20 दिसम्बर – समाधि दिवस -दिगम्बर मुनि की चर्या, उनके मूलगुणों की साधना से परिचित आचार्य श्री विजय सागर जी

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परम पूज्य आचार्य श्री 108 विजय सागर जी महाराज का जन्म सन 1881 में माघ सुदी अष्टमी को ग्राम सिरोली, जिला ग्वालियर (म.प्र.) में हुआ था| आपने इटावा (उ.प्र.) में क्षुल्लक दीक्षा तथा मथुरा (उ.प्र.) में ऐलक दीक्षा ग्रहण कर मोक्षमार्ग की ओर अपने कदम बढ़ाए| परम पूज्य आचार्य श्री 108 सूर्य सागर जी महाराज के कर-कमलों द्वारा आप सन 1943 में राजस्थान के नागौर जिला स्थित मारौठ नगर में मुनि दीक्षा अंगीकार कर आत्म-कल्याण के मार्ग पर आरुढ़ हुए| मुनि रूप में आपने दिगम्बर मुनि की चर्या, उनके मूलगुणों की साधना तथा उनके तपश्चर्या के विविध आयामों से जैन समाज को परिचित करवाया|

छाणी परंपरा के पंचम पट्टाधीश परम पूज्य आचार्य श्री 108 विद्याभूषण सन्मति सागर जी महाराज के प्रमुख शिष्य परम पूज्य आचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज ने पूज्य आचार्य-प्रवर के समाधि दिवस के अवसर पर उनके चरणों में अपनी विनयांजलि अर्पित करते हुए बताया कि आचार्य श्री 108 विजय सागर जी महाराज कठोर तपस्वी तथा वचनसिद्ध साधु थे| एक बार एक गांव के श्रावकों ने आपको खारे पानी की कुएं के बारे में शिकायत की, तो आपने सहजता से कह दिया कुएं में तो मीठा पानी ही है| तभी उन लोगों ने कुएं का पानी चखा तो पाया कि पानी खारा नहीं, मीठा ही था| जीवन में अनेक प्रसंगों पर उपसर्गों को सहन करते हुए आप निरंतर कठोरतम चर्या का पालन करते रहे|

जैन मुनि परंपरा के संरक्षण व संवर्धन में आपका योगदान अत्यंत विशिष्ट है| आपके भीतर विद्यमान अथाह ज्ञान भण्डार तथा अद्वितीय प्रभावना को देखते हुए लश्कर, ग्वालियर (म.प्र.) में चतुर्विध संघ की उपस्तिथि में आचार्य पद से सुशोभित कर आपको आचार्य श्री 108 शान्तिसागर जी महाराज (छाणी) की परंपरा में द्वितीय पट्टाधीश के रूप में प्रतिष्ठित किया गया| आपके कर-कमलों द्वारा अनेकों भव्य जीवों ने जैनेश्वरी दीक्षा अंगीकार कर आत्मकल्याण के मार्ग पर अपने कदम बढ़ाये| आपने अपनी पारखी नज़रों से पूज्य आचार्य श्री विमल सागर जी महाराज (भिण्ड) की योग्यता को परखकर उन्हें छाणी परंपरा के तृतीय पट्टाचार्य के रूप में आसीन किया|

सन 1962 में पौष बदी नवमी तदनुसार दिनांक 20 दिसम्बर 1962 को मुरार, जिला ग्वालियर (म.प्र.) में समाधिपूर्वक मरण कर इस नश्वर देह का त्याग किया| पूज्य आचार्य श्री का जितना विशाल एवं अगाध व्यक्तित्व था, उनका कृतित्व उससे भी अधिक विशाल था| इस गौरवशाली महान परम्परा में वर्तमान में सहस्त्राधिक दिगम्बर साधु समस्त भारतवर्ष में धर्मप्रभावना कर रहे हैं तथा भगवान महावीर के संदेशों को जनमानस तक पहुंचा रहे हैं|

संकलन – समीर जैन (दिल्ली)

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