तेंदूखेड़ा में चल रहे श्री मज्जिनेन्द्र पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के पांचवें दिन सुबह से भगवान का पूजन, अभिषेक एवं शांतिधारा बाल ब्रह्मचारी प्रतिष्ठाचार्य विनय भैया द्वारा मंत्रोचारण से कराई गई। इसके बाद यागमंडल विधान जन्म कल्याणक विधान, आचार्य भगवन का पूजन किया।
सुबह 9 बजे से मुनिश्री समय सागर महाराज अपने मंगल प्रवचनों में कहा कि जो तीर्थंकर होते हैं उनका असाधारण व्यक्तित्व हुआ करता है। उनका अकाल मरण नहीं होता है। वो सर्वोत्तम शरीर वाले माने जाते हैं। किसी भी प्रकार के आयु कर्म के उदेरणा के लिए कारणों के निमित्त होते हैं। उनके निमित्तों का समागम मिलने के बाद भी उनका अकाल मरण नहीं होता है। उसी भव से केवल ज्ञान प्राप्त करके मुक्त होंगे। उसको कोई रोकने वाला नहीं है।
जब तक उन्हें केवल ज्ञान नहीं होता तब तक उनके उपयोगों को व्यर्थ बनाने वाले बहुत सारे पदार्थ हुआ करते हैं। उसके बीच में रहकर उन्हें केवल ज्ञान प्राप्त करना संभव नहीं हैं। जिनका जीवन महल और राग रंग के वातावरण में व्यतीत हुआ। ऐसे संस्कारों के संस्कारी प्राणी उन विषयों से अपने आपके मोह को तोड़ नहीं पाता है। इसीलिए आचार्य ने कहा है कि सर्व प्रथम साधक को जब तक साधना में प्रबलता नहीं आती है, तब तक उचित द्रव्य क्षेत्राआदि का आलम लेना अनिवार्य सिद्ध होता है।
शाम के प्रवचनों में समय सागर महाराज ने कहा कि निरंतर प्रभु की आराधना करते हुए कई भव निकल जाते हैं। तुम प्रत्येक भव में आस्था के साथ प्रभु की आराधना करने से जो पुण्य संचय होता है। संचित पुण्य का फल उपभोग करने के बाद भी वह पुण्य समाप्त नहीं होता है। निदान के जो 12 पुण्य संचय हो जाते हैं वह बहुत जल्दी समाप्त हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि संसारी प्राणी मोह में फंसा हुआ है, लेकिन जैसे जल में बुलबुले उत्पन्न होते हैं और वह कुछ क्षण में समाप्त हो जाते हैं, उसी प्रकार यौवन अवस्था, वैभव और ये संपदा विनाश को प्राप्त होती है। अपने सृजन, परिजन, पुत्र, मित्र ये सभी के सभी समाप्त हो जाते हैं।
दोपहर 12 बजे से तपकल्याणक अवसर पर भगवान बनने से पहले शादी, राजपाट, संस्कार विधि, पालकी फेरी, वैराग्य सहित अनेक नाटकों का मंचन किया। 4 बजे से अकंपमति माता जी के ससंघ का पिच्छिका परिवर्तन का कार्यक्रम आयोजित किया गया। शाम को संगीत मय आरती, शास्त्र सभा के अलावा सांस्कृतिक कार्यक्रमों का नाटक के माध्यम से मंचन किया गया।
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