट्रोक के लक्षणों की तुरंत पहचान होकर, मरीज़ को जल्द से जल्द (यानि तीन घंटे के अंदर-अंदर) डाक्टरी चिकित्सा मुहैया हो सके, और बस दुःख इस बात का ही है कि अज्ञानतावश यह सब ही execute नहीं हो पाता है ।

मस्तिष्क के चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार स्ट्रोक के मरीज़ की पहचान के लिए तीन अतिमहत्वपूर्ण बातें जिन्हें वे STR कहते हैं, सदैव ध्यान में रखनी चाहिए।
अगर STR नामक ये तीन बातें हमें मालूम हों तो मरीज़ के बहुमूल्य जीवन को बचाया जा सकता है।

ये 3 बातें इस प्रकार हैं-
1) S = Smile अर्थात उस व्यक्ति को मुस्कुराने के लिये कहिए।
2) T = Talk यानि उस व्यक्ति को कोई भी सीधा सा एक वाक्य बोलने के लिये कहें, जैसे- ‘आज मौसम बहुत अच्छा है’ आदि।
और तीसरा...3) R = Raise अर्थात उस व्यक्ति को उसके दोनों बाजू ऊपर उठाने के लिए कहें।

अगर उस व्यक्ति को उपरोक्त तीन कामों में से एक भी काम करने में दिक्कत है, तो तुरंत ऐम्बुलैंस बुलाकर उसे न्यूरो-चिकित्सक के अस्पताल में शिफ्ट करें और जो आदमी साथ जा रहा है उसे इन लक्षणों के बारे में बता दें ताकि वह पहले से ही डाक्टर को इस बाबत खुलासा कर सके।

इनके अलावा स्ट्रोक का एक लक्षण यह भी है-उस आदमी को अपनी जीभ बाहर निकालने को कहें।अगर उसकी जीभ सीधी बाहर नहीं आकर, एक तरफ़ मुड़ सी रही है, तो यह भी ब्रेन-स्ट्रोक का एक प्रमुख लक्षण है।

➡पहाड़ चढ़ते समय शरीर का तापमान बढ़ जाता है और पसीना आता है जिस वजह से अनेक लोग या तो गरम कपड़े पहनकर ही नहीं जाते हैं या फिर पहने हुए गरम कपड़े उतार देते हैं। फिर पहाड़ के ऊपर अत्यधिक ठंड होने की वजह से उन श्रावकों के साथ दुर्घटना हो जाती है। दक्षिण भारत के लोगों को इतनी ठंड सहने की क्षमता भी नहीं होती क्योंकि उनके क्षेत्र में इतनी भीषण ठंड नहीं पड़ती जिस वजह से उन लोगों के साथ ही ज्यादातर यह दुर्घटनाएं हो रही है

सम्मेद शिखरजी पर अवसान होना कुछ लोग सौभाग्य की बात मानते हैं लेकिन पहाड़ की वंदना के समय ठंड से अकाल मरण होना यह दुर्भाग्यपूर्ण है। इसीलिए ठंड के महीनों में जो भी श्रावक पहाड़ की वंदना करने वाले हैं
वह निम्नलिखित बातों का खास ध्यान रखें जिससे उनके साथ कोई स्वास्थ्य जनित दुर्घटना न हो, आपकी वंदना निर्विघ्न सम्पन्न हो सके।

– कभी भी तलहटी के मौसम के आधार पर पहाड़ के मौसम का अनुमान न लगाएं। यद्यपि तलहटी में गर्मी हो अथवा बारिश न हो तो भी पहाड़ पर इसके विपरीत भीषण ठंड एवं बारिश हो सकती है।

– सभी धार्मिक क्षेत्र की पवित्रता और श्रद्धा हेतु नंगे पैर पहाड़ की वंदना करते हैं लेकिन जिनको स्वास्थ्य की समस्याएं जैसे BP, डायबिटीज, हृदय विकार, आदि हो तो वो अपने स्वास्थ्य के अनुसार कम से कम पैरों में anklets (पाय मोजे) पहनकर ही पहाड़ चढ़े जिससे उनको पैरों के जरिए ठंड न चढ़े। जिनको अत्यधिक समस्या हो वो अपने स्वास्थ्य के अनुकूल व्यवस्था करके ही चढ़े।


