“लोभी गुरु लालची चेला होए नर्क में ठेलम ठेला” : मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी

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निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
जिसके साधने में इतना कष्ट होता, वो साध्य कैसे सुखदाई हो सकता है
हम तुमसे नाराज नहीं हैं इसका मतलब राजी नहीं हैं आपसे
1.निश्चयी निश्चय वाला वक्ता बुलाना चाहते हैं व्यवहारी व्यवहार वाला वक्ता चाहते हैं कोई विपरीत बात नहीं चाहते हैं अपनी रुचि अनुसार श्रोता प्रवचन सुनना,वक्ता भी श्रोताओं के अनुसार प्रवचन देते हैं,सत्य कहने से भय क्यों यह गिरगिट के सामान वक्ता और श्रोता हैं।”लोभी गुरु लालची चेला होए नर्क में ठेलम ठेला”
2.धर्म को परमार्थ वाला मत समझो, धर्म परमार्थ और संसार दोनों देता हैं,धर्म को केवल मोक्ष.का बना दिया तो लोग धर्म से दूर हो जाएंगे।
3.भौतिक युग चाहता है धर्म से संसार की इच्छाओं की पूर्ति हो आज का युग परमार्थ पर नहीं चलना चाहता है धर्म से कुछ संसार के लिए मिले जिसको साधन मैं इतना कष्ट है वह साधन से साध्य सुखदाई कैसे हो सकता है।
4.सो मुर्ख भक्तों की अपेक्षा एक ज्ञानी भक्त श्रेष्ठ,सो मुर्ख शिष्यों की अपेक्षा एक ज्ञानी शिष्य श्रेष्ठ,सो मूर्ख पुत्रों की अपेक्षा 1ज्ञानी पुत्र श्रेष्ठ,सो मूर्ख दोस्त को अपेक्षा एक ज्ञानी दोस्त श्रेष्ठ हैं
5.हमे संसार का सुख चाहिए इसलिए सम्यग्दर्शन को मात्र मोक्ष का ही नही स्वर्गादिक सम्पदा का कारण भी कहा हैं ।
शिक्षा-सत्य कहो- स्वार्थ कभी रखना नहीं,धर्म का नाश कभी नहीं होना चाहिए।
संकलन ब्र महावीर