आचार्य श्री आदिसागर महाराज की 109वीं जन्म जयंती के अवसर पर संस्कारों की रंगोली- आर्यिका दीक्षा के बाद 28 मूल गुणों का करेंगी पालन

0
1587

तपस्वी सम्राट आचार्य श्री सन्मति सागर महाराज के सुयोग्य शिष्य आचार्य श्री सुन्दर सागर महाराज 26 वर्ष से निर्ग्रन्थ अवस्था में विचरण कर साधु परमेष्ठी पद का निर्वाह करते हुए समाज की 36 चेतन आत्माओं को मंत्रोच्चारण के साथ अपने हस्तकमलों से संयम मार्गलगा चुके हैं। इन्हीं आचार्य श्री की प्रेरणा से शुक्रवार, 10 दिसम्बर की पावन तिथि पर बांसवाड़ा नगर में छह और दीक्षाएं हुईं और रीता दीदी, पूजा दीदी, सुरभि दीदी, लक्ष्मी दीदी, रश्मि दीदी और विश्वलता दीदी संयम मार्ग पर चल पड़ीं। इन बहनों में एक इंजीनियर और एक पीएच.डी भी है। यह एक सुअवसर और भी था, क्योंकि यह छह दीक्षा आचार्य श्री आदिसागर महाराज की 109वीं जन्म जयंती के अवसर पर हुईं।

पांच आचार्यों के सान्निध्य में बांसवाड़ा में शुक्रवार को तीन आर्यिका और क्षुल्लिका दीक्षा सम्पन्न हुई। इस मौके पर दीक्षा प्रदाता आचार्य श्री सुन्दर सागर महाराज, आचार्य श्री समता सागर महाराज, आचार्य श्री विभव सागर महाराज, आचार्य श्री सुवीर सागर महाराज, आचार्य श्री अनुभव सागर महाराज दीक्षा संस्कार संपन्न कराते हुए।

दीक्षा की ओर बढ़ते चरण }

पहला चरण : दीक्षार्थी बहन रीता दीदी, पूजा दीदी, सुरभि दीदी, लक्ष्मी दीदी, रश्मि दीदी ने आचार्य श्री सुंदर सागर जी महाराज से दीक्षा ग्रहण कराने के लिए निवेदन किया।
दूसरा चरण : दीक्षार्थी पांचों बहनों ने गुरुवर आचार्य श्री सुन्दर सागर महाराज से आज्ञा लेकर चौकी पर बिछे श्वेत वस्त्र पर दक्षिण पैर उठाकर रखा और उसके बाद दूसरा पैर रखकर बैठ गईं। इसके पश्चात आचार्य श्री सुन्दर सागर जी महाराज ने संघ एवं मंच पर उपस्थित संत समुदाय औऱ श्रावकों से दीक्षा देने की स्वीकृति मांगी।

तीसरा चरण : दीक्षार्थी बहनों ने केशलोंच क्रिया प्रारम्भ करने से पूर्वसिद्ध भक्ति और योगी भक्ति का वाचन किया।
चौथा चरण : वृहत शांतिमंत्र उच्चारण से मस्तक पर तीन बार गंधोदक क्षेपण किया।
पांचवा चरण : वर्धमान मंत्र के द्वारा केशर आदि मंगल द्रव्य से आशीर्वाद प्राप्त किया।

छठवां चरण : विशिष्ट मंत्र तथा पंच परमेष्ठी के स्मरण से दीक्षा प्रदाता आचार्य श्री सुन्दर सागर महाराज द्वारा पंचमुष्ठी केशलोंच किया गया।
सातवां चरण : केशलोंच के पूर्ण होने के बाद सिद्ध भक्ति पूर्व केशलोंच निष्ठापन किया गया।
आठवां चरण : जल से सिर प्रक्षालन किया गया।

नवां चरण : खड़े होकर रंगीन वस्त्र तथा आभूषण आदि का त्याग एवं जीवन भर के लिए श्वेत साड़ी पहनने का संकल्प लिया। ( यह वह चरण है कि जब दीक्षार्थी चाहे तो वापस घर जा सकता है।)
दसवां चरण : दीक्षार्थियों द्वारा पुनः हाथ जोड़कर दीक्षा संस्कार करने लिए निवेदन किया गया।
ग्याहरवां चरण : दीक्षा प्रदाता आचार्य श्री सुन्दर सागर महाराज द्वारा सिर पर श्रीकार लेखन किया गया।
बरहवां चरण : सिर पर 108 लोंग से सर्व शांतिमंत्र।

तेरहवां चरण : दीक्षार्थी के हाथ की अंजलि में केशर कर्पूर से श्रीकार लेखन किय गया।
चौदहवां चरण : हथेली की अंजलि के अंदर चारो दिशाओं में क्रमशः 3,24,5,2 अंक का लिखकर अक्षत, श्रीफल,सुपारी से अंजलि को भर दिया गया। उसके बाद लघु चारित्र, योग भक्ति पढ़कर मन्त्रों के द्वारा व्रतों का आरोपण किया गया।

पंद्रहवां चरण : शांतिभक्ति पढ़कर हथेली की अंजलि में भरे द्रव्य को धर्म के माता-पिता को दिया गया।
सोलहवां चरण : दीक्षार्थियों के सिर पर लोंग से मंत्रों द्वारा सोलह संस्कार विधि की गई।
सत्रहवां चरण : गुरुर्वावलि पढ़कर दीक्षा प्रदाता आचार्य श्री सुंदर सागर जी महाराज द्वारा पांचों दीक्षार्थी बहनों का नामकरण संस्कार किया गया।

अठारहवां चरण : आचार्य श्री सुंदर सागर जी महाराज द्वारा दीक्षार्थियों को पिच्छी प्रदान की गई।
उन्नीसवां चरण : आचार्य श्री सुंदर सागर जी महाराज द्वारा दीक्षार्थियों को शास्त्र प्रदान किए गए।
बीसंवा चरण : आचार्य श्री सुन्दर सागर जी महाराज द्वारा दीक्षार्थियों को कमण्डल प्रदान किए गए।

इक्कसीवां चरण : आचार्य श्री सुन्दर सागर जी महाराज द्वारा दीक्षार्थियों को माला प्रदान की गई।
बाइसवां चरण : सामाधि भक्ति पाठ किया गया।