– स्वेटर, जैकेट, कानटोपी, जैसे आवश्यकता अनुसार गरम कपड़े साथ में अवश्य रखें और ठंड लगते ही उन्हें तुरंत पहन लें। कभी पसीना आने पर गरम कपड़े तुरंत न उतारे इससे बहुत हानिकारक परिणाम हो सकते हैं। शरीर की सबसे ज्यादा गरमी सर से निकलती है इसलिए कानटोपी विशेष रूप से पहने।

– तलहटी में प्लास्टिक की पन्नी वाले रेनकोट सस्ते मूल्य पर मिलते हैं। आप इनको खरीदकर अपने साथ रखिए। पहाड़ पर मौसम अचानक बदल जाता है और किसी भी महीने में बारिश भी हो जाती है। बारिश में भीगने के बाद पहाड़ पर चलती हुई तेज हवाओं से काफी ठंड लगकर भी स्वास्थ्य खराब हो सकता है। रेनकोट रहेगा तो यह स्थिति उत्पन्न नहीं होगी

– आपके स्वास्थ्य की समस्याओं के अनुसार अपने साथ अपनी महत्वपूर्ण दवाइयां अवश्य रखें।

– दूसरों के देखादेखी पहाड़ तेजी से या दौड़कर चढ़ने की कोशिश न करें। सबकी शारीरिक क्षमता भिन्न होती है इसलिए किसीसे होड़ न लगाए। अपने क्षमता के अनुसार ही पहाड़ चढ़ने की गति सीमित करें। यदि शक्ति से ज्यादा जोर से आप पहाड़ चढ़ेंगे तो हृदय गति तेज हो जाती है जिससे हृदयाघात का खतरा बढ़ जाता है। पहाड़ चढ़ने की एक नियमित धीमी गति रखें।

– बहुत से लोग निर्जल उपवास के संकल्प के साथ पहाड़ चढ़ते हैं जिससे शरीर का पानी पसीने आदि के बहने से कम हो जाता है और हृदय पर अत्यधिक जोर पड़ता है जिससे दुर्घटना हो सकती है। निर्जल उपवास सहित पहाड़ की वंदना का संकल्प अपनी शक्ति के अनुसार ही लें और छूट रखे कि यदि प्यास की बहुत आकुलता हुई या तबियत खराब हुई तो जल ग्रहण करेंगे।

– तबियत खराब होने के पहले लक्षण घबराहट होना, चक्कर आना, उल्टी होना, छाती में दर्द उठना, आदि से शुरू होते हैं। जैसे ही यह लक्षण महसूस हो आप सबसे पहले नजदीक के किसी स्टाल में विश्राम करके जलपान ग्रहण करें। ठंड लगती हो तो तुरंत गरम कपड़े पहन लें। इसके बाद रुक रुक कर वंदना करें अथवा डोली कर लें। ज्यादा तकलीफ हो तो डोली करके पहाड़ से नीचे उतर आए।

– पहाड़ चढ़ते समय साथ में पानी की बोतल अवश्य रखें और समय समय पर आवश्यकता अनुसार पानी पीएं जिससे शरीर में पानी की कमी नहीं होगी और हृदय पर भार नहीं आएगा।

हृदयाघात की स्थिति में जोर से श्वास लेकर खाँसना प्रारंभ करें इससे कोई आकस्मिक दुर्घटना टल सकती है। यदि हृदयाघात से श्रावक बेहोश हो जाता है तो उसे तुरंत CPR देना प्रारंभ करें , आपके इस CPR की क्रिया से श्रावक की जान बच सकती है क्योंकि पहाड़ पर मदद आने में समय लग जाता है और वही समय में श्रावक का अवसान हो जाता है

– जिनको स्वास्थ्य की समस्याएं हैं वो अपने साथ आपातकालीन संपर्क सूत्रों के नंबर लेकर जाए जिससे तुरंत मदद पहुचाई जा सके

– जिनके पास गरम कपड़े न हो वो अत्यधिक ठंड लगने पर पहाड़ पर बने स्टॉल की अंगीठी के समीप बैठे अथवा लकड़ियां इकट्ठा करके आग जला लें।

– यदि आपको स्वास्थ्य संबंधी कोई गंभीर बीमारी हो तो डोली से ही वंदना करें और तलहटी में वंदना से पहले अपने स्वास्थ्य की जांच करवा लें और आपातकालीन सेवाओं की पूर्ण जानकारी लें एवं उनके मोबाइल नंबर अपने पास save करके रखें।

